विचारों की अंतरंगता



मैं मानता हूँ,
शारीरिक मिलन सबसे गहन नहीं होता,
सबसे गहरा होता है संवाद,
जहाँ शब्द नहीं, आत्माएँ मिलती हैं।

यदि मैं तुम्हें अपना शरीर दूँ,
तो उसे वापस ले सकता हूँ,
पर यदि मैं अपने विचार दूँ,
तो तुम मेरे भीतर से एक हिस्सा ले जाते हो।

वो हिस्सा, जो मेरे लिए सबसे गुप्त था,
वो हिस्सा, जिसे मैं स्वयं से साझा करता हूँ,
तुम उसे छू जाते हो,
जहाँ मेरा अस्तित्व सबसे नग्न है।

शब्दों में होती है आत्मा की परछाईं,
विचारों में होती है मेरी सच्चाई।
तुम्हारे साथ बात करके,
मैं तुम्हें वो सौंप देता हूँ,
जो मुझसे भी परे है।

क्या इससे अधिक कोई अंतरंगता हो सकती है?
जब तुम मेरे विचारों को लेकर चले जाते हो,
तब तुम मेरे अस्तित्व का हिस्सा हो जाते हो।
और मैं, कहीं अधूरा सा रह जाता हूँ।


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