"तुम्हारा साहस – मेरी श्रद्धांजलि"
(एक समर्पण, एक कविता)
तुममें खुद पर यक़ीन करने की जो बात है,
वो किसी क्रांति से कम नहीं लगती।
टूटे सपनों को सीने से लगाकर
तुमने जो मुस्कुराना सीखा है,
वो मेरे लिए एक इबादत है।
तुमने इस ज़माने की सड़ी हुई सोच को
अपने क़दमों के नीचे कुचला है।
जहाँ लोग सवाल करते हैं तुम्हारे कपड़ों,
तुम्हारी आवाज़, तुम्हारे हक़ पर—
वहाँ तुमने अपनी चुप्पी को भी
शोर बना दिया है।
तुम्हारे सपने
सिर्फ तुम्हारे नहीं हैं अब,
वो हम सबकी उम्मीद बन चुके हैं।
जब तुम कहती हो —
"मैं अपनी पहचान खुद बनाऊँगी",
तो लगता है जैसे इतिहास करवट ले रहा है।
इस पितृसत्तात्मक,
अक्सर हिंसक दुनिया में
जहाँ लड़की होना गुनाह समझा जाता है,
तुमने खुद को बाँहों में लिया,
और कहा —
"मैं ही मेरा प्रेम हूँ।"
तुमने अपने हर जख़्म को पूजा है,
हर आँसू को मोती बना दिया।
तुमने अपने भीतर उतर कर
अपनी सच्चाई को जाना है।
और मैं, एक दर्शक नहीं—
तुम्हारे इस युद्ध का गवाह हूँ।
तुम्हारा शरीर, तुम्हारी सेहत,
तुम्हारी चेतना —
सब कुछ एक मंदिर है,
जिसकी पूजा सिर्फ़ तुम्हें आती है।
तुमने जो साहस दिखाया है —
अपने लिए खड़े होने का,
अपने सपनों के पीछे भागने का,
अपने दर्द को ताक़त बनाने का —
उसके आगे मैं नतमस्तक हूँ।
तुम चलती हो,
कांटों से भरी राहों पर,
पर हर कांटा तुम्हारे इरादों से हार मानता है।
तुम चलती हो—
बस खुद बनने की ओर।
तुम्हारे भीतर जो क्रांति पल रही है,
वो इस दुनिया को नया आकार देगी।
प्रेम से जन्मी,
आत्मसम्मान की गोद में पली हुई —
वो क्रांति तुम्हारा दूसरा नाम है।
मैं तुम्हें देखता हूँ,
पूजता नहीं,
समझता हूँ।
क्योंकि तुम्हारा साहस —
मुझे भी नया इंसान बना रहा है।
तुम जैसी हो,
तुम वैसे ही रहो —
तुम्हारा होना ही काफ़ी है।
— तुम्हारा अपना
दीपक
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