मैं जब खुद से ही नज़रें चुराता,
तो दुनिया भी मुझसे सवाल उठाती।
हर शक़ की दीवार में मैं ही क़ैद था,
हर आईने में अजनबी-सा दिखता था।
पर एक दिन भीतर की आवाज़ आई,
"तू क्यों किसी और की परछाई?"
तब जाना —
जो मैं हूँ, वही मेरी असली स्याही है,
इसी में मेरी पहचान की गवाही है।
मैं जब अपने सच के साथ खड़ा हुआ,
हर भ्रम से खुद को बड़ा पाया।
न दंभ, न दिखावा — बस सच्चा मैं,
तो दुनिया ने भी कहा — "हाँ, ये है वह व्यक्ति!"
मैंने जब खुद से प्यार किया,
संभावनाओं ने मेरे द्वार खटखटाया।
जो पहले असंभव लगता था,
वह मेरे आत्मविश्वास से सरल बन गया।
अब मैं झुकता नहीं किसी नकली ताल से,
मैं नाचता हूँ अपने दिल की चाल से।
मैं जो हूँ — वही मेरी रोशनी है,
इसी से मेरी ज़िन्दगी की हर कहानी है।
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