The Intricacies of Dream, Ambition, Efforts, and Madness: A Journey into the Psyche



In the labyrinth of the mind, where dreams intertwine with ambition, efforts, and madness, lies the essence of human existence. It is a realm where the boundaries between reality and imagination blur, and where the true depths of creativity emerge. Let us embark on a poetic exploration of this fascinating journey, delving into the psychology behind our dreams and the driving forces that propel us forward.

ख्वाबों की उड़ान, जिद का सफर,
मेहनत की राह, पागलपन की धार।

Dreams, like stars scattered across the night sky, beckon us to reach for the unreachable, to aspire for greatness beyond the confines of our mundane existence. They are the whispers of our soul, urging us to dare, to imagine, to believe in the boundless potential that resides within us.

Ambition, the fiery passion that ignites our spirit, fuels our pursuit of these dreams. It is the driving force that propels us forward, urging us to break free from the shackles of mediocrity and soar to new heights. With ambition as our guiding light, we navigate the tumultuous seas of life, undeterred by the storms that may lie ahead.

अभिलाषा की आग, सपनों का रंग,
हौसले की बारिश, उम्मीदों का संग।

Yet, mere dreams and ambition are not enough to bring our desires to fruition. It is the sweat of our brow, the toil of our labor, the relentless efforts we put forth, that transform our aspirations into reality. Every step we take, every obstacle we overcome, brings us closer to our goals, shaping us into the architects of our destiny.

And in our pursuit of greatness, we may find ourselves teetering on the brink of madness. For it is the madness of visionaries, the madness of those who dare to defy the status quo, that propels humanity forward. It is the willingness to embrace the unconventional, to challenge the norms, that sparks innovation and drives progress.

मेहनत की खुदाई, सपनों की पारी,
जिद की धारा, उम्मीदों की बारी।

In the life, woven with threads of dreams, ambition, efforts, and madness, lies the essence of creativity. It is the ability to see beyond the obvious, to connect the dots in new and unexpected ways, that gives birth to innovation. It is the fusion of imagination and intellect, of passion and perseverance, that transforms dreams into reality.

So let us embrace the complexity of our dreams, the fire of our ambition, the sweat of our efforts, and the madness of our aspirations. For in the depths of our psyche, lies the power to create, to inspire, to shape our destiny, and to illuminate the world with the brilliance of our imagination.

सपनों की दुनिया, अभिलाषाओं का सफर,
मेहनत का फल, पागलपन की बहार।

विचार बीज

मैंने सोचा है, एक छोटा सा बीज,
कैसी क्षमता छुपाए हुए है उसकी भीतर की नींव।
अगर वह जिंदा हो, उसमें प्राणों की धड़कन हो,
वह पूरी पृथ्वी को फूलों से भर सकता है, यही सत्य है, जिसे मैंने जाना।

विचार भी वही बीज है, जो मेरे भीतर बसा है,
अगर वह जीवित हो, उसमें मेरी सांसें, मेरा रक्त बहता है,
तो वह विचार मेरे जीवन को रूप दे सकता है,
और वह रूप इतना सुंदर होगा कि मैं उसे शब्दों में नहीं कह सकता।

जब तक विचार मेरे हृदय से नहीं निकला,
वह सिर्फ एक विचार नहीं, एक भ्रम था,
लेकिन जैसे ही वह मेरे प्राणों से जुड़ा,
वह सच्चाई बन गया, वह मेरा हो गया।

मेरे जीवन का यही उद्देश्य रहा,
तुम्हें हिलाना, झकझोरना, तुम्हें बताना,
कि तुम कब तक दूसरों के विचारों में खोए रहोगे,
कब तक उधार की सोच से अपनी राह तय करोगे।

शर्म आनी चाहिए, जब तक तुम दूसरों के विचारों में जीते हो,
क्या तुमने कभी अपने विचारों की स्वतंत्रता का एहसास किया है?
क्या तुमने कभी सोचा है,
कि तुम कब तक दूसरों के बनाए हुए रास्तों पर चलोगे?

विचार की स्वतंत्रता किसी अधिकार का नाम नहीं है,
यह एक अनुभव है, जिसे तुम्हें खुद खोजना होगा,
यह भ्रांति छोड़ दो कि किसी और से मिले अधिकार से,
तुम अपना सत्य जान सकोगे।

स्वयं से जुड़ो, अपने भीतर की आवाज़ सुनो,
तभी तुम अपने विचारों में स्वतंत्र हो सकोगे,
न लोकतंत्र, न समाज, न किसी व्यवस्था से,
तुम्हें खुद ही अपने विचारों को मुक्त करना होगा।

यह वह संपत्ति है, जो केवल तुम्हारी है,
कोई तुम्हारे लिए इसे नहीं ला सकता,
तुम्हें इसे महसूस करना होगा,
तभी तुम्हारा जीवन सच्ची स्वतंत्रता से भर जाएगा।


मैं सच बोलता हूं

यह बड़ी रहस्यमयी बात है, मैंने सोचा,
भलाई के सहारे बुरे होते हैं लोग, यह सच्चाई है जो खोला।
मैंने देखा, जितना अच्छा करने की कोशिश की,
उतना ही बुराई की ओर बढ़ते गए कदम, ये था मेरा अनुभव, जो मैंने महसूस किया।

कभी कहा, "मैं झूठ बोल रहा हूं,"
और इसका कारण था, किसी का भला करना, यह सोचकर मन से हल्का हुआ।
अगर मैं सच बोलता, तो कोई नुकसान होता,
लेकिन झूठ बोलकर मैंने एक जीवन को बचाया, ऐसा ही मेरा भ्रम था, जो मैंने अपने दिल में लाया।

मैंने सोचा, "अगर मैं किसी को धोखा दे रहा हूं, तो क्या गलत है?"
जब उसका भला करने का कारण हो, तो मुझे क्यों महसूस हो कोई दोष?
क्या सच में यह बुरा है, जब तुम किसी को बचाने के लिए करते हो गलत कार्य?
क्या भलाई के नाम पर बुराई भी सही हो जाती है, या यह बस एक बहाना है, मेरी सोच का विचार?

मैंने कहा, "यह झूठ है, लेकिन यह प्यार के लिए है,"
जब तक उद्देश्य सही है, तब तक मैं क्यों न इसे सही समझूं, यही था मेरा सिद्धांत।
सत्य के मार्ग पर मैंने कदम रखा था, लेकिन कभी देखा नहीं,
कि मेरे झूठ ने और अधिक भ्रम को जन्म दिया, यह बात मैंने आखिरकार समझी।

फिर मैंने सोचा, क्या मैं सच में किसी को बचा रहा हूं,
या अपनी ही मानसिक स्थिति में फंसा हूं, जिससे मैं सच से दूर जा रहा हूं?
क्या भलाई के नाम पर बुराई को बढ़ावा देना सही है?
क्या प्रेम, सत्य और दान के नाम पर बुरा करना मंजूर है?

अंत में मुझे यह एहसास हुआ,
कि जब तक मैं झूठ को सच के लिए बोलता हूं, तब तक मुझे सत्य से दूर जाने का डर नहीं है।
लेकिन क्या सच में यह सही है, जब मेरी नीयत सही हो,
क्या बुराई को अच्छाई के नाम पर करने का तरीका मुझे सही ठहराता है?

आखिरकार, मैं समझा, हर बार जो गलत होता है,
भलाई का सहारा लेने से वह सही नहीं हो जाता, यह एक भ्रम है जो हर दिल में पलता है।
और जब तक हम सच्चाई से समझौता करते रहेंगे,
हमारी भलाई के नाम पर बुराई को बढ़ावा देते रहेंगे।


मैं झूठ बोल रहा हूं

यह बड़े दिलचस्प है, जो तुम कहते हो,
भलाई के सहारे बुरे हो, फिर भी न समझ पाओ।
झूठ बोलते हो, एक अच्छे कारण के लिए,
प्यार, सत्य, या दान की शरण में हो तुम कहीं।

"मैं झूठ बोल रहा हूं," तुम कहते हो,
"क्योंकि बचाना है किसी को, नहीं तो वह खो जाएगा।"
सत्य की शरण में, बुराई को तुम ढूंढते हो,
प्रेम की आड़ में, अपनी गलती को तुम सजा देते हो।

वो झूठ भी, सच के लिए ही बोला जाता है,
एक गलत रास्ता, अच्छे उद्देश्य के साथ जाता है।
लेकिन क्या कभी सोचा तुमने,
क्या झूठ भी सत्य में बदल सकता है?

तुम बुरा कर रहे हो, अच्छे कारणों के लिए,
क्या यह सच्चाई का मार्ग है, या एक भ्रम है?
भलाई की आड़ में बुराई का खेल,
क्या हम कभी समझ पाएंगे, इस दार्शनिक सवाल का हल?


विज्ञान की चेष्टा में, हिंसा का रूप

विज्ञान की खोज में, बढ़ते हैं हम,
घूंघट उतारते, बस वस्त्रों को समझ।
परंतु न मर्म, न चेतना की गहराई,
सिर्फ शरीर की परतों की छाई।

कभी सोचा है क्या, ये सब क्या है?
देह दिख जाए, फिर भी चेतना का क्या है?
जैसे सुंदर स्त्री पर गंदे हाथों का वार,
विज्ञान भी तो करता है वही विचार।

आत्मा को न पा सका, शरीर में खोकर,
हर खोज में वह दूर है, कहीं और।
घूंघट की परतें, लाज से भी गहरी,
उसके भीतर है सत्य, वही है सच्ची तहरीर।

विज्ञान की चेष्टा में, हिंसा का रूप,
न प्रकृति को समझा, न पाया उसका स्वरूप।
शरीर से पार, आत्मा का खेल,
नारी की मर्म को समझो, तब ही होगा खेल।

कभी अपने भीतर की ओर मुड़ो तुम,
तब पाओगे सत्य का अलौकिक गुम।
विज्ञान नहीं, प्रेम से ही खुलती राह,
जहां छिपा है परमात्मा का सच्चा पहरा।


विज्ञान का बलात्कार

घूंघट के रहस्य को उघाड़ते विज्ञान के हाथ,
नसों में बहते सत्य को नहीं पहचान पाए साथ।
वस्त्रों के नीचे, देह तक पहुँच गए वे,
पर मर्म न देखा, आत्मा को न देख पाए वे।

घूंघट लज्जा का, जो सृष्टि ने दिया,
उसे हटा पाए नहीं, चाहे जितनी भी कोशिशें कीं।
देह की परतों को उघाड़ने से क्या लाभ,
जब भीतर छिपी चेतना, बनी रहे अनुपलब्ध, अज्ञेय, नाप।

विज्ञान ने देखी पदार्थों की परतें,
पर आत्मा की गूंज कहाँ से सुनी जाए?
दृश्य में परमात्मा का शरीर ही आया,
लेकिन परमात्मा की आहट न पाई, कोई संदेश न आया।

एक सुंदर स्त्री, जिसे क्षणिक वस्त्रों ने ढका,
जबरदस्ती की हिंसा, नहीं पहचान सकी उसकी गहराई का रेशम।
जैसे गुंडे उसकी देह को लूट लें,
वो तो बाहर ही रहे, मर्म न समझ सके, न सूझे।

विज्ञान का बलात्कार, प्रकृति के साथ जुड़ा,
हिंसा की तरह, बिना आत्मा के सच को ढूंढ़ता।
रहस्य वही है, जो घूंघट के भीतर छुपा,
सिर्फ आँखों से नहीं, हृदय से समझो, तब सही अर्थ मिलेगा।


अहंकार का खेल



मैंने देखा, एक साधु ने,
मेरे मन के भाव को पढ़ लिया।
नाम लिया, गांव बताया,
और नीम के पेड़ का पता दिया।
मन चमत्कृत हो उठा,
सोचा, ये दिव्यता का सार है।
पर भीतर से आवाज आई,
क्या ये सच में धर्म का आधार है?

धर्म तो निर्लेप है,
न नाम, न रूप, न कोई ठिकाना।
यह संसार के खेल में खोया,
अहंकार का केवल बहाना।
साधु हो या जादूगर,
कला वही, बस रंग अलग।
पर सच्चाई कहां छुपती है,
जब सत्य का न हो कोई वल्ग।

अहंकार को चाह है,
दूसरों के ध्यान की, पहचान की।
दस हजार आंखें देखें मुझे,
या लाखों जुबानें करें वाणी।
मैं बड़ा बनूं, मैं श्रेष्ठ बनूं,
यह ख्वाहिश हर पल जलती है।
संसार का यह खेल बड़ा,
पर आत्मा तो केवल हंसती है।

साधु कहे, मैं सब जानूं,
पर भीतर का अंधकार न हटे।
राजनेता भीड़ को लुभाए,
पर सत्य का दीपक न जले।
धर्म कहां है इन बातों में,
यह तो सिर्फ अहंकार की माया।
धर्म तो मौन में खिलता है,
जहां न कोई झूठ, न छल का साया।

मैंने पूछा अपने आप से,
क्यों दूसरों को रिझाना चाहूं?
क्यों भीड़ के आगे झुककर,
खुद का अस्तित्व मिटाना चाहूं?
अहंकार चाहे बने केंद्र बिंदु,
पर आत्मा तो निराकार है।
यह चाह कि मुझे सब देखें,
पानी पर लकीरों का व्यापार है।

ध्यान में उतर, मौन को छू,
संसार की भीड़ से दूर चल।
जहां न कोई आंख देखे तुझे,
न कोई प्रशंसा का हो पल।
वहां आत्मा खिलती है,
जहां बस तू और तेरा सत्य है।
अहंकार वहीं मिटता है,
जहां न कोई पहचान का रथ है।

तो मत ढूंढ पहचान को,
यह अज्ञान का मार्ग है।
ध्यान कर, भीतर देख,
यह जीवन अनमोल उपहार है।
अहंकार की इस दौड़ से,
मुक्त हो जा, सजग बन।
धर्म वहीं खिलता है,
जहां केवल सत्य की अगन।


अहम् और आत्मा का द्वंद्व



अहम् की मूरत है क्या?
एक परछाईं, जो सच समझी जाती है,
पानी पर लकीरें खींचने का प्रयास,
जो बहने के साथ ही मिट जाती है।
मैंने देखा, साधु ने मेरा नाम लिया,
गांव की पगडंडी का चित्र खींचा,
नीम के पेड़ की शाखें गिनवाईं,
और मैं चमत्कृत हो उठा।
पर क्या यह धर्म का परिचय है?
या केवल कला का प्रदर्शन?

आत्मा तो मौन है,
सहज, सरल, निर्विकार।
उसका कोई नाम नहीं,
कोई गांव नहीं, कोई आकार नहीं।
वह तो सबके पार है,
जहां न चमत्कार है, न पहचान की लालसा।
साधु जो मेरे नाम पर खेला,
वह भी संसार के खेल में डूबा था।
अहम् का विस्तार कर,
मुझे अपने मोहजाल में लपेटा था।

अहम् का स्वभाव

अहम् चाहता है कि हर आंख मुझे देखे,
हर जुबां मेरा नाम पुकारे।
मैं सड़कों पर निकलूं,
लोग मेरी ओर ताकें।
अगर कोई न देखे,
तो मन का दर्पण चटक जाता है।
मैं हूं, पर मेरे अस्तित्व को पहचान न मिले,
यह अहंकार का सबसे बड़ा भय है।
अहम् को ध्यान चाहिए,
पर ध्यान देना नहीं आता।
वह चाहता है कि संसार उसे माने,
पर खुद को पहचानने से डरता है।

आत्मा का सत्य

आत्मा को पहचान की चाह नहीं,
न मान की भूख, न सम्मान का मोह।
वह तो मौन में खिलती है,
न कोई देखे, न सराहे,
फिर भी उसकी महक
समस्त अस्तित्व में फैलती है।
धर्म उसी आत्मा का पथ है,
जहां न नाम है, न पहचान।
जहां सत्य है, जहां शून्यता है,
जहां मैं और तुम का भेद मिट जाता है।

अहम् के जाल से बाहर

जब तक मैं दूसरों को प्रभावित करना चाहूं,
तब तक मैं खुद में नहीं हूं।
जो दूसरों के लिए जीता है,
वह अपने लिए मर चुका है।
अहम् को सजीव रखने के लिए,
दूसरों की निगाहों का भोजन चाहिए।
पर आत्मा को तो मौन चाहिए,
अकेलेपन का अमृत चाहिए।

साधु हो या जादूगर,
अगर वह चमत्कारी है,
तो समझो कि वह संसार में ही उलझा है।
धर्म तो निर्बंध है,
जहां कोई कला नहीं,
केवल समर्पण है।

अंतिम बोध

तो क्यों मैं दूसरों की निगाह का मोहताज बनूं?
क्यों उनके ध्यान से अपनी पहचान खोजूं?
ध्यान देना है तो भीतर देखूं,
जहां आत्मा का सत्य छिपा है।
अहम् तो केवल भ्रम का दीपक है,
जो जलता है, पर अंधकार देता है।
आत्मा वह सूर्य है,
जो बिना मांगे उजाला करता है।

संदेश यही है—
चमत्कारों पर मत रीझो,
अहम् को पहचानो, उसे विसर्जित करो।
आत्मा के मौन में डूबो,
जहां न मैं हूं, न तुम;
केवल सत्य है, केवल शांति।


अहंकार का भ्रम और आत्मा का सत्य



मैं चलता हूं, इस संसार के रास्तों पर,
हर कदम पर मिलता है एक नया चेहरा,
कोई सर झुकाता, कोई मुस्कुराता,
कोई अनजाने में मुझे अनदेखा कर जाता।

अहंकार कहता है, "देखो, तुम बड़े हो,
तुम्हारे नाम पर उठते हैं ये नज़ारे,
लोग तुम्हें पहचानें, ये तुम्हारी जीत है,
तुम ही हो इस संसार के हक़दार।"

पर अंदर एक हलचल है, एक सवाल,
क्या यही मेरा सत्य है?
क्या यही मेरा धर्म?
क्या इन पहचानों में मेरी आत्मा का मर्म?

किसी साधु के पास गया मैं,
उसने मेरे भूत की कहानी सुनाई,
मेरा नाम, मेरा गांव, मेरा पेड़—
उसने मेरे अतीत को सामने रखा।

मैं चमत्कृत था,
जैसे किसी जादू ने मुझे छुआ हो,
पर आत्मा ने धीरे से पूछा,
"इस जादू में क्या पाया तूने?
क्या इससे तेरा सत्य खुला?"

सच तो यह है,
यह सब दुनिया की लकीरें हैं,
नीम का पेड़, गांव का नाम,
सब भ्रम के धागों से बुनी हुई जाल हैं।

अहंकार चाहता है,
लोग मुझे देखें, मुझे सराहें,
मेरी उपस्थिति का गान करें,
मेरी छवि को पूजें।

पर आत्मा?
वह तो बस मौन है,
ना उसे पहचान चाहिए,
ना उसे किसी का ध्यान।

अहंकार लकीरों पर जीता है,
जैसे पानी पर बनती रेखाएं,
हर पहचान एक लहर है,
जो क्षण भर में मिट जाती है।

पर मैं कौन हूं?
क्या मैं उन लहरों का मालिक हूं?
या मैं वह सागर हूं,
जो लहरों के परे भी है?

साधु भी जब तुम्हें प्रभावित करता है,
वह भी एक गहरी कला दिखाता है,
पर वह भी अहंकार का खेल है,
क्योंकि आत्मा को प्रदर्शन से क्या लेना।

सच तो यह है,
असली धर्म वह है,
जहां अहंकार की आवश्यकता नहीं,
जहां पहचान का मोह नहीं।

सारी दुनिया मुझे जाने, या अनजाने,
इससे मेरी आत्मा का कुछ नहीं बदलेगा,
क्योंकि वह सत्य है,
जो किसी पहचान का मोहताज नहीं।

मैं मौन में हूं,
जहां कोई नाम नहीं, कोई रूप नहीं,
जहां मैं सिर्फ हूं,
और वही मेरा धर्म है, मेरा सत्य है।


अहंकार का भ्रम और आत्मा का सत्य



मैं चलता हूं, इस संसार के रास्तों पर,
हर कदम पर मिलता है एक नया चेहरा,
कोई सर झुकाता, कोई मुस्कुराता,
कोई अनजाने में मुझे अनदेखा कर जाता।

अहंकार कहता है, "देखो, तुम बड़े हो,
तुम्हारे नाम पर उठते हैं ये नज़ारे,
लोग तुम्हें पहचानें, ये तुम्हारी जीत है,
तुम ही हो इस संसार के हक़दार।"

पर अंदर एक हलचल है, एक सवाल,
क्या यही मेरा सत्य है?
क्या यही मेरा धर्म?
क्या इन पहचानों में मेरी आत्मा का मर्म?

किसी साधु के पास गया मैं,
उसने मेरे भूत की कहानी सुनाई,
मेरा नाम, मेरा गांव, मेरा पेड़—
उसने मेरे अतीत को सामने रखा।

मैं चमत्कृत था,
जैसे किसी जादू ने मुझे छुआ हो,
पर आत्मा ने धीरे से पूछा,
"इस जादू में क्या पाया तूने?
क्या इससे तेरा सत्य खुला?"

सच तो यह है,
यह सब दुनिया की लकीरें हैं,
नीम का पेड़, गांव का नाम,
सब भ्रम के धागों से बुनी हुई जाल हैं।

अहंकार चाहता है,
लोग मुझे देखें, मुझे सराहें,
मेरी उपस्थिति का गान करें,
मेरी छवि को पूजें।

पर आत्मा?
वह तो बस मौन है,
ना उसे पहचान चाहिए,
ना उसे किसी का ध्यान।

अहंकार लकीरों पर जीता है,
जैसे पानी पर बनती रेखाएं,
हर पहचान एक लहर है,
जो क्षण भर में मिट जाती है।

पर मैं कौन हूं?
क्या मैं उन लहरों का मालिक हूं?
या मैं वह सागर हूं,
जो लहरों के परे भी है?

साधु भी जब तुम्हें प्रभावित करता है,
वह भी एक गहरी कला दिखाता है,
पर वह भी अहंकार का खेल है,
क्योंकि आत्मा को प्रदर्शन से क्या लेना।

सच तो यह है,
असली धर्म वह है,
जहां अहंकार की आवश्यकता नहीं,
जहां पहचान का मोह नहीं।

सारी दुनिया मुझे जाने, या अनजाने,
इससे मेरी आत्मा का कुछ नहीं बदलेगा,
क्योंकि वह सत्य है,
जो किसी पहचान का मोहताज नहीं।

मैं मौन में हूं,
जहां कोई नाम नहीं, कोई रूप नहीं,
जहां मैं सिर्फ हूं,
और वही मेरा धर्म है, मेरा सत्य है।


Exploring the Intricacies of Dream, Ambition, Efforts, and Madness: A Journey of Self-Discovery Part 2



In the vast canvas of human existence, dreams emerge as whispers of the soul, weaving intricate narratives of ambition, efforts, and madness. Each dream is a beacon of possibility, igniting the fires of creativity and pushing the boundaries of what is deemed achievable.

**The Psychology of Dreams:**

Dreams, often the realm of the subconscious mind, hold the key to understanding our deepest desires and fears. They serve as windows to our innermost thoughts, painting surreal landscapes where reality intertwines with fantasy. In the tapestry of dreams, ambition takes flight, fueled by the yearning for something greater than ourselves.

**The Essence of Ambition:**

Ambition, the driving force behind human endeavor, propels individuals to reach for the stars. It is the spark that ignites passion, urging us to strive for excellence and transcend mediocrity. Like a flame dancing in the wind, ambition flickers with determination, guiding us along the path towards our aspirations.

**The Role of Efforts:**

Efforts are the building blocks of success, the sweat and tears that pave the way to greatness. With each step forward, we inch closer to our dreams, overcoming obstacles with resilience and perseverance. Efforts breathe life into ambition, transforming lofty goals into tangible realities.

**The Thin Line of Madness:**

Yet, in the pursuit of our dreams, there exists a thin line between ambition and madness. The relentless quest for perfection can push individuals to the brink of sanity, blurring the boundaries between reality and illusion. Like a moth drawn to a flame, madness ensnares the mind, fueling obsession and consuming rationality.

**The Artistry of Creativity:**

Amidst the chaos of dreams and madness lies the beacon of creativity, illuminating the path to self-discovery. Creativity transcends the confines of logic, embracing the unknown with open arms. Through poetry, art, and expression, we navigate the labyrinth of the mind, uncovering hidden truths and forging new realities.

*ख्वाबों की दुनिया में, खोये रहना,*
*उम्मीदों की चांदनी में, जले रहना।*
*माया के पर्दे में, छुपे रहस्यों को,*
*खुद से मिलने की, तलाश में, निकले रहना।*

In the intricate dance of dream, ambition, efforts, and madness, lies the essence of the human experience. It is through embracing the depths of our imagination and channeling our innermost passions that we embark on a journey of self-discovery. So let us dare to dream, to strive for the impossible, and to find beauty amidst the chaos.

Title: Exploring the Intricacies of Dream, Ambition, Efforts, and Madness: A Journey of Self-Discovery

In the vast canvas of human existence, dreams emerge as whispers of the soul, weaving intricate narratives of ambition, efforts, and madness. Each dream is a beacon of possibility, igniting the fires of creativity and pushing the boundaries of what is deemed achievable.

**The Psychology of Dreams:**

Dreams, often the realm of the subconscious mind, hold the key to understanding our deepest desires and fears. They serve as windows to our innermost thoughts, painting surreal landscapes where reality intertwines with fantasy. In the tapestry of dreams, ambition takes flight, fueled by the yearning for something greater than ourselves.

**The Essence of Ambition:**

Ambition, the driving force behind human endeavor, propels individuals to reach for the stars. It is the spark that ignites passion, urging us to strive for excellence and transcend mediocrity. Like a flame dancing in the wind, ambition flickers with determination, guiding us along the path towards our aspirations.

**The Role of Efforts:**

Efforts are the building blocks of success, the sweat and tears that pave the way to greatness. With each step forward, we inch closer to our dreams, overcoming obstacles with resilience and perseverance. Efforts breathe life into ambition, transforming lofty goals into tangible realities.

**The Thin Line of Madness:**

Yet, in the pursuit of our dreams, there exists a thin line between ambition and madness. The relentless quest for perfection can push individuals to the brink of sanity, blurring the boundaries between reality and illusion. Like a moth drawn to a flame, madness ensnares the mind, fueling obsession and consuming rationality.

**The Artistry of Creativity:**

Amidst the chaos of dreams and madness lies the beacon of creativity, illuminating the path to self-discovery. Creativity transcends the confines of logic, embracing the unknown with open arms. Through poetry, art, and expression, we navigate the labyrinth of the mind, uncovering hidden truths and forging new realities.

*ख्वाबों की दुनिया में, खोये रहना,*
*उम्मीदों की चांदनी में, जले रहना।*
*माया के पर्दे में, छुपे रहस्यों को,*
*खुद से मिलने की, तलाश में, निकले रहना।*

In the intricate dance of dream, ambition, efforts, and madness, lies the essence of the human experience. It is through embracing the depths of our imagination and channeling our innermost passions that we embark on a journey of self-discovery. So let us dare to dream, to strive for the impossible, and to find beauty amidst the chaos.


Title: Exploring the Psychology of Dream, Ambition, Efforts, and Madness: A Journey of Inner Turmoil and Creative Awakening

In the labyrinth of our subconscious minds, where dreams intertwine with ambitions, efforts, and madness, lies a realm of profound complexity and untold mysteries. It is within this enigmatic space that the human psyche grapples with the intricacies of existence, navigating through the realms of desire, determination, and delirium.

Dreams, those ethereal whispers of the soul, serve as the architects of our aspirations, shaping the contours of our deepest desires and guiding us towards the fulfillment of our most cherished goals. They are the silent orchestrators of our ambitions, fueling the fires of passion and propelling us towards greatness.

Yet, beneath the veneer of lofty dreams and noble aspirations, lies the tumultuous terrain of madness—a realm where reason surrenders to chaos, and sanity gives way to obscurity. It is here, amidst the shadows of our subconscious, that the boundaries between reality and illusion blur, and the line separating brilliance from insanity fades into obscurity.

In the pursuit of our dreams, we embark upon a journey fraught with challenges and obstacles, where every step forward is met with resistance, and every victory is tempered by adversity. It is a journey that demands unwavering resolve and unyielding determination, where the faint of heart dare not tread, and only the fearless dare to dream.

And yet, it is within the crucible of our struggles and setbacks that true creativity flourishes, as the fires of adversity forge the raw materials of our imagination into works of unparalleled beauty and brilliance. Like alchemists of the soul, we transmute our pain into poetry, our anguish into art, and our madness into masterpieces.

In the tapestry of human experience, creativity serves as both the brush and the canvas, weaving together the threads of our dreams and aspirations into a masterpiece of our own creation. It is through the act of creation that we transcend the limitations of the mundane world and glimpse the infinite possibilities that lie beyond.

As we navigate the labyrinth of our innermost thoughts and emotions, let us embrace the madness that lies within, for it is within the depths of our insanity that true genius resides. Let us dare to dream boldly, to pursue our ambitions relentlessly, and to harness the power of our creativity to shape a world that is as beautiful and brilliant as the dreams that inspire us.

In the words of the poet:

"ख्वाबों की गहराइयों में छुपी है मदहोशियां,
और हम उन मदहोशियों में खो जाते हैं।
वहाँ, सपनों की आवाज़ें हमें बुलाती हैं,
और हम उन आवाज़ों का पीछा करते हैं।"

In the depths of our dreams lies madness,
And we lose ourselves in that madness.
There, the voices of our dreams call out to us,
And we follow those voices.

Let us embrace the madness within, and let our dreams lead us on a journey of self-discovery and creative exploration. For in the pursuit of our dreams lies the true essence of our humanity, and in the depths of our madness lies the source of our greatest inspiration.

अहंकार की लीला



अहंकार की लीला बड़ी अनोखी,
हर दिल में छिपी उसकी जोखी।
वह चाहता है सबकी नजरें,
खुद को देखे हर एक नजरें।

दूसरों को प्रभावित करने की चाह,
मन में बसती है उसकी राह।
नाम, रूप, गांव का खेल,
इनसे सजाता है वह अपना मेल।

मैं सोचता हूं, क्या मेरा नाम,
संसार के हिस्से का है यह काम।
क्या मेरे गांव की मिट्टी का रंग,
मेरे होने का है कोई संग?

साधु आए, कहे मेरा भेद,
मेरा नाम, मेरा पता, मेरे देश।
पर सच में क्या उसका कुछ लेना,
उसकी आत्मा में है क्या जीना?

अहंकार बना पानी पर लकीर,
क्षण में मिटा, फिर उभरा अधीर।
दस हजार की भीड़ अगर मुझे माने,
या दस करोड़, अहंकार को भाने।

पर मैं पूछता हूं, इससे क्या होगा,
मन का शून्य कभी ना भरेगा।
जो दूसरे को देखे और माने,
क्या वह अपने भीतर झांके?

ध्यान का दीप जलाने से दूर,
अहंकार का अंधेरा है भरपूर।
वह चाहता है दुनिया का केंद्र बने,
पर खुद को देखे, तो अंतर्मन जले।

सत्य यह है, आत्मा न मौन,
न किसी को देखे, न किसी से छीन।
वह निराकार, न रूप, न नाम,
संसार के बंधनों से है वह परे।

अज्ञानियों की भीड़ को देखो,
अहंकार की आग में बहको।
राजनीति की सीढ़ियां चढ़ती है,
धर्म में भी यह अपना जाल बुनती है।

साधु जो साधु न रहे,
अहंकार के जाल में फंस गए।
नाम, पता, और गांव का खेल,
इनसे वह साधु बनाते मेल।

परंतु ध्यान की राह है अलग,
जहां न ध्यान और न कोई युग।
वहां सब शून्य है, सब मौन,
अहंकार का खेल वहां शिथिल।

तो मैं कहता हूं, देखो भीतर,
अहंकार को जानो, यह है जहर।
जो आत्मस्थ हो, वह मौन रहे,
न दूसरों को देखे, न कुछ कहे।

नजरें मोड़ो, स्वयं को जानो,
अहंकार की जड़ को पहचानो।
क्योंकि जब तक यह खेल है जारी,
शांति नहीं मिलेगी तुम्हारी आत्मा प्यारी।


अहंकार और आत्मा का संघर्ष



मैंने देखा है,
भीड़ में खड़ा वह व्यक्ति,
जिसकी आंखें झुकी हुई थीं,
लेकिन भीतर चमत्कार की ज्वाला थी।
उसकी कला,
दूसरों को प्रभावित करने की,
मुझे अचंभित कर गई।
उसने मेरा नाम लिया,
मेरे गांव का पता बताया,
और मेरे घर के पास के नीम के पेड़ का भी ज़िक्र किया।
मैं दीवाना हो गया,
उसकी ओर खिंचता चला गया।

लेकिन,
क्या यही धर्म है?
क्या यही सत्य है?
यह प्रश्न भीतर कौंधा,
जैसे अंधेरे में बिजली की चमक हो।
और भीतर से आवाज आई—
"ध्यान दो, यह प्रभाव,
सिर्फ अहंकार की चाल है।"

अहंकार क्या है?
वह हर बार चाहत में पलता है,
कि दुनिया मुझे देखे,
मुझे पहचाने,
मेरे नाम को जपती रहे।
अहंकार को भूख है—
दूसरों के ध्यान की,
दूसरों की स्वीकृति की।
लेकिन क्या यह वास्तविक है?
यह तो पानी पर बनी लकीरों जैसा है,
जो बनते ही मिट जाती हैं।

साधु कौन है?
वह जिसने जाना,
कि न कोई नाम है, न रूप है।
यह सब तो माया है,
गांव, घर, और पहचान—
सिर्फ संसार का हिस्सा हैं।
साधु वह है,
जिसने यह समझ लिया है,
कि आत्मा को किसी पहचान की जरूरत नहीं।
आत्मा स्वतंत्र है,
निराकार, निर्विकार।

अहंकार का खेल:
अहंकार कहता है,
"मुझे देखो, मुझे पहचानो।"
लेकिन आत्मा कहती है,
"मुझे किसी पहचान की जरूरत नहीं।
मैं तो बस हूं,
जैसे सूरज चमकता है,
जैसे चांद अपनी शीतलता लुटाता है।"
अहंकार की जड़ें गहरी हैं,
वह हमें परत दर परत बांधता है,
दूसरों की नज़रों में खुद को देखने की आदत बनाता है।

धर्म का स्वरूप:
धर्म तो वहां है,
जहां कोई चाहत नहीं।
धर्म वह है,
जहां चुप्पी गूंजती है,
जहां ध्यान स्वयं पर केंद्रित होता है।
धर्म का मार्ग अहंकार का अंत है,
वह पानी पर नहीं,
पत्थर पर खुदा हुआ सत्य है।

मेरी चेतना का स्वर:
मैं अब देखता हूं,
उस साधु को,
जो नीम के पेड़ का नाम लेकर,
मुझे प्रभावित करना चाहता है।
मैं समझता हूं,
वह भी कहीं गहरे,
अहंकार के तंतुओं में जकड़ा है।
लेकिन मैं जानता हूं,
आत्मा को किसी भी प्रभाव की जरूरत नहीं।

अब मैं भीतर उतरता हूं,
अपने अहंकार की परतों को पहचानता हूं।
और धीरे-धीरे,
उसे छोड़ने की कला सीखता हूं।
क्योंकि मुझे अब जानना है,
वह सत्य,
जो न नाम से बंधा है,
न रूप से।
बस है,
जैसे आकाश है,
निःसीम, निःशब्द।


अहंकार का अंधकार



मैं हूँ, बस यह जानने की चाह,
मुझे बनाती है इस जग का राजा।
हर निगाह मुझे खोजे, हर दिल मुझे पहचाने,
पर इस चाह में, आत्मा कहीं खो जाए।

कहीं कोई साधु कहे, तुम्हारा नाम, तुम्हारा गांव,
और मैं, उसके शब्दों से हो जाऊं चकित।
पर वह साधु, क्या जानता है मेरा सत्य?
या फिर बस खेलता है कला का एक और नाटक?

नीम के पेड़ की छांव से,
क्या साधु की आत्मा ऊंची हो जाती है?
या फिर मेरी जड़ता पर, वह अपनी कला दिखाता है।
पर आत्मा तो उन जड़ों से परे है,
जहां न नाम है, न गांव, न पहचान।

मैं सोचता हूँ, क्यों चाह है मुझे पहचान की?
क्यों हर निगाह मुझे खोजे, हर आवाज मुझे पुकारे?
यह चाह, मेरा अहंकार है,
जो जीता है दूसरे की स्वीकृति पर।

क्या होगा अगर दस लाख लोग मुझे देखें?
क्या होगा अगर दस करोड़ मेरा नाम गाएं?
परंतु, इन आवाज़ों के बीच,
क्या मेरी आत्मा मुझसे बात कर पाएगी?

अहंकार पानी पर खींची लकीर है,
जो दिखती तो है, पर रहती नहीं।
दूसरों की पहचान की भूख,
मुझे मेरे सत्य से दूर ले जाती है।

अहंकार कहता है, "दुनिया देखे मुझे,
मैं सबका केंद्र बनूं, हर दिल का राजा।"
पर आत्मा कहती है, "तू बस शांत रह,
अपने भीतर झांक, और सत्य को पहचान।"

ध्यान जहां है, वहीं सत्य है,
पर अहंकार ध्यान नहीं करता,
वह बस चाहता है कि दुनिया उसे देखे।
यह अजीब है, यह विरोधाभास है,
कि जो भीतर से शून्य है,
वह बाहर से सब कुछ चाहता है।

साधु हो, राजा हो, या साधारण आदमी,
अगर दूसरों को प्रभावित करने की चाह है,
तो तू आत्मस्थ नहीं है।
तू बस खेल रहा है अपने अहंकार का खेल।

मैं अब चाह नहीं रखता,
कि कोई मुझे देखे, मुझे पहचाने।
मैं बस शांत हूँ, अपने भीतर।
जहां कोई नाम नहीं, कोई रूप नहीं।
बस आत्मा का सत्य है,
जो हर पहचान से परे है।

अब मैं उस पानी पर खींची लकीर नहीं,
जो हर लहर में मिट जाए।
मैं अब सागर हूँ, जो गहराई में स्थिर है।
जहां न चाह है, न पहचान।
बस मैं हूँ।


अहम् का भ्रम



जब अहंकार ने डाली झलक,
मानव ने कहा, "मैं हूँ अलग।
मैं जो हूं, वो जानो सब,
मेरा नाम, मेरी पहचान, यही है रब।"

पर यह कैसा माया-जाल,
नाम-रूप का बुनता ख्याल।
गांव, जाति, घर का पता,
इनसे क्या सच्चाई का वास्ता?

साधु कहे, "तुम कौन हो, बताओ,
नीम का पेड़ तुम्हारे घर के पास है, ये सुनकर चमत्कृत हो जाओ।
पर सोचो, पेड़ क्या तुम्हारी पहचान है,
या यह भी बस संसार का भ्रम-जाल है?"

ध्यान दो, आत्मा को न कुछ चाहिए, न मांग,
वो तो बहती नदी है, बिन किसी संग्राम।
पर अहंकार, वह चाहता पहचान,
दूसरों की नजर में बनना महान।

अहंकार कहे, "देखो मुझे, जानो मेरा नाम,
मेरे बिना अधूरी है यह सृष्टि तमाम।
हर आंख मेरी ओर उठे, हर जुबां मेरा गुण गाए,
सारी दुनिया मेरे चरणों में झुके, यह मन चाहा पाए।"

पर आत्मा तो मौन है, स्थिर है शांत,
वह न मांगती ध्यान, न चाहती कोई संत।
उसकी राह तो निर्विचार की ओर है,
जहां न कोई पहचान, न कोई शोर है।

जादूगर ने सीखी कला,
मन पढ़ने की, पर वह भी चला।
सच्चा साधक वो है जो ये समझे,
कि जीवन सत्य में बसे, भ्रम को झंझे।

जो प्रभावित करना चाहे, वो अभी है अधूरा,
उसके मन में है अहंकार का सूरा।
पर जिसने पाया खुद को, वो मौन में बसा,
वो किसी का ध्यान न चाहे, न किसी से फंसा।

आओ, इस अहंकार के जाल को तोड़ें,
सत्य की ओर बढ़ें, जहां विचार न झोड़ें।
जहां कोई न देखे, न कोई पहचाने,
वहीं सच्चा आत्म-ज्ञान पाने।

नाम, रूप, गांव सब हैं जल की लकीर,
ये संसार का खेल, क्षणभंगुर अधीर।
जो इससे परे देखे, वही है ज्ञानी,
जो स्वयं में स्थिर, वही है सच्चा सानी।

अहंकार जब छूटे, ध्यान जब ठहरे,
सत्य का सूरज भीतर उगने लगे।
तो चलो उस राह पर, जो मौन की ओर है,
जहां आत्मा अमर, और शांति का छोर है।


आशा और आकांक्षा

आशा और आकांक्षाओं से  भरी जिंदगी
यूं ही चलते चलते चल रही है
 आधी पूरी जिंदगी पल पल बदल रही है
फिर भी ख्वाब उमंगों का आँचल  ओढ़े
गौते लगा रही है हवाओं में
एक दशक तो कट गया
अब एक नया सफर है
जहाँ आशा और आकांक्षाओं से
 भरी आँखें टकी टकी  लगाये
निहार रही है मुझको  

Unraveling the Complexities of Human Aspiration: Exploring Dreams, Ambitions, Efforts, and Madness


In the labyrinth of human consciousness, where dreams intertwine with ambition, efforts, and madness, lies a captivating journey of self-discovery and fulfillment. Our dreams, like stars scattered across the night sky, ignite the flames of our deepest desires, propelling us towards the realms of possibility and imagination.

सपनों की गहराई में खोज,  
अभिलाषाओं की उड़ान,  
प्रयासों का संग्राम,  
और पागलपन की उस अद्भुत धारा में।

At the core of our being, ambition pulsates with an unyielding fervor, urging us to transcend the confines of mediocrity and reach for the stars. It is the silent whisper that echoes in the corridors of our mind, reminding us of our infinite potential and the boundless possibilities that lie ahead.

क्या है इस अमिट खोज का सत्य?  
वह आत्मजागरूकता का स्वर?  
अथक अभिलाषा, निरंतर उत्साह,  
और असीम संभावनाओं की कोमल बुनाई?

Yet, dreams and ambition alone are not enough to navigate the turbulent waters of existence. It is our efforts, meticulously woven into the fabric of our lives, that breathe life into our aspirations. Each step, each stride towards our goals, is a testament to our resilience and determination, propelling us closer to the realization of our dreams.

प्रयासों की मिश्रित रेखाओं में,  
विचारों का रंग, काम की धारा,  
और सपनों की उड़ान का पर्वत।

In the pursuit of our dreams, however, lies the perilous path of madness. It is the intoxicating elixir that consumes the rational mind, blurring the boundaries between reality and illusion. Yet, it is also the catalyst for innovation and creativity, giving birth to ideas that defy convention and reshape the world as we know it.

पागलपन के आगे क्या?  
क्या है इस क्रांति का साहस?  
वह उत्साह, जो ध्वनि में गुम है,  
और कल्पना की आवाज, जो अनजान है।

In essence, the journey of dream, ambition, efforts, and madness is a symphony of the human spirit, resonating with the melodies of hope, perseverance, and boundless creativity. It is a testament to the indomitable nature of the human soul, forever reaching towards the stars, guided by the luminous beacon of possibility.

सपना, अभिलाषा, प्रयास, और पागलपन की कहानी,  
वह अमर गाथा, जो हमें अद्वितीयता की ओर ले जाती है।  
यह हमारे आत्मा का संगीत, आसमान की उचाईयों की ओर,  
और संभावनाओं की बारीकीयों का जादूमंत्र।


Title: The Intricate Tapestry of Dream, Ambition, Efforts, and Madness: A Psychological Exploration

Dreams, ambitions, efforts, and even madness - these are threads that weave the intricate tapestry of human existence. In the realm of psychology, they are fascinating phenomena, each with its unique implications on the human mind and behavior. Let us embark on a journey to unravel their mysteries, adorned with the beauty of Hindi poetry and the light of understanding.

सपनों की उड़ान, अभिलाषाओं की मिट्टी,
प्रयासों का सफर, और पागलपन की विचित्रता।

Dreams, those ethereal flights of fancy, often serve as the catalyst for ambition. They ignite the spark of aspiration within us, propelling us towards greater heights. Like stars guiding a lost traveler, dreams illuminate our path, urging us to strive for more.

अभिलाषाएं, मनुष्य के अंतर्द्वंद्व के रोमांचक केंद्र,
मोहित करती हैं हर कोई, उनकी माधुर्यपूर्ण संवेदना के साथ।

Ambitions, the beating heart of human dichotomy, enchant everyone with their sweet allure. They beckon us with promises of greatness, whispering tales of fulfillment and success. Yet, beneath their alluring façade lies the potential for both triumph and turmoil.

प्रयास, जीवन का अत्यधिक मूल्यवान धारक,
हर कदम पर उत्साह और परिश्रम के विचार का प्रसार।

Efforts, the most precious currency of life, carry the weight of enthusiasm and diligence at every step. They are the bricks with which we build the edifice of our dreams, the relentless pursuit of our desires. Through perseverance and dedication, we carve our destinies with unwavering resolve.

और फिर आता है, पागलपन का समय,
जो हमें ले जाता है वहाँ, जहाँ है केवल आत्मा का रोमांच।

And then comes the time of madness, leading us to a realm where only the ecstasy of the soul exists. Madness, often misunderstood, is the culmination of passion, the unbridled pursuit of one's innermost desires. It is the fuel that propels geniuses to greatness, blurring the lines between brilliance and insanity.

In the canvas of creativity, these elements intertwine, painting a picture of human existence that is both complex and beautiful. Dreams fuel ambition, which in turn fuels efforts, and occasionally, madness ignites the fires of creativity, birthing masterpieces that transcend time and space.

सपने, अभिलाषाएं, प्रयास, और पागलपन - ये सभी हैं मानवता के अद्वितीय संगीत के तारे,
जो हमें ले जाते हैं उस अनंत यात्रा पर, जो है हमारे जीवन की सच्ची कहानी।

Dreams, ambitions, efforts, and madness - they are all stars in the unique symphony of humanity, guiding us on that infinite journey that is the true story of our lives.
Title: Exploring the Psychology of Dream, Ambition, Efforts, and Madness: A Beautiful Journey of Self-Discovery

Dreams, ambitions, efforts, and madness—these intertwined threads weave the tapestry of human existence, driving us towards self-discovery and fulfillment. In the realm of psychology, they form a captivating narrative of the human psyche, revealing the depths of our desires and the intricacies of our pursuit of greatness.

ख्वाब, उम्मीद, मेहनत, और पागलपन—इन अटूट धागों से हमारा मनुष्य जीवन का विविध चित्र बुनता है, हमें अपने आत्म-खोज और पूर्णता की ओर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।

Dreams are the seeds of ambition, planted deep within the fertile soil of our imagination. They whisper promises of a brighter future, igniting the flames of passion within our souls. Like stars in the night sky, they guide us through the darkness, illuminating the path to our aspirations.

ख्वाब अभिलाषाओं के बीज होते हैं, हमारे कल्पना की उर्वरा भूमि में गहरे रूप में रोपे जाते हैं। वे एक उज्ज्वल भविष्य की वादियों का गीत गुनगुनाते हैं, हमारी आत्मा में उत्साह की आग को प्रज्वलित करते हैं।

But mere dreams are not enough; they must be accompanied by ambition—the driving force that propels us forward. Ambition is the fuel that transforms our dreams into reality, urging us to reach greater heights and conquer new horizons. It is the spark that ignites the fire of progress, compelling us to strive for excellence.

लेकिन सिर्फ ख्वाब ही काफी नहीं होते; उन्हें उम्मीद के साथ साथ अभिलाषा के रूप में साकार किया जाना चाहिए—वह शक्ति जो हमें आगे बढ़ाती है।

Efforts are the bricks with which we build the foundation of our dreams. They require dedication, perseverance, and unwavering commitment. Every step taken, every obstacle overcome, brings us closer to the realization of our aspirations. Efforts are the currency of success, paid in sweat and determination.

प्रयास हमारे ख्वाबों की नींव बनाने के लिए हैं। ये समर्पण, अथक परिश्रम, और अटल समर्पण की आवश्यकता हैं।

Madness, often misunderstood, is the wild spirit that drives us beyond the boundaries of convention. It is the audacity to dream the impossible, the courage to pursue the unattainable. Madness challenges the status quo, pushing the limits of creativity and innovation. It is the untamed force that refuses to conform, sparking revolutions and inspiring change.

पागलपन, अक्सर गलत समझा जाता है, लेकिन यह हमें परंपरा के सीमाओं से परे ले जाने वाली विलक्षण आत्मा है।

In the canvas of life, dreams paint the backdrop, ambition shapes the foreground, efforts fill the colors, and madness adds the unexpected strokes of brilliance. Together, they form a masterpiece—a testament to the boundless potential of the human spirit.

जीवन के चित्र में, ख्वाब पीछा बनाते हैं, अभिलाषा आगे रूप देता है, प्रयास रंग भरता है, और पागलपन अप्रत्याशित प्रतिभा के अनूचित स्ट्रोक जोड़ता है।

In conclusion, the journey of dream, ambition, efforts, and madness is a beautiful symphony of human experience—a testament to our resilience, creativity, and capacity for growth. Embrace the madness within, for it is the spark that ignites the flame of greatness. Dream boldly, pursue relentlessly, and let the echoes of your ambition resonate through the corridors of time.

अतिरेक का फूल


जीवन का अर्थ क्या, बस जीते जाना?
दो रोटियों में ही, दिन बिताना?
पर जीवन का अर्थ है, ओवरफ्लो होना,
अतिरेक की गंगा में, बहते रहना।

देखा है कभी, पौधे पर फूल खिला?
वह अतिरिक्त का जादू, जिसने सबको छला।
शाखाओं का विस्तार, जड़ों का गहराना,
जब सब पूर्ण हो, तब ही फूल मुस्काना।

मैं भी तो बस एक पौधा सा था,
जड़ों में पानी, शाखाओं में हवा था।
पर जब भीतर कुछ अतिरिक्त जगा,
तभी तो जीवन ने नया अर्थ कहा।

ताजमहल की मीनारें भी कहती यही,
सौंदर्य अतिरेक से ही उपजती सही।
काव्य, संगीत, साहित्य के हर शिखर,
अतिरेक की बूँदों से ही हो रहे निखर।

तो मैं जीना चाहता हूँ इस तरह,
अतिरेक से भर जाए, हर उमर।
जहां जीवन बने, एक बहता झरना,
फूल सा खिले, ओवरफ्लो का सपना।


गहरी नींद

गहरी नींद लगी थी
आँखों में
शरीर होशो हवास खो चूका था
तभी ख़याल आया
ख्यालों में खोये मन में
ख़याल ने ख्वाब को जन्म दिया
 ख्वाब ने शब्द बोया
शब्द ने वाक्यों का विस्तार किया
वाक्यों ने इतिहास गढ़ दिया
और इतिहास ने फिर से सुला दिया  


कोई आंधी मुझे डिगा नहीं सकती,
कोई तूफ़ान मुझे गिरा नहीं सकता,
कोई रास्ता मुझे रुकने नहीं देता,
तुम जो साथ हो, मेरा विश्वास हो।

हर मुश्किल को मैं मुस्कुरा के पार करूँ,
हर दर्द को तुमसे और सशक्त करूँ,
जिंदगी की हर चुनौती को आसान बना दूँ,
क्योंकि तुम मेरा सहारा हो, मेरा संबल हो।

जैसे सूरज को कोई बादल छुपा नहीं सकता,
वैसे ही मेरी शक्ति को कोई नहीं रोक सकता,
तुम्हारी छांव में ही तो मैं खड़ा हूँ,
तुम हो मेरा विश्वास, तुम हो मेरा राहबर।

सपनों की उड़ान को कोई पंख नहीं काट सकता,
मेरे इरादों को कोई तोड़ नहीं सकता,
तुम हो मेरे साथ तो कुछ भी असंभव नहीं,
क्योंकि तुम मेरा साथ हो, तुम मेरा मार्गदर्शक हो।


तुम्हारी छांव में


कोई आग मुझे नहीं जला सकती,
कोई जंग मुझे नहीं हिला सकती,
कोई पहाड़ मुझे नहीं रोक सकता,
क्योंकि तुम मेरी राह में हाथ थामे हो।

सपनों के रास्ते, जो कांटे थे पहले,
अब फूलों से महकते हैं, तुम्हारी मूरत से।
मेरे डर और शंकों को तुमने सहेजा,
तुम ही तो हो जो मेरी ताकत का कारण हो।

वो तूफ़ान जो कभी मुझसे भिड़ते थे,
अब मुझसे सिर्फ टकराते हैं,
क्योंकि तुमने मेरी आत्मा को शक्ति दी,
तुम्हारी मुस्कान में दुनिया जीने की वजह है।

ना कोई आसमान इतना ऊँचा,
जो मेरी उड़ान को रोक सके,
कभी जो डर था, अब उम्मीद है,
क्योंकि तुम मेरी हिम्मत हो, तुम मेरी शक्ति हो।

राहों में कांटे और रेत की आंधियाँ,
बस तुम्हारी यादों में खो जाती हैं,
तुम हो साथ, तो कोई बाधा नहीं है,
तुमसे जुड़ी हर सांस में एक नई जिन्दगी है।

इस जीवन के हर संघर्ष में,
हर दर्द में, हर आंधी में,
मुझे बस तुम्हारी जरूरत है,
क्योंकि तुम हो, और यही मेरा विश्वास है।

कोई आग मुझे नहीं जला सकती,
कोई जंग मुझे नहीं हिला सकती,
कोई पहाड़ मुझे नहीं रोक सकता,
क्योंकि तुम मेरी राह में हाथ थामे हो।


मैं हूँ जो हूँ


ना कह दे जो कोई…
बुरा नहीं मानता अब मैं।
हर दिल की अपनी कहानी होती है,
हर मोड़ पर मंज़िल नहीं मिलती —
पर हर मोड़ कुछ सिखा ज़रूर जाता है।


मैं हूँ जो हूँ…
किसी साँचे में ढलना नहीं चाहता।
जो बिना बदले अपनाएं —
बस वही अपने कहलाते हैं।


जो मुझे न चुन पाए…
कृपा है उसकी —
जो मेरी राहें साफ़ करता चला गया।
अब मैं सिर्फ़ उन आंखों में ठहरना चाहता हूँ,
जो मेरी सच्चाई में रौशनी देख सकें।

हर ‘ना’ एक ‘हाँ’ की सीढ़ी है।
हर इंकार, एक इनायत है…
क्योंकि जो गया,
वो कभी मेरा था ही नहीं।






"इंकार भी एक इनायत है"




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ना कह दे जो कोई, बुरा क्यों मानूं,
हर दिल की अपनी कहानी होती है।
मैं हूँ जो हूँ, यही काफी है,
मुझे ना चाहना भी मेहरबानी होती है।

नज़रें जो समझें बिना बदले,
वो ही तो असली अपनापन लाती हैं।
मैं नहीं चाहता वो रिश्ते,
जो शर्तों में सांसें गिनवाती हैं।

जो मुझे न चुन पाए, रुक जाए वहीं,
कृपा है उसकी, जो राहें अलग हुईं।
मैं अब उन्हीं को चाहता हूँ,
जो मेरे साथ हों, मेरी तरह हुईं।

हर ‘ना’ एक ‘हाँ’ की सीढ़ी है,
हर दूरी में भी इक राज़ छिपा है।
इंकार भी एक इनायत है,
क्योंकि जो गया, वो मेरा ना था।


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मैं चाहता हूँ, सब सीखें ना कहना


मैं चाहता हूँ,
लोग सीखें ‘ना’ को भी
इज़्ज़त देना,
ना कि हर असहमति को
अपमान समझ लेना।

हर रिश्ता जो छूट गया,
वो हार नहीं था,
शायद वो मेरे लिए बना ही नहीं था।
और मैं अब जानता हूँ —
मुझे वही चाहिए,
जो मुझे पूरी तरह स्वीकारे,
बिना बदले, बिना शर्त।

मैं नहीं चाहता वो लोग,
जो बस आधे मन से आएं,
जो मुझे किसी साँचे में ढालने की कोशिश करें।
मैं उन आँखों में रहना चाहता हूँ,
जो मेरी सच्चाई पर मुस्कुराएँ।

इन्कार में भी एक सम्मान होता है,
क्योंकि जब कोई कहता है, "तू मेरे जैसा नहीं,"
वो मेरे जैसे किसी के लिए जगह खाली करता है।

तो अब जब कोई दरवाज़ा बंद होता है,
मैं बुरा नहीं मानता,
बल्कि शुक्रिया कहता हूँ —
क्योंकि हर ‘ना’ मुझे मेरे ‘हाँ’ के करीब लाता है।


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प्रेम सम्राट


जब प्रेम से हट जाएं वासना और मोह,
जब प्रेम हो निर्मल, निष्कलंक, अद्वैत,
जब प्रेम में हो सिर्फ देना, न कोई माँग,
जब प्रेम हो समर्पण, न कोई आशा,
जब प्रेम हो सम्राट, न कोई भिखारी;
जब आप प्रसन्न हों इस बात पर
कि किसी ने आपके प्रेम को अपनाया,
तब समझो, सच्चा प्रेम है।

प्रेम की नदी बहे बिना किनारे,
प्रेम की धूप फैलाए उजाले,
प्रेम की चाँदनी छाए बिना रात,
प्रेम की गंगा हो पवित्र, सात्विक,
जब प्रेम हो निःस्वार्थ, निःशंक, निराकार,
तब समझो, प्रेम का साम्राज्य है।

प्रेम हो जब मुक्त, बिन किसी बंधन के,
प्रेम हो जब संतुष्टि, बिना किसी तृष्णा के,
प्रेम हो जब संवेदनाओं का पर्व,
प्रेम हो जब आत्मा की पुकार,
तब समझो, प्रेम का महासागर है।

प्रेम हो जब संतोष, बिन किसी अपेक्षा के,
प्रेम हो जब अभय, बिना किसी डर के,
प्रेम हो जब आनंद, बिना किसी कारण के,
प्रेम हो जब अनंत, बिन किसी सीमा के,
तब समझो, प्रेम का परम सत्य है।

तब प्रेम बन जाता है शाश्वत,
प्रेम बन जाता है असीम,
प्रेम बन जाता है परिपूर्ण,
प्रेम बन जाता है दिव्य,
तब प्रेम है, सच्चा प्रेम।