यह असहज पर सत्य है, मानो या न मानो,
दुनिया की नज़रें, शरीर के आकार से पहचानो।
जो है स्वस्थ, सुदृढ़ और सुगठित,
वहीं समाज के सम्मान का पात्र बनता।
"शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।"
ऋषियों ने कहा, शरीर ही साधना का साधन।
पर आज यह सौंदर्य, यह शक्ति,
बन गया है आदर का कारण।
जो शरीर है सुडौल, जो छवि है सजीव,
उसके प्रति झुकता है हर व्यक्ति, हर सजीव।
नज़रें ठहरती हैं, शब्द बदल जाते हैं,
अचानक मान और प्रतिष्ठा बढ़ जाते हैं।
पर क्या यह सम्मान आत्मा का है?
या केवल बाहरी रूप की परछाई?
मनुष्य की असली पहचान,
शरीर के भीतर की गहराई है।
फिर भी, सत्य यह भी है,
स्वास्थ्य और शक्ति का अपना आकर्षण है।
जो शरीर है सशक्त, वह मन को बल देता,
जो स्वस्थ है तन, वह आत्मा को भी ऊंचा उठाता।
तो क्या करें? क्या केवल बाहरी रूप बनाएँ?
या शरीर और आत्मा दोनों को सजाएँ?
आकार को आधार न बनाओ,
पर स्वास्थ्य और संतुलन का महत्व समझाओ।
आदर यदि सच्चा चाहिए,
तो भीतर और बाहर, दोनों चमकाओ।
स्वस्थ शरीर, शांत मन, और निर्मल आत्मा,
यही है सच्चे सम्मान का रास्ता।
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