अगर तुम किसी ऐसे बंधन में हो,
जहां खुद को खो देना पड़े,
जहां हर कदम डर से भरा हो,
और हर शब्द तौल कर बोलना पड़े,
तो जान लो, यह समय है
उससे बाहर निकलने का।
ऐसे रिश्ते,
जो आत्मा को घुटन में डाल दें,
जहां हर बातचीत
एक नया घाव बन जाए।
वो तुम्हारे लिए नहीं हैं,
और ना किसी के लिए होने चाहिए।
मैंने ऐसे समय में बहुत कुछ सीखा,
पर हर सीख दर्द से भरी थी।
ऐसे अनुभव,
जो गहराई से झकझोरते हैं।
उनसे मजबूत तो बनते हैं,
पर वो चोटें आज भी याद हैं।
किसी को भी ऐसा रिश्ता
कभी नसीब न हो।
न दुश्मन को,
और न किसी अजनबी को।
यह वो चक्र है,
जो आत्मा को थका देता है।
अब जब मैं देखता हूँ पीछे,
तो समझ आता है,
मुझे छोड़ देना था,
बहुत पहले।
अब मैं वादा करता हूँ खुद से,
ऐसे किसी रिश्ते में
कभी वापस नहीं जाऊँगा।
रिश्ता वही जो आज़ाद करे,
जो समझे, सुन सके, और बढ़ने दे।
जहां डर का नामो-निशान न हो,
जहां प्यार अपने असली रूप में हो।
याद रखो,
छोड़ना कमजोरी नहीं,
बल्कि खुद को बचाने की ताकत है।
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