है ये जिंदगी

जाने क्यों इतनी सी अतरंगी हो गयी है जिंदगी
अभी तो हम ने कोई रंग दिखाना न शुरू किया
मगर फिर भी नजाने क्यों
अपनी सी नहीं लगती है 
है ये जिंदगी |

आरजूओं के चक्रव्यूह  मे फसे है अरमान
नदी  के  भवँर जैसे जालसाजी है इमान
लाख आप निकलना चाहो पर
हवाओं की तरह उड़ती आती
है ये जिंदगी 

सवालों के धागों में उलझी जिंदगी
 जवाबों के फेरे लगाती जिंदगी
 जलेबी की तरह टेढ़े मेढ़े
सवालों और जवाबों  के बीच झूलती
 है ये जिंदगी


 मायने नहीं है जहाँ कर्म की पोटलीयां
 मायने हैं यहाँ सिर्फ हाँ बोलती कठपुतलियां
 कर्म और धर्म की बीच उंगली उठाती
है ये जिंदगी


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