प्रेम का नया सूर्योदय



मैंने प्रेम किया था,
बिना किसी सीमा के,
बिना किसी डर के।
हर धड़कन एक गीत थी,
हर स्पर्श एक वादा।
मैंने खुद को पूरी तरह सौंप दिया था,
यह सोचे बिना कि लौट पाऊँगा या नहीं।

फिर समय ने करवट बदली,
प्रेम टूटा, और मैं भी।
सपनों की किरचें पैरों में चुभीं,
मासूमियत धीरे-धीरे बह गई।
मैंने सीखा कि हर मुस्कान के पीछे सच्चाई नहीं होती,
हर स्पर्श में अपनापन नहीं होता।

पर मैं कठोर नहीं हुआ,
मैंने प्रेम से मुँह नहीं मोड़ा।
मैंने सीखा कि प्रेम खोने की चीज़ नहीं,
बल्कि संजोने की चीज़ है।
अब मैं प्रेम करूंगा,
पर आँखें खुली रखकर,
अब मैं विश्वास करूंगा,
पर पहले परखूंगा।

मैंने अपनी कोमलता को खोया नहीं,
बस सीखा कि उसे कहाँ रखना है।
अब मेरा प्रेम पहले से गहरा होगा,
पहले से अधिक सच्चा होगा।
अब मैं प्रेम करूंगा,
पर इस बार, समझदारी के साथ।


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