बदलता हूँ मैं, ये तो है सच की कहानी,
हर दिन, हर पल, कुछ नया है सुहानी।
वक्त की चाल में, चलते हुए मैंने पाया,
कई लम्हें, कई लोग, मेरा रूप बदलते रहे सदा।
जिनसे मैं मिला, वो मुझमें थोड़ा रह गए,
उनके रंग, उनकी बातें, मुझमें कहीं बह गए।
हर मुलाक़ात, हर अहसास का हिस्सा हूँ मैं,
किसी का थोड़ा-सा और किसी का सारा हूँ मैं।
ज़िंदगी के रास्तों पर चलते-चलते खोया हूँ,
कभी अपनी परछाई, कभी ख़ुद को ही पाया हूँ।
रंग बदलते लोग, और उनके साथ मैं भी,
सच यही है कि मैं वही हूँ, पर हर पल नया भी।
जो गुज़रा, उसने कुछ नया सिखा दिया,
जो आने वाला है, वो कुछ और दिखा दिया।
बदलता हूँ मैं, ये वक्त का ही असर है,
रूह मेरी वही है, पर सफर का ये सफर है।
तो कहते हैं लोग कि मैं बदल गया हूँ,
सच तो ये है कि बदलते मौसम की तरह हूँ।
मैं बदलता हूँ, क्योंकि ज़िंदगी का क़ायदा यही है,
हर सुबह के साथ कुछ नया लाना यही मेरी रीत है।
No comments:
Post a Comment
thanks