संकोच और साहस



संकोच में बसी डर की छाया,
न टूटे जो बंधन, न हो कोई साया।
साहस है वह जो दिल में जागे,
बिना डर के आगे बढ़े, न कोई चुटकी में भागे।

जो कांपते हैं, वे कभी नहीं जीतते,
जिन्होंने साहस दिखाया, वही ऊंचाइयों को छूते।
संकोच सिर्फ असमर्थता की ओर इशारा करता है,
पर साहस भविष्य को उज्जवल बनाता है, रुकावटों को हराता है।

कभी कभी संकोच भी दिखावा बनता है,
जब संयम और स्थिरता से यह आगे बढ़ता है।
वह समय की परख है जो साहस से भी बड़ा,
जिसे विवेक के साथ बांधकर, सफलता पाई जाती है सदा।

साहस भी चाहिए, पर विवेक का साथ,
यह दोनों मिलकर बनाएं भविष्य का मार्ग।
संकट में जो शांत रहे, वह विजय पाता है,
क्योंकि जो समय से चुप रहते हैं, वे ही सही दिशा पाते हैं।



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