विश्वास की खोज में, अपने आप को पाते हुए,

पहाड़ों से निकलकर जग में खोया,
अपने आप को खोजते खोजते खो गया।
नया सोना, नए संगीत की खोज,
मेरे अंतर में एक नया सफर जोड़ा।

नए लोग, नए दोस्त, नए सपने,
जीवन की नई लहरों में बहते हुए।
कुछ नया हो गया है, कुछ भी नहीं है बदला,
पर मन में नयी उमंगें जगाते हुए।

हर कदम पे नयी चुनौतियाँ,
हर पल पे नया सिक्का चला।
क्या मैं नया हो गया हूं, या वही पुराना,
ज़िन्दगी की इस लड़ाई में, नया स्वर गुनगुनाते हुए।

विश्वास की खोज में, अपने आप को पाते हुए,
हर सपने को हकीकत में बदलते हुए।
कुछ करने का हौंसला, कुछ करने की लालसा,
जीवन की धरा में, नए सागर को छू लेते हुए।

सीखते हुए, मैं आगे बढ़ रहा हूँ,

पहाड़ों से निकला, मैं अनजान सफर में,
कुछ नया सीखते हुए, अपने आप से लड़ते हुए।
सब कुछ बदल गया, पर मैं न कुछ बदला,
या शायद बदल रहा हूँ, इस नए दौर में बना।

नए लोग, नए दोस्त, नए सपने हर और,
पर कहीं भी, मैं खुद को पहचानता हूँ।
नए खान, नए सोने की चाह में,
मैं खुद को खोते हुए, अपने सपनों के बड़े सपने।

कुछ नया सीखते हुए, मैं आगे बढ़ रहा हूँ,
विश्वास अपने आप पर, धीरे-धीरे बढ़ता हूँ।
कुछ करने की चाह, कुछ बनने की लालसा,
जीवन के सफर में, खुद को पाने की उम्मीद सहसा।

बड़ा कुछ करने का सपना, हृदय में जलता है,
नए रास्तों पे चलते हुए, अपने सपनों का पूरा करता है।
नए होने का ख्वाब, पुराने हौसले के साथ,
मैं आगे बढ़ता हूँ, हर दिन, नई राहों की खोज में निकलता हूँ।

जीवन के पथ पे, नया अवलोकन,

पहाड़ों से निकला, अनजान सफर में,
खुद को ढूंढता, नये रास्तों में।
सब कुछ बदल गया, पर मैं कहाँ,
क्या नया हूँ, या पुराना हूँ फिर वही आँखें?

नए लोग, नए दोस्त, नया सोना, नया स्वप्न,
मैं क्या हूँ, कहाँ खोया, कौन सा सफर अपने? 
पर विश्वास बढ़ता, अपनी माया में,
कुछ करना है, बहुत कुछ, अब और नया मंज़िल की ओर चलते हैं।

जीवन के पथ पे, नया अवलोकन,
सीख रहा हूँ, सोच रहा हूँ, और आगे बढ़ रहा हूँ।
मेरे सपनों की उड़ान, अब है सच होने की राह,
नए जोश में, नयी उम्मीद के साथ, जीता हूँ मैं यह संघर्ष का लड़ाह।

दिल्ली के बाजारों में,

घर से पहाड़ों की ओर, एक नजर जाती है,
शहरों की गलियों में, उसकी कहानी बनती है।
पासे-अपने सपनों की, उसकी आशाओं की छांव,
दिल्ली के बाजारों में, उसकी खुशियों की रवानी बनती है।

वहाँ आकर, वह सीखता है, वहाँ खो जाता है,
नए सपनों की राहों में, वह खुद को पाता है।
पुराने सपनों की, वह आबादी बदलता है,
नई धुनों के साथ, वह अपना नाम रचता है।

रूटीन की बातों में, उसकी बेबसी गुम होती है,
शहर की धड़कनों में, उसकी खोज धूमिल होती है।
प्यार से छू जाता है, हर अनजान रोशनी का पता,
नई दुनिया में, वह अपने सपनों का जहाँ सजाता है।

धरती की गोद में, उसका हर कदम धूल जाता है,
पर शहर के रास्तों में, उसका सपना बढ़ता है।
उसके हौसलों से, हर मुश्किल को हरा देता है,
नई दुनिया में, उसका नाम बड़ा और गौरवशाली बनता है।

दिल्ली की धूम-धाम में,

ऊँची पहाड़ों की चोटी से,
निकला एक युवा वीराना हवाओं के सहारे।
छोड़ आया घर की छाँव, छोड़ गया अपने परिवार का संग,
शहरों की गलियों में, उसने अपना नाम बुना हर रंग।

दिल्ली की धूम-धाम में, उसने अपनी दास्ताँ लिखी,
जीवन की हर कठिनाई से, वह ने अपनी मंजिल को सलाखों में छिपी।
शहर की भीड़ में, खो गया वह अकेला,
पर अपनी ताक़त से, जीता उसने हर अजनबी का मेला।

जीने का नया अद्भुत अनुभव, सिखता गया वह हर पल,
कठिनाइयों में भी, ढूँढता गया अपना लक्ष्य का पता।
पहाड़ के पीछे से, शहरों की दुनिया में,
वह खोजता रहा, अपने सपनों की वही सीमा।

धरती की गोद में, बड़े-बड़े शहरों की खोज,
उसने किया अपना नाम, बनाया अपनी ही कोशिशों का मोल।
पहाड़ के ऊपर से, शहरों में आकर,
वह जीता गया, खुद को पहचानकर।

घर के दीवारों के बाहर,

घर के दीवारों के बाहर,
पहाड़ों की गोद में बसा संघर्ष वीर।
उसने छोड़ दिया अपने निवास को,
नए सपनों की खोज में, चला उसने दूर दरिया पार।

सड़कों की गर्मी, शहरों की भीड़,
उसने स्वप्नों को अपने दिल में बसा लिया।
जीवन की कठिनाइयों से लड़ते हुए,
नई राहों को अपनाते हुए, उसने खुद को पाया।

दिल्ली की सड़कों पर चलते हुए,
सपनों के पंखों को फैलाते हुए, उसने अपना नाम बनाया।
सीखने का जज्बा, करने की चाह,
उसके हर कदम से नई कहानियाँ बुनी जाती गई।

पहाड़ की चुपचापी रातों में,
उसने अपने सपनों को साकार किया।
शहर की रौशनी में, उसकी खुशियाँ खिली,
नए सपनों की धुंध से, उसने अपने दिल को मिला।

अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...