इनकार

इनकार, इनकार, इनकार — यही है उनका नियम,
सच को झूठ में बदलना, यही उनका धरम।
सामने की हकीकत भी, वे न मानेंगे,
हर सच्चाई को, अपनी चाल में छिपाएंगे।

कैमरे की नजरों में भी पकड़े जाते हैं,
पर फिर भी झूठ का सहारा लेते हैं।
जो किया नहीं, वही कहते हैं,
और जो किया है, उसे झुठलाते हैं।

मैंने जब सच को पहचाना,
तो उनके लिए दुश्मन बन जाना था ठिकाना।
सच की रोशनी से डरते हैं ये,
झूठ की छाया में जीते हैं ये।

मुझे अब समझ आया,
इनसे लड़ने का मतलब अपना वक्त गंवाना।
सच बोलकर भी, वे नहीं सुनेंगे,
अपने झूठ की दीवारों में ही बंधे रहेंगे।

इसलिए मैं अब बस दूर हो जाता हूं,
उनकी दुनिया से खुद को बचाता हूं।
क्योंकि उनके इनकार में सच्चाई नहीं,
और मेरी शांति का मोल झूठ से सस्ता नहीं।


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