संवाद और संगम



संवाद से जुड़े जो दो दिल,
मन की गहराई, भावों की खिल।
शब्दों की धार से बहे जो प्रवाह,
बन जाता है प्रेम का अथाह।

विचारों का मिलना, आत्मा का स्पर्श,
संवेदनाओं में होता एक नया उत्कर्ष।
जब बातें गूंजें दिल की गहराई में,
शरीर भी झूम उठे उन्हीं सच्चाई में।

स्पर्श तो बस है एक बहाना,
आत्मा का संगम है असली खजाना।
जहाँ करुणा और प्रेम हो रूह के पास,
वहीं मिलता है सच्चे सुख का आभास।

संवाद से जो बंधे दिलों का संगम,
जैसे स्वर्ग में हो प्रेम का आलिंगन।
तन-मन के इस अद्भुत मेल में,
खो जाते हैं दोनों किसी और खेल में।

यह केवल देह का खेल नहीं,
यह आत्मा का मेल सही।
संवाद से जो जलती है ज्योति,
संगम में मिलती है उसकी प्रतीति।


No comments:

Post a Comment

Thanks

छाँव की तरह कोई था

कुछ लोग यूँ ही चले जाते हैं, जैसे धूप में कोई पेड़ कट जाए। मैं वहीं खड़ा रह जाता हूँ, जहाँ कभी उसकी छाँव थी। वो बोलता नहीं अब, पर उसकी चुप्प...