सच्ची साझेदारी की समझ



लोग चाहत को संगत समझ लेते हैं,
लेकिन सच्ची साझेदारी तो कुछ और है।
यह उस पल की खुशी में नहीं,
बल्कि जीवन के सफर में एक-दूसरे के साथ खड़े होने में है।

मैं जानता हूँ कि गहरी समझ,
भटकाव से कहीं ज्यादा अहम है।
वह रिश्ता जो केवल दिखावे से नहीं,
बल्कि सच्ची भावनाओं और कनेक्शन से जुड़ा हो।

कभी भी क्षणिक आकर्षण को न देखो,
क्योंकि वह समय की कसौटी पर खड़ा नहीं हो सकता।
जो सच में तुम्हारे साथ खड़ा है,
वही असली साथी होता है,
जो तुम्हारी आत्मा को समझे,
तुम्हारे रास्ते पर हमेशा साथ चले।

गहराई और स्थिरता ही है,
जो किसी रिश्ते को लंबी उम्र देती है।
यह वह संबंध है जो समय के साथ मजबूत होता है,
सिर्फ़ दिखावे की लहरों से नहीं,
बल्कि हर सच्चे अनुभव से बनता है।


गहरे रिश्तों की तलाश



जब लोग सिर्फ़ बाहरी सुखों में खो जाते हैं,
सांसारिक ख्याति के लिए दौड़ते हैं,
तो मैं देखता हूँ, कैसे वे आत्मा से दूर जाते हैं,
सिर्फ़ अस्थायी खुशी को पकड़े रहते हैं।

यहां बहुत कम लोग होते हैं,
जो सच्चे रिश्तों की क़ीमत समझते हैं,
जो सिर्फ़ दिखावे में नहीं,
बल्कि दिल से जुड़ते हैं।

मैं जानता हूँ कि असली प्यार,
जो समझ, विश्वास और सच्चाई से बना हो,
वही होता है, जो समय की कसौटी पर खरा उतरता है,
जो बाहरी पहचान से परे,
हमारे अस्तित्व को गहराई से महसूस करता है।

इस दौड़ में, जो रिश्ते हैं केवल दिखावे के,
वह कभी सच्चे नहीं हो सकते,
लेकिन जब हम एक-दूसरे की आत्मा को समझते हैं,
तब वही रिश्ता असल में हमारा होता है।

इसलिए मैं सच्चे रिश्तों की तलाश करता हूँ,
जो केवल बाहरी दिखावे से नहीं,
बल्कि अंदर की गहराई से जुड़ते हैं,
क्योंकि वही हैं, जो जीवन को सच्चे अर्थ देते हैं।


आभार की शक्ति



जब प्रशंसा बाहर से मिट जाती है,
मैं देखता हूँ, लोग टूट जाते हैं।
जब भौतिक चीजें उनका आधार बनती हैं,
तो वे खुद को खो देते हैं,
क्योंकि उनका अस्तित्व उस पर आधारित था।

लेकिन जब मैं आभार महसूस करता हूँ,
मैं दौड़ता नहीं,
मैं ऊर्जा का स्रोत बन जाता हूँ,
स्वाभाविक रूप से आकर्षित होता हूँ।
मैं खेल को अपना बना लेता हूँ,
क्योंकि अब मुझे किसी से साबित नहीं करना।

जो शरीर और भौतिकता पर निर्भर हैं,
वे केवल बाहरी दुनिया को ही देखते हैं,
लेकिन आभार तो एक आंतरिक शक्ति है,
जो आवृत्ति के साथ चलती है।

मैं जानता हूँ, जब मैं आभारी हूँ,
तो हर स्थिति में संतुष्ट हूँ,
क्योंकि आभार मुझे उस अनंत ऊर्जा से जोड़ता है,
जो मुझे हर पल शांति और शक्ति देती है।


## धन व्यय करते समय उच्चता को हराना: धन के लिए संदेश

### धन व्यय करते समय उच्चता को हराना: धन के लिए संदेश

हर बार जब आप धन व्यय करते हैं, यदि आपको विरोध / अहंकार / छाया महसूस होता है,

सीधे दोहराएं,

“हर पैसा जो मैं खर्च करता हूं, मुझे 11 गुणा वापस आता है”

ब्रह्मांड ऊर्जात्मक है और यह छोटा सा परिवर्तन आपको उच्च धन की धारा में समर्थ बनाता है।

### उच्चता की ओर ध्यान केंद्रित करना

जब हम धन को व्यय करने के समय विरोध या अहंकार महसूस करते हैं, तो हम ऊर्जा को धन की दिशा में संरेखित कर सकते हैं। यह मंत्र हमें स्पष्टता, संतुष्टि और धन की ऊर्जा को बढ़ाने में मदद करता है।

### संदेश की महत्वता

धन के व्यय करते समय यह संदेश हमें धन की महत्वपूर्णता और अपने आत्म-संरेखण की अहमियत को याद दिलाता है। यह हमें धन के प्रबंधन में बेहतर निर्णय लेने में मदद करता है और हमें अधिक उत्साही और समर्थ बनाता है।

### उच्चता और समृद्धि

धन के व्यय के समय उच्चता को हराना हमें संतुष्टि और समृद्धि के प्रति अधिक उत्सुक बनाता है। यह हमें विश्वास दिलाता है कि हर एक पैसा जो हम खर्च करते हैं, हमें अधिक धन की दिशा में प्रगति करने में मदद करता है।

सच्चे रिश्ते की खोज


मैंने एक लड़की से प्रेम किया,
शारीरिक आकर्षण से परे,
हमने एक-दूसरे को समझा,
दिलों में एक सच्ची गहरी बात छुपी थी।

हमने साथ बिताए पल,
जो सिर्फ़ शरीर से नहीं जुड़े थे,
हमने एक-दूसरे की आत्मा को महसूस किया,
जहाँ हर स्पर्श में प्रेम और समझ थी।

लेकिन फिर भी, यह समझ आया मुझे,
कि असली प्रेम सिर्फ़ एक क्षण का नहीं होता,
वह जो सच्चाई से जुड़ा है,
जो सिर्फ़ हार्मोन्स की लहर नहीं,
बल्कि आत्मा की आवाज़ सुनता है।

रिश्ते और आकर्षण सिर्फ़ एक दिखावा नहीं,
यह एक गहरी समझ का परिणाम है,
जो सिर्फ़ बाहरी रूप से नहीं,
बल्कि अंदर से जुड़े होते हैं।

और जब हम शारीरिक चाहत से परे,
एक-दूसरे को सच्चे दिल से समझते हैं,
तभी प्रेम और संबंध का असली रूप दिखता है,
जो जीवनभर साथ रहता है,
कभी न टूटने वाला,
कभी न भुलाया जाने वाला।


आध्यात्मिक जुड़ाव की तलाश


मैं देखता हूँ, दुनिया की दौड़ में,
जो सिर्फ़ बाहरी रूप को ही तवज्जो देती है।
हम भूल रहे हैं वह जज़्बा,
जो दिलों में छुपा होता है।

शरीर का आकर्षण ही है आजकल की रीत,
पर क्या हमें भूलना चाहिए उस सच्ची बात को,
जो भावनाओं की गहराई से निकलती है,
जो आत्मा और मन को जोड़ती है।

क्या हम सच में इस आकाश में,
खाली पंखों से उड़ने की कोशिश कर रहे हैं?
क्या हम भूल रहे हैं वह भावनाएँ,
जो रिश्तों को अर्थ और स्थायित्व देती हैं?

मैं चाहता हूँ, हम उस रास्ते पर चलें,
जहां सिर्फ़ रूप और आकार नहीं,
बल्कि दिल और दिमाग की समझ हो।
जहां सच्ची भावनाओं को मूल्य मिले,
और आत्मीयता का आकार हो।

क्योंकि जब तक हम भावनाओं को नहीं समझते,
तब तक रिश्ते बस एक खोल बनकर रह जाते हैं,
और वास्तविक जुड़ाव को खो देते हैं।
मैं चाहता हूँ, हम उस गहराई को फिर से खोजें,
जहां शरीर नहीं, बल्कि आत्मा जुड़ती है।


भावनात्मक संबंध की शक्ति


भावनात्मक संबंध ही है,
स्वस्थ रिश्ते की असली आत्मा।
जब हम साझा मूल्यों, व्यक्तित्व,
और भावनात्मक बुद्धिमत्ता पर ध्यान केंद्रित करते हैं,
तो हम ऐसे बंधन बना सकते हैं,
जो केवल शारीरिक आकर्षण से कहीं अधिक होते हैं।

ये तत्व हमारे रिश्ते की मज़बूत नींव बनाते हैं,
जो समय के साथ स्थायी और संतोषजनक होते हैं।
यह वही बंधन है,
जो सिर्फ़ बाहरी आकर्षण पर नहीं,
बल्कि आत्मिक और मानसिक जुड़ाव पर आधारित होता है।

जहां दो लोग एक-दूसरे को पूरी तरह समझते हैं,
जहां भावनाओं का आदान-प्रदान होता है,
वहीं पर असली प्यार और स्थायित्व पनपता है,
जो एक जीवनभर के साझेदारी को पूर्ण और अर्थपूर्ण बनाता है।


भावनात्मक संबंध का महत्व


भावनात्मक संबंध ही है,
स्वस्थ और संतोषजनक रिश्ते की नींव।
जब हम साझा मूल्यों, व्यक्तित्व,
और भावनात्मक समझ को प्राथमिकता देते हैं,
तो हम ऐसे संबंध बना सकते हैं
जो केवल शारीरिक आकर्षण से कहीं बढ़कर होते हैं।

वह संबंध, जो दिलों और विचारों से जुड़ा होता है,
वही असल में स्थिर और गहरा होता है।
जब आत्मा और मस्तिष्क मिलते हैं,
तो कोई भी बाहरी आकर्षण उस गहरे जुड़ाव को नहीं तोड़ सकता।

इसी में असली प्यार है,
जहाँ दो लोग एक-दूसरे को केवल शारीरिक नहीं,
बल्कि भावनात्मक रूप से भी समझते हैं,
और एक दूसरे के अस्तित्व का सम्मान करते हैं।


सच्ची अंतरंगता


क्षणिक हाथ शरीर को छू सकते हैं,
पर केवल एक दुर्लभ आत्मा
तेरे अस्तित्व तक पहुँचती है।
सच्ची अंतरंगता स्पर्श में नहीं होती—
यह समझ में होती है,
यह वह स्थान है जहाँ हम सतह से परे देखे जाते हैं।

सतही को गुजरने दो,
जो असली है, वही रहेगा,
वह आकर्षित नहीं होता बस इच्छाओं से,
वह गहराई से खींचा जाता है।

जब आत्मा एक-दूसरे को महसूस करती है,
तब प्रेम का असली रूप होता है,
जो कभी भी क्षणिक नहीं होता,
बल्कि हमेशा उस गहरी कनेक्शन में स्थिर रहता है।


वास्तविकता की खोज



लालसा ध्यान खींचती है,
पर गहराई उसे थामे रखती है।
एक शरीर चाहा जा सकता है,
लेकिन जो मस्तिष्क और आत्मा जुड़ें,
वह तो बहुत ही दुर्लभ होता है।

शरीर का आकर्षण तो सहज होता है,
पर वह सच्चाई, वह कनेक्शन,
जो दिल और दिमाग से होता है,
वो ही असल प्यार है, जो सच्चा रहता है।

लालसा पल भर का होता है,
पर गहराई उस रिश्ते को स्थायित्व देती है।
जब आत्मा और मस्तिष्क जुड़े होते हैं,
तब वही संबंध सबसे वास्तविक और अनमोल होता है।


गहरे रिश्ते की तलाश



मैंने देखा है,
लालसा की चिंगारी से जलते दिलों को,
वे मुझे चाह सकते हैं,
पर गहराई में खो जाने की हिम्मत नहीं रखते।

एक शरीर कईयों की आँखों का आकर्षण बन सकता है,
पर एक आत्मा, एक मस्तिष्क,
जो सच में मुझे समझे,
वह कहीं और नहीं मिलता।

जब वे मेरी सोच को नहीं समझते,
तो वे कभी साथ नहीं रह सकते।
जो मेरी आत्मा को महसूस नहीं करते,
वे कभी मेरा साथ नहीं पा सकते।

शरीर तो आकर्षित करता है,
लेकिन जब बात होती है,
वास्तविक संबंधों की,
तब केवल गहराई में समाया सच्चा प्यार रहता है।

वह प्यार, जो न सिर्फ़ बाहरी रूप को देखता है,
बल्कि मेरे दिल, मेरे विचार,
और मेरे आत्मा के हर पहलू को महसूस करता है।
यही वह अंतरंगता है,
जो बेहद दुर्लभ होती है,
और वही हमेशा सचमुच मेरे पास रहती है।


प्रेम का चक्र


मैं जब तुझसे सच्चा प्यार करता हूँ,
तब मेरे दिल में न कोई दूरी, न कोई ग़म।
तेरे भीतर एक अजीब सी ख़ुशबू है,
जो मुझे तुझसे बार-बार जोड़ती है,
कभी फिर से बिछड़ती है,
फिर लौटकर उसी राह पर जाती है।

तुझसे प्रेम करना और तुझे समझना,
मेरे भीतर एक नयी दिशा को खोलता है।
तुझे स्वीकार करने से ही,
मेरे रिश्ते का पेड़ मजबूत होता है,
हर तूफान में फिर भी खड़ा रहता है।

तुझे पसंद करना, तुझे इज्जत देना,
यह वही कड़ी है, जो प्रेम को स्थिर बनाती है।
तेरी अच्छाई, तेरी खामियाँ,
साथ मिलकर हमारी यात्रा को और भी खास बनाती हैं।

मैं जब तुझे सच्चे मन से चाहता हूँ,
तो मैं सिर्फ़ अपने दिल की आवाज़ सुनता हूँ।
यह वही प्यार है, जो बार-बार
मुझे तेरे करीब ले आता है,
हर बार तुझसे फिर से जुड़ जाता है।

क्योंकि प्रेम वही होता है,
जो कभी खत्म नहीं होता,
जो बदलता है, पर एक नयी शक्ल में
हमेशा उसी व्यक्ति से जुड़ा रहता है।


Unveiling the Influence of Negative Forces: Insights from the Vedas.--- Part 2



In the sacred scriptures of the Vedas, the ancient texts that embody the spiritual wisdom of India, we find profound insights into the nature of negative forces and their impact on human consciousness. Drawing from the timeless wisdom of the Vedas, let us explore how these negative powers exert their influence and how we can overcome them through the power of spiritual practice and self-awareness.

ॐ असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मामृतं गमय॥
शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

Om Asato Ma Sadgamaya.
Tamaso Ma Jyotirgamaya.
Mrityorma Amritam Gamaya.
Om, lead us from falsehood to truth,
From darkness to light,
From death to immortality.
Peace, Peace, Peace.

In this profound shloka from the Brihadaranyaka Upanishad, we are reminded of the eternal quest for truth, light, and immortality. It speaks to the transformative journey from ignorance to knowledge, from darkness to enlightenment, and from mortality to spiritual liberation. It encapsulates the essence of the Vedic teachings, which offer guidance on how to overcome the negative forces that obscure our true nature and hinder our spiritual growth.

The Vedas teach us that negative powers, often referred to as asuras or demons, manifest in various forms and exert their influence on the human psyche. They embody qualities such as ignorance (avidya), egoism (ahamkara), attachment (raga), aversion (dvesha), and delusion (moha), which bind us to the cycle of suffering and prevent us from realizing our divine potential.

One of the most famous examples of negative influence in the Vedas is the story of the churning of the ocean (Samudra Manthan). According to Hindu mythology, the Devas (celestial beings) and the Asuras (demons) joined forces to churn the ocean in search of the nectar of immortality (amrita). As the churning progressed, various divine and demonic beings emerged from the ocean, including the goddess Lakshmi and the poison Halahala. This mythological tale symbolizes the eternal struggle between positive and negative forces within the human psyche, and the need to cultivate virtues such as patience, perseverance, and humility in order to overcome adversity and attain spiritual enlightenment.

In the Bhagavad Gita, Lord Krishna imparts timeless wisdom to the warrior prince Arjuna, guiding him through the battlefield of life and teaching him how to overcome the negative forces of doubt, fear, and attachment. He exhorts Arjuna to cultivate detachment (vairagya) and equanimity (samatvam) in the face of adversity, and to perform his duties (karma) with devotion and selflessness. Through the practice of yoga, Arjuna learns to transcend his ego and align himself with the divine will, ultimately achieving victory over his inner demons and realizing his true nature as a divine being.

In conclusion, the Vedas offer profound insights into the nature of negative forces and their influence on human consciousness. By cultivating virtues such as wisdom, humility, and devotion, and by practicing yoga and meditation, we can overcome the negative forces within us and attain spiritual liberation. As we embark on this transformative journey, may we be guided by the timeless wisdom of the Vedas and realize our divine potential as embodiments of truth, light, and immortality.

संबंधों की गहराई



मैंने जब चाहा मन को पढ़ना,
शब्दों के पीछे की गूंज को सुनना।
तो पाया कि स्पर्श से परे भी,
रिश्तों की एक अनकही धुन है बहना।

जिसे लोग प्रेम समझ बैठे,
वो क्षणिक आग का खेल था।
तन की लपटों में खो गए,
मन की रोशनी का मेल था।

मैंने जब आत्मा को टटोला,
तो पाया प्रेम था मौन वहाँ।
ना कोई देह, ना कोई वासना,
बस आत्मीयता का था घर वहाँ।

पर समाज का चेहरा देखूँ,
तो हर नज़र में भूख ही है।
भावनाओं को छोड़ सबको,
बस जिस्म की तलाश ही है।

मैं ढूंढता हूँ वो स्पर्श,
जो आत्मा को छू सके।
वो संवाद, जो मौन में भी,
मन के भीतर कुछ कह सके।

क्योंकि क्षणिक लपटों में रिश्ते जलते हैं,
पर आत्मा की लौ सदा जलती रहती है।
मैं देह से नहीं, मन से प्रेम करता हूँ,
जो सदा के लिए मेरे संग बहती है।


आध्यात्मिक जगत: अपने अंदर का खोज

### आध्यात्मिक जगत: अपने अंदर का खोज

आध्यात्मिक जगत कहीं बाहर नहीं है। यह मृत्यु के बाद जाने जाने वाली ऊँची जगह या स्वर्ग नहीं है।

आध्यात्मिक जगत सिर्फ ब्रह्मांड के भीतर से अधिक गहरा और सूक्ष्म धारणा है।

यह हमारी चेतना का विस्तार है, सीमित 'मैं' से ब्रह्मांड तक।

### अपने अंदर की खोज

आध्यात्मिक जगत में आने का मतलब है कि हम अपने अंदर की खोज करते हैं। यह जगत के गहराईयों को समझने का एक नया तरीका है। यहाँ जगत की अधिक सूक्ष्म और गहरी वस्तुओं की उन्नति और समझ होती है, जो हमारी सामान्य दृष्टि से परे हैं।

### चेतना का विस्तार

आध्यात्मिक जगत का अर्थ है हमारी चेतना का विस्तार। यह हमें सीमितता से मुक्ति, संघर्ष से शांति और अस्तित्व का अनुभव कराता है। यह हमें विश्व के साथ एकता और समरसता का अनुभव कराता है, जिससे हम अपने आत्मा की असीमितता में एकता का अनुभव करते हैं।

### समाप्ति

आध्यात्मिक जगत में आना मानसिकता और धारणा की एक नई स्तर की खोज है। यह हमें उस सूक्ष्म और अद्वितीय वास्तुओं की उन्नति में मदद करता है जो हमारी सामान्य दृष्टि से परे हैं। इससे हम अपने अस्तित्व को समझते हैं और उसे समृद्ध और सुरक्षित बनाने के लिए नई दिशा में बढ़ते हैं।

Unveiling the Influence of Negative Forces: Lessons from the Vedas.


In the eternal wisdom of the Vedas, we find profound insights into the workings of the universe, including the influence of negative powers on our lives. Through Sanskrit shlokas and timeless teachings, let us explore how these negative forces affect us and how we can overcome their impact.

असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय।

"Lead me from the unreal to the real.
Lead me from darkness to light.
Lead me from death to immortality."

In this ancient shloka from the Brihadaranyaka Upanishad, we are reminded of the eternal quest for truth, light, and immortality. It speaks to the pervasive influence of negative forces—untruth (asat), darkness (tamas), and mortality (mrityu)—that seek to obscure our path and lead us astray from our true nature.

Throughout the Vedas, we find cautionary tales of the destructive power of negative forces, from the story of Indra's battle with Vritra, the demon of drought, to the trials of Rama and Sita in the Ramayana. These stories serve as allegories for the inner struggles we face in our own lives, as we grapple with the forces of ignorance, ego, and desire that threaten to overshadow our innate divinity.

Yet, amidst the darkness, the Vedas offer guidance and hope, reminding us of the power of knowledge (vidya) to dispel ignorance, the power of humility (vinaya) to overcome ego, and the power of devotion (bhakti) to transcend desire. Through the practice of yoga, meditation, and righteous living, we can cultivate inner strength and resilience, shielding ourselves from the influence of negative forces and aligning ourselves with the divine.

In the Bhagavad Gita, Lord Krishna imparts timeless wisdom to Arjuna on the battlefield of Kurukshetra, teaching him to rise above the dualities of pleasure and pain, success and failure, light and darkness. He reminds Arjuna that the true warrior is one who remains steadfast in the face of adversity, anchored in the eternal truth of the Self (atman) and guided by the divine will (dharma).

As we navigate the challenges of life, let us heed the teachings of the Vedas and strive to overcome the influence of negative forces. Let us cultivate inner purity, strength, and wisdom, drawing inspiration from the timeless wisdom of the ancients and the divine grace that dwells within us all. Through steadfast devotion and righteous action, may we lead ourselves from darkness to light, from ignorance to wisdom, and from mortality to immortality.

पाप और धर्म का चक्र



पाप से बचने को पाप रचूँ,
छल से अपने पथ को सजूँ।
पर पाप की छाया में ही,
फिर-फिर मैं भटकूँ, उलझूँ।

धर्म छुपे जब मन के कोने,
अधर्म ही फिर गीत सुनाए।
पर सत्य छिपता कब तक भला,
धर्म पुकारे, वापस आए।

मैंने जब भी धर्म को त्यागा,
पापों ने आकर मुझको बाँधा।
पर जब भीतर दीप जलाया,
धर्म सखा बन, पास में आ खड़ा।

यह चक्र अनादि, यह चक्र अनंत,
मनुज रहे इसमें सदैव लिप्त।
पर जिसे मिला अंतःप्रकाश,
वह पा गया मोक्ष का द्वार।


Unveiling the Influence of Negative Forces: Insights from Vedic Wisdom



In the eternal wisdom of the Vedas, we find profound insights into the nature of existence, including the workings of both positive and negative forces that shape our lives. Let us explore the concept of negative power, known as "asuric shakti" in Sanskrit, and its impact on human consciousness through the lens of ancient Vedic wisdom.

In the Bhagavad Gita, Lord Krishna imparts timeless teachings to Arjuna on the battlefield of Kurukshetra, revealing the eternal struggle between light and darkness, good and evil. In Chapter 16, Verse 4, Lord Krishna describes the characteristics of those under the sway of negative forces:

"Dambho darpo’bhimānascha krodhah pārushyam eva cha; 
Ajñānam cha bhavabhāvam cha daivī sampad vimokshayā."
 (Bhagavad Gita 16.4)

Here, Lord Krishna delineates the traits of the "asuric" or demonic nature, including pride, arrogance, anger, harshness, ignorance, and delusion. These qualities, driven by ego and selfish desires, lead individuals away from the path of righteousness and spiritual evolution, binding them to the cycle of suffering and ignorance.

The influence of negative power is not limited to individual behavior but extends to societal structures and collective consciousness as well. In the Rigveda, an ancient hymn composed thousands of years ago, we find references to the struggle between the forces of light (devas) and darkness (asuras), symbolizing the eternal conflict between higher consciousness and lower instincts.

"तमवासं जिघ्रतो अद्रिरोददर्श चक्षुरदिद्युरस्मै।
तविषा वज्रिणं दास्यं वृत्रं हन्मि अमित्रमिन्द्र मे॥" (Rigveda 1.32.1)

In this verse, the seer invokes the aid of the divine warrior Indra to overcome the darkness represented by the demon Vritra. The imagery of light conquering darkness symbolizes the triumph of truth over falsehood, wisdom over ignorance, and righteousness over evil.

In our modern world, we continue to witness the influence of negative forces in various forms, including greed, hatred, violence, and injustice. However, the teachings of the Vedas offer us timeless wisdom and guidance on how to overcome these negative influences and cultivate a life of virtue, harmony, and inner peace.

By cultivating qualities such as humility, compassion, wisdom, and selflessness, we can transcend the limitations imposed by negative forces and align ourselves with the divine principles of truth, love, and righteousness. In doing so, we not only uplift ourselves but also contribute to the collective evolution of humanity towards a brighter and more enlightened future.

अंतरजगत का साझा



जब खोले हमने अपने मन के द्वार,
तो देखा भीतर का अनमोल संसार।
शब्दों के संग जो बहती धार,
वही बनती है आत्मा का उपहार।

अपने अंतरजगत को जो कह दिया,
उसने हमें सत्य से लय दिया।
हर भावना, हर सोच का प्रवाह,
बनता है जुड़ने का सच्चा राह।

यह साझा करना कोई साधारण बात नहीं,
यह तो रूह का रूह से मिलन सही।
जो भीतर छुपा है, वही असल हम हैं,
उसे कह देने से ही तो हम संगम हैं।

जब कोई समझे हमारी गहराई,
तो जुड़ जाए एक नयी परछाई।
अंतरजगत का यह खुला दर्पण,
दिखाता है आत्मा का हर क्षण।

इस साझा में है प्रेम का सार,
यही है सच्चे रिश्तों का आधार।
जो समझ ले इस गूढ़ सत्य को,
वही पाए जीवन के अर्थ को।


मैं और मेरे निशान



जो भीतर तक आने दिया,
वह मेरा हिस्सा बन गया।
ना मन से, ना तन से मिटा,
वह मुझमें कहीं सदा बसा।

मैंने जो स्पर्श महसूस किया,
उसने मेरा अस्तित्व बदल दिया।
हर लम्हा, हर पल की छाया,
मेरे भीतर अनजाने समाया।

शरीर तो मात्र एक माध्यम है,
मन भी इससे अछूता कहाँ है।
जो घुला मेरे एहसासों में,
वह बसा है मेरे सांसों में।

यादों की नसों में बसी वो बात,
मिटा न सके कोई आघात।
मैं जो हूँ, उसमें वे शामिल हैं,
उनके निशान मेरे दिल में क़ायम हैं।

हर अनुभव मुझमें नया आकार लेता,
हर स्पर्श मेरा जीवन बदल देता।
मैं हूँ वो जो मैंने जिया,
जो भीतर समाया, वह कभी न गया।


long lost life

During the COVID-19 pandemic, I spent three months living in a small one-room apartment in Mumbai. Initially, I had planned to go back to my hometown in Uttarakhand and enjoy the beauty of the Himalayas. However, the lockdown restrictions made it impossible for me to travel.

Living in a confined space for an extended period was a new experience for me. I had to learn how to manage my time and resources efficiently. I spent most of my days working from home, taking online classes, and exercising indoors. The lack of outdoor activities was challenging, but I tried to make the most of the situation by exploring nearby parks and markets during the permitted hours.

The lockdown also gave me the opportunity to connect with my family and friends virtually. We played online games, watched movies together, and shared our experiences of living through the pandemic. It was comforting to know that we were all in this together.

Although I missed the fresh mountain air and scenic beauty of Uttarakhand, I learned to appreciate the simple pleasures of city life during this time. The hustle and bustle of Mumbai, the delicious street food, and the vibrant culture kept me entertained and engaged.

In conclusion, living through the COVID-19 pandemic has been a rollercoaster ride, but it has also taught me valuable lessons about resilience, adaptability, and gratitude. I am grateful for this experience and hope that someday soon, I will be able to explore the Himalayas once again.

स्वतंत्रता की पराकाष्ठा


सबसे बड़ी स्वतंत्रता क्या है?
ये कि तुम वास्तविकता को
जैसा चाहो, वैसा देख सको।
चाहे उसे अपने अर्थ दे दो,
या उसे बिना अर्थ के छोड़ दो।

हर दृश्य, हर शब्द, हर कहानी,
तुम्हारी दृष्टि पर निर्भर है।
तुम्हारी आँखें तय करेंगी,
ये दर्द है, या जीवन का रंग है।

जो देखा, उसे गहराई दो,
या बस उसे बहने दो।
ये चुनाव तुम्हारा है,
किसी और का नहीं।

कभी सत्य को पकड़े रखना,
कभी उसे छूट जाने देना।
कभी व्याख्या में उतर जाना,
कभी ख़ामोशी में खो जाना।

यही तो है असली मुक्ति,
जहाँ ना बाध्य हो तुम अर्थ देने को,
ना मजबूर हो तुम उसे समझने को।
बस एक साक्षी बन जाओ,
और जीवन को बहने दो।

क्योंकि वास्तविकता का सत्य यही है—
वो तुम पर निर्भर करती है।
उसे तुम जैसा बनाओगे,
वो वैसा ही तुम्हारे सामने आएगी।


नज़रों का रहस्य



यह हर चीज़ में है,
जिस तरह कोई बोलता है,
जिस तरह वह खुद को प्रस्तुत करता है,
उसकी बॉडी लैंग्वेज,
उसकी हर एक हरकत में छिपा होता है एक संदेश।

मैं पहले हैरान था,
कैसे लोग दूसरों को इतनी आसानी से पढ़ लेते हैं,
लेकिन अब हैरान हूँ कि क्यों लोग
जब यह सब सामने होता है,
तब भी इसे समझ नहीं पाते।

कभी लगता है,
क्या यह सब एक खुला राज़ नहीं है?
क्या यह संकेत इतने स्पष्ट नहीं हैं?
कभी किसी की चाल,
कभी उसकी आँखें,
कभी उसकी खामोशी
कभी उसकी बातों में चुपी हुई सच्चाई।

यह सब कुछ हमारे सामने ही होता है,
फिर भी हम नज़रअंदाज कर देते हैं,
क्योंकि हम उस झलक को देख नहीं पाते,
जो हमें इतनी पास से बुला रही होती है।

हमारी आँखों के सामने की सच्चाई,
शायद हमें एक बार फिर समझने की ज़रूरत है।
कभी यह विचार आता है,
कि हमें अपनी नज़रों को और गहरे से खोलने की ज़रूरत है,
क्योंकि जो दिखता है, वह सिर्फ सतह तक नहीं,
उसके नीचे एक पूरी दुनिया छुपी होती है।


आंखों में छुपा दर्द



आंखों का एक ख़ास सफर होता है,
जो हमारी सबसे गहरी भावनाओं को खोल देता है।
कभी हमें लगता है,
कि शब्द नहीं, बस एक नज़र ही सब कुछ बता देती है।

लड़ाई की स्थिति में,
आंखों में एक तीव्रता होती है,
जैसे हर पल तुम्हें आंक रहे हों,
जैसे हर हलचल पर तुम्हारी नज़रों की जाँच हो रही हो,
क्योंकि भीतर एक डर है,
कि कहीं तुम उसे समझ न सको,
और वो तुम्हें जज कर रहा हो।

उड़ान की स्थिति में,
आंखें झपकती हैं,
नज़रे इधर-उधर घूमती हैं,
क्योंकि अंदर का भय घेरता है,
आंखों में स्थिरता नहीं बनती,
क्योंकि पलायन ही एकमात्र रास्ता लगता है।

ठहराव की स्थिति में,
आंखों में एक खालीपन होता है,
जो जैसे किसी और दुनिया में खो गया हो।
आंखें सब कुछ देख रही होती हैं,
लेकिन कहीं से भी जुड़ी नहीं होतीं,
जैसे शरीर यहाँ है,
लेकिन मन कहीं और है।

संतुष्टि की स्थिति में,
आंखों में एक विनम्रता होती है,
एक अभ्यस्त मुस्कान छुपी होती है,
जो हमेशा तुम्हारी स्वीकृति की चाहत में रहती है।
आंखों से यह व्यक्त होता है,
कि वो सिर्फ तुम्हारी उम्मीदों को पूरा करना चाहते हैं।

आंखों का ये संसार गहरा और रहस्यमय है,
जो बिना बोले बहुत कुछ कह देता है।
कभी शब्दों की ज़रूरत नहीं होती,
जब नज़रों में इतना बड़ा कहानी छिपा हो।


शॉपिंग मॉल: एक मृत व्यवसाय

### शॉपिंग मॉल: एक मृत व्यवसाय

शॉपिंग मॉल्स को इतिहास एक सबसे खराब मानव प्रयोग के रूप में याद रखेगा। अंततः, सभी शॉपिंग मॉल 'आलसी लोगों की अतिभोगवादी मानसिकता' के खंडहरों के रूप में खड़े रहेंगे, जिनकी लालच ने सबसे अप्राकृतिक संरचनाओं को जन्म दिया। ऑनलाइन शॉपिंग के कारण शॉपिंग मॉल्स अव्यवहारिक हो जाएंगे। नए व्यापार मॉडल पुराने को बदलते रहते हैं... यह पहले भी हुआ है और आगे भी होगा। 

### उपभोक्ता आवश्यकताएँ: एक साधारण जीवन

एक साधारण व्यक्ति को केवल एक छोटा घर, कुछ जोड़े कपड़े और 2500 कैलोरी की आवश्यकता होती है। तो फिर बाज़ार और रेस्तरां नए व्यापार मॉडल के बावजूद कैसे जीवित रहते हैं? अगर वे सही जगह पर नहीं होते हैं तो रेस्तरां अक्सर बंद हो जाते हैं। मेरे अपने अवलोकन के अनुसार, हर 100 नए रेस्तरां में से 80 (नए और पुराने दोनों) बंद हो जाते हैं। 

### ऑनलाइन डिलीवरी: रेस्तरां व्यवसाय के लिए चुनौती

आजकल, रेस्तरां को ऑनलाइन डिलीवरी से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है, जो कि बिना महंगे रियल एस्टेट लागत के कम कीमत पर सेवाएं प्रदान कर सकते हैं। इस चुनौती ने कई पारंपरिक रेस्तरां मालिकों को अपने व्यापार मॉडल पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया है। 

### शॉपिंग मॉल्स की अवनति

शॉपिंग मॉल्स ने 1980 और 1990 के दशक में बड़े पैमाने पर लोकप्रियता हासिल की। वे न केवल खरीदारी के लिए बल्कि मनोरंजन और सामाजिक मेलजोल के केंद्र के रूप में भी उभरे। लेकिन 21वीं सदी के आरंभिक वर्षों में ऑनलाइन शॉपिंग के उदय ने इस पारंपरिक व्यापार मॉडल को गंभीर रूप से चुनौती दी। 

समय के साथ, जैसे-जैसे डिजिटल युग का प्रभाव बढ़ता जाएगा, शॉपिंग मॉल्स और पारंपरिक रेस्तरां को अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए अपने व्यापार मॉडल को बदलना पड़ेगा। जो इसमें सफल होंगे वे भविष्य में भी जीवित रहेंगे, जबकि जो नहीं कर पाएंगे वे इतिहास के पन्नों में खो जाएंगे। 

इस परिवर्तनशील व्यापार परिदृश्य में, एक व्यक्ति को सोच-समझकर निवेश और उपभोक्ता व्यवहार को अपनाने की आवश्यकता है। तकनीकी प्रगति और उपभोक्ता की बदलती प्राथमिकताएँ हमेशा नए और अभिनव व्यापार मॉडल को जन्म देती हैं।


### शॉपिंग मॉल्स: एक मृत व्यापार?

#### ऐतिहासिक दृष्टिकोण

शॉपिंग मॉल्स का उदय और पतन मानव इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है। 20वीं सदी के उत्तरार्ध में, शॉपिंग मॉल्स उपभोक्तावाद के प्रतीक बने। बड़े-बड़े मॉल्स शहरों के केंद्र में उभरे, जहाँ लोग खरीदारी, मनोरंजन और सामुदायिक गतिविधियों के लिए जुटते थे। लेकिन, 21वीं सदी में, ऑनलाइन शॉपिंग के आगमन ने मॉल्स के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया।

#### शॉपिंग मॉल्स का पतन

आजकल, ऑनलाइन शॉपिंग की बढ़ती लोकप्रियता ने मॉल्स को अप्रासंगिक बना दिया है। लोग अब घर बैठे ही अपनी आवश्यकताओं की वस्तुएं मंगा सकते हैं। नतीजतन, मॉल्स खाली हो रहे हैं और कई मॉल्स बंद हो गए हैं या जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं। यह बदलाव स्पष्ट रूप से दिखाता है कि उपभोक्तावाद के इस रूप में कितना बदलाव आया है।

#### नई व्यापार मॉडल्स का उदय

यह पहली बार नहीं है जब एक व्यापार मॉडल ने दूसरे को प्रतिस्थापित किया है। इतिहास में कई उदाहरण हैं जहाँ नई तकनीकों और व्यापारिक मॉडल्स ने पुराने तरीकों को अप्रासंगिक बना दिया। उदाहरण के लिए, वीडियो रेंटल स्टोर्स का अस्तित्व खत्म हो गया जब स्ट्रीमिंग सेवाएं आईं। यह सिर्फ प्रगति का हिस्सा है

#### बाजार और रेस्टोरेंट्स का अस्तित्व

हालांकि, बाजार और रेस्टोरेंट्स अभी भी प्रासंगिक बने हुए हैं। इसके कई कारण हैं:
1. **सामाजिक अनुभव:** बाजार और रेस्टोरेंट्स केवल खरीदारी या भोजन करने के स्थान नहीं हैं, वे सामाजिक संपर्क और सामुदायिक अनुभव प्रदान करते हैं।
2. **विशिष्टता:** कई बाजार और रेस्टोरेंट्स अपने विशेष उत्पादों और सेवाओं के कारण लोगों को आकर्षित करते हैं।

#### रेस्टोरेंट्स की चुनौतियाँ

रेस्टोरेंट्स भी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, खासकर ऑनलाइन डिलीवरी सेवाओं की बढ़ती लोकप्रियता के कारण। कई रेस्टोरेंट्स बंद हो रहे हैं क्योंकि वे महंगे रियल एस्टेट और संचालन लागत को वहन नहीं कर पा रहे हैं। ऑनलाइन डिलीवरी सेवाएं कम लागत में खाना उपलब्ध करा रही हैं, जिससे रेस्टोरेंट्स को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है।

#### निष्कर्ष

शॉपिंग मॉल्स का पतन और ऑनलाइन शॉपिंग का उदय यह दर्शाता है कि व्यापार मॉडल्स में बदलाव अनिवार्य है। बाजार और रेस्टोरेंट्स ने अब तक अपनी प्रासंगिकता बनाए रखी है, लेकिन उन्हें भी बदलते समय के साथ तालमेल बिठाना होगा। अंततः, केवल वही व्यापार मॉडल्स टिक पाते हैं जो समय के साथ खुद को ढाल लेते हैं।