तो नदियाँ चीख उठती हैं,
पेड़ों की जड़ें काँपती हैं,
और इंसान... बस देखता रह जाता है।
धराली की वो सुबह,
जो कभी शिव की शांति थी,
आज शोर में डूब गई।
नदी ने किसी का घर बहाया,
किसी की माँ, किसी का सपना,
और पहाड़ — बस खामोश रहे।
पर याद रखना —
उत्तरकाशी सिर्फ मिट्टी नहीं है,
वो आस्था है, वो आरती है,
जो फिर से जलेगी — राख से भी।
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