रहस्य के धागों में, उलझी है ज़िंदगी,
विज्ञान की सीमाएँ, खोजती नित बंदगी।
प्रकृति का हर अंश, है एक गूढ़ कहानी,
हम भी हैं उस में, ये सच्चाई पुरानी।
सूरज की किरणों में, छिपा है एक प्रकाश,
पर मन के अंधेरों को, कर न सके ख़ास।
धरती की गोद में, हैं रत्न अनमोल,
पर आत्मा के प्रश्नों का, न पा सके मोल।
मैं भी हूँ प्रकृति का, एक छोटा सा हिस्सा,
जो खोजता रहा खुद को, पर पाया न किस्सा।
प्रकृति के रहस्य को, जो समझना चाहता,
वो खुद को समझे, यही ज्ञान बतलाता।
आख़िर में, विज्ञान भी झुकता है प्रेम से,
कि प्रकृति का रहस्य, सुलझे न नियम से।
मैं हूं प्रकृति, और प्रकृति मेरा आधार,
रहस्य में छिपा है, हमारा हर संसार।
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