बाज़ार

बनते बिगड़ते रिश्तों की कहानी
बयां करती है जिंदगी
जिंदगी तू भी न जाने
अभी और क्या दिखाने वाली है
कैसा था मैं कैसे तूने बना दिया
न जाने कैसा आगे बनाने वाला हूँ
निशानियां है कुछ पास मेरे उसकी
जी चुभी थी तीर सी सीने में
जख्मों  पर क्यारी बो कर
हरा भरा किया है मैंने
मरहमों पर मिष्ठान लगा कर
 स्वादिस्ट किया  है मैंने
अंगारों को राख बना कर
मिटटी में मिला दिया है मैंने
कैसा  था ख्वाब है जिसमे अधूरे ख्याल है
अधूरी सी पहचान है
पहचान की ही तू दूकान है
फट्टे हाल की मेरी दूकान
न ग्रहाक है न सामान  है
 पर  बाज़ार में बैठा हूँ
बाज़ार मुझमे है  पर
मैं बाज़ार नहीं हूँ

संतुलित तकनीकी विकास और आंतरिक चेतना - योग और वेदांत के सन्देश


आधुनिक युग में, विज्ञान और तकनीकी विकास ने हमें नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया है। तकनीकी उन्नति ने हमारे जीवन को अत्यधिक सरल और सुविधाजनक बनाया है, लेकिन इसके साथ ही हमें यह भी समझना आवश्यक है कि यह सुविधाएँ केवल भौतिक सुख-सुविधाओं तक सीमित न रहें। योग और वेदांत हमें यह सिखाते हैं कि बाहरी विकास के साथ आंतरिक जागरूकता का संतुलन बनाना अत्यंत आवश्यक है। यदि हम केवल बाहरी प्रगति पर ध्यान दें और अपने भीतर की चेतना को भूल जाएं, तो यह तकनीकी विकास हमें नियंत्रित करने लगेगा और हम अपनी चेतना के उच्च स्तर तक नहीं पहुँच पाएंगे।

आंतरिक चेतना का महत्व

योग और वेदांत के अनुसार, बाहरी जीवन का उद्देश्य केवल भौतिक साधन प्राप्त करना नहीं है, बल्कि आंतरिक शांति और संतुलन की ओर बढ़ना है। वेदांत हमें सिखाता है कि मानव का अंतिम उद्देश्य आत्मा की उच्चतम स्थिति को प्राप्त करना है। जैसा कि भगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं:

> "यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति।
तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च।।"
(भगवद्गीता 2.52)



अर्थात् जब तेरी बुद्धि मोह के वन से पार हो जाएगी, तब तू उस समय श्रुत-संस्कृत सभी विषयों के प्रति निःस्पृह हो जाएगा।

इस श्लोक में श्रीकृष्ण का संदेश है कि जब हमारा मन मोह और भ्रम से मुक्त हो जाता है, तब ही हम सच्ची मुक्ति की ओर अग्रसर होते हैं। लेकिन आजकल तकनीकी प्रगति के कारण हमारा मन बाहरी दुनिया में अधिक उलझ जाता है। इस प्रकार की प्रगति से हमें बाहरी सुविधाएँ तो मिल सकती हैं, लेकिन हमारी आंतरिक शांति को यह अकेले नहीं साध सकती।

आधुनिक जीवन में योग और ध्यान का स्थान

आधुनिक जीवन में जहाँ तकनीकी निर्भरता लगातार बढ़ रही है, वहाँ योग और ध्यान एक संतुलनकारी शक्ति के रूप में काम करते हैं। योग न केवल हमारे शरीर को स्वस्थ रखता है, बल्कि हमारे मन को भी एकाग्र और शांत बनाता है। ध्यान हमें इस भौतिक दुनिया से ऊपर उठकर आत्मा की शांति की ओर ले जाता है। जैसा कि पतंजलि योगसूत्र में कहा गया है:

> "योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः"
(पतंजलि योगसूत्र 1.2)



अर्थात् योग का उद्देश्य चित्त (मन) की वृत्तियों (हलचल) को रोकना है।

इसका मतलब है कि योग हमें मन की स्थिरता और एकाग्रता की ओर ले जाता है, जिससे हम बाहरी उलझनों से परे होकर अपने भीतर की शक्ति को पहचान पाते हैं। तकनीकी विकास के समय में योग हमारे मन को इस प्रकार प्रशिक्षित करता है कि हम भौतिक चीजों में उलझे बिना भी अपने आंतरिक उद्देश्यों को प्राप्त कर सकते हैं।

तकनीक के साथ विवेकपूर्ण दृष्टिकोण

वेदांत के अनुसार, किसी भी बाहरी वस्तु से जुड़ाव हमें आत्म-ज्ञान के मार्ग से भटका सकता है। हमें यह समझना चाहिए कि तकनीकी विकास का उद्देश्य हमारे जीवन को बेहतर बनाना है, न कि हमें इसके अधीन करना। तकनीकी विकास का विवेकपूर्ण प्रयोग तभी संभव है जब हमारे पास एक निर्मल और धीर-गंभीर दृष्टिकोण हो। उपनिषदों में भी कहा गया है:

> "सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म।"
(तैत्तिरीय उपनिषद 2.1)



अर्थात् ब्रह्म सत्य, ज्ञान और अनंत है।

यह श्लोक हमें यह समझाता है कि वास्तविक ज्ञान और सत्य की खोज अनंत है, और तकनीकी विकास केवल एक माध्यम है जो हमें इस यात्रा में सहायक हो सकता है। लेकिन यदि हम तकनीक के माध्यम से आत्मा की अनंतता को भूल जाएं, तो यह हमारे ऊपर हावी हो सकती है।

अतः, यह आवश्यक है कि हम बाहरी विकास के साथ-साथ आंतरिक चेतना की ओर भी ध्यान दें। योग और वेदांत का यह सन्देश है कि हम अपने मन को शांत और स्थिर रखें ताकि तकनीकी प्रगति हमारे जीवन में सहायक बने, न कि हमारे ऊपर हावी हो जाए। योग, ध्यान और वेदांत का यह संतुलित दृष्टिकोण ही हमें एक संतुलित, सुखी और आत्म-संतुष्ट जीवन की ओर ले जा सकता है।

हमारे लिए यह समय की माँग है कि हम तकनीकी प्रगति के साथ आत्म-साक्षात्कार की ओर बढ़ें, ताकि हम उच्च चेतना की ओर अग्रसर हो सकें और वास्तविक स्वतंत्रता का अनुभव कर सकें।


इश्क़ का ऐसा दीया


आँखें चुरा तो सकते हो,
मगर दिल चुरा नहीं पाओगे,
हमारी मोहब्बत की छाया से
खुद को बचा नहीं पाओगे।

हम इश्क़ का ऐसा दीया जलाएँगे,
कि उसे बुझा नहीं पाओगे,
हर बात में हमको पाओगे,
पर कभी भुला नहीं पाओगे।

तुम्हारे दिल के बाग़ में
हम गुलाब बन खिल जाएँगे,
और उस महक को तुम
कभी मिटा नहीं पाओगे।

इक दिन तुम भी सच्चाई से,
इश्क़ की रीत निभाओगे,
धड़कन तुम्हारी कहेगी सब,
मगर किसी से छुपा नहीं पाओगे।







मौन की महिमा



यदि तुम केवल एक ही कला सिखो,
मौन की गहराइयों में डुबकी लगाओ।
हर कुरूपता, हर अशांति,
तुम्हारे जीवन से स्वयं मिट जाएगी।

मौन वह दीप है, जो भीतर जलता है,
अंधकार को हर क्षण पिघलाता है।
जहाँ शब्दों का शोर समाप्त हो,
वहीं आत्मा का संगीत फूट पड़ता है।

"यत्र तु मौनं वर्धते, तत्र सत्वं भवति।"
जहाँ मौन बढ़ता है, वहाँ सत्व जागता है।
कोई चीख, कोई दर्द नहीं,
सिर्फ आत्मा का गूढ़ सत्य जागता है।

शब्दों के पीछे जो शक्ति है,
वह मौन की ही सन्तान है।
हर ऋषि, हर ज्ञानी ने कहा,
"मौन ही तो ईश्वर की पहचान है।"

मौन नहीं बस चुप्पी का नाम,
यह तो ब्रह्म का स्पर्श है।
शब्द जहां थम जाते हैं,
वहीं ब्रह्मांड का सार प्रकट है।

तुम्हारे भीतर की हलचल,
जो तुम्हें कभी चैन नहीं देती,
मौन में ही वो झरना बन जाती है,
जो हर विष को धो देती है।

यदि चाहो शांति, सुन्दरता,
तो केवल मौन को अपना लो।
बिना शोर, बिना प्रयास,
हर असत्य से खुद को बचा लो।

मौन की इस साधना में,
जीवन का हर रहस्य मिलेगा।
शब्दों की सीमाएं टूटेंगी,
और परम सत्य दिखेगा।


अवलोकितेश्वर: करुणा का प्रतीक



अवलोकितेश्वर बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय में करुणा के प्रतीक के रूप में पूजित हैं। इन्हें "करुणा का बोधिसत्त्व" कहा जाता है, जो सभी प्राणियों के दुःख को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उनकी हजार भुजाएँ और हजार नेत्र एक गहन प्रतीकात्मकता लिए हुए हैं। आइए इस दिव्य प्रतिमा के दर्शन और अर्थ को समझने का प्रयास करते हैं।

हजार भुजाओं का प्रतीक

अवलोकितेश्वर की हजार भुजाएँ दर्शाती हैं कि वे एक साथ अनेक दिशाओं में, असीम तरीकों से, प्राणियों की सहायता करने में सक्षम हैं। यह उनकी सार्वभौमिक करुणा और सेवा भावना का प्रतीक है।

भुजाएँ और सहायता: प्रत्येक भुजा में एक नेत्र स्थित होता है, जो उनकी हर दिशा में जागरूकता को दर्शाता है। वे यह सुनिश्चित करते हैं कि कोई भी प्राणी उनके ध्यान से वंचित न रह सके।

करुणा का प्रसार: यह प्रतीक हमें सिखाता है कि करुणा की कोई सीमा नहीं होती और हमें भी दूसरों के कष्टों को कम करने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए।


"ओम मणि पद्मे हुम" का महत्व

इस मंत्र का गहरा संबंध अवलोकितेश्वर से है। इसका जाप मनुष्य के हृदय में करुणा और शुद्धि का संचार करता है:

> ओम - शरीर, वाणी, और मन की शुद्धि का प्रतीक
मणि - रत्न, जो करुणा का प्रतीक है
पद्मे - कमल, जो ज्ञान का प्रतीक है
हुम - एकता और शक्ति का प्रतीक


यह मंत्र हमें बताता है कि करुणा और ज्ञान को मिलाकर जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है।

हजार नेत्रों का महत्व

अवलोकितेश्वर की हजार आँखें इस बात का प्रतीक हैं कि वे संसार के हर कोने में हो रहे दुःख को देख सकते हैं। ये नेत्र हमें यह भी याद दिलाते हैं कि हमें अपनी अंतर्दृष्टि का उपयोग कर हर व्यक्ति के दुःख को समझने और उसे कम करने का प्रयास करना चाहिए।


अवलोकितेश्वर और बौद्ध दर्शन

बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय में अवलोकितेश्वर का विशेष स्थान है। वे "निर्वाण" को प्राप्त करने की बजाय संसार के प्राणियों की सहायता करने के लिए इस धरती पर बने रहने का संकल्प लेते हैं। इसे "बोधिसत्त्व प्रतिज्ञा" कहा जाता है।

शिक्षाएँ और प्रेरणा

अवलोकितेश्वर हमें यह सिखाते हैं:

करुणा: हर व्यक्ति के प्रति प्रेम और दया का भाव रखें।

सेवा: अपनी क्षमताओं का उपयोग दूसरों की सहायता के लिए करें।

असिमित क्षमता: जैसे हजार भुजाएँ और नेत्र हर दिशा में काम करते हैं, वैसे ही हमें भी अपने भीतर असीम संभावनाओं को पहचानना चाहिए।

अवलोकितेश्वर की प्रतिमा और उनकी शिक्षाएँ मानवता के लिए करुणा और सेवा का मार्ग प्रशस्त करती हैं। उनकी हजार भुजाएँ और नेत्र हमें यह संदेश देती हैं कि यदि हमारा उद्देश्य शुद्ध हो और हमारी भावना दृढ़, तो हम भी हर दिशा में लोगों के लिए सहायक हो सकते हैं। उनके प्रति श्रद्धा रखना न केवल आध्यात्मिक लाभ देता है, बल्कि यह हमारे जीवन को भी अधिक सार्थक और सेवा-प्रधान बनाता है।

ॐ मणि पद्मे हुम।


सच में परवाह न करना



सच में परवाह न करना,
मतलब बेरुख़ी या उदासी नहीं,
ये तो वो ख़ुदगी है,
जहाँ बाहरी शोर का असर नहीं।

दुनिया के तानों और तारीफ़ों से,
जब तुम अपनी राह न मोड़ो,
ख़ुशी के इस खेल में,
अपना ही सूरज तुम जोड़ो।

ये नफ़ा-नुकसान का हिसाब नहीं,
ये जीवन को खुलकर जीने की बात है।
जहाँ हर फ़ैसला तुम्हारा हो,
ना किसी और की सौग़ात है।

जो कहते हैं तुम्हें गिराने को,
उनकी आवाज़ को तुम दबा दो।
अपने सपनों के रंग भरो,
हर मुश्किल को अपना बना लो।

सच में परवाह न करना,
मुक्ति का सच्चा ज़रिया है।
जो सच में मायने रखता है,
बस वही तुम्हारा संसार है।


पूर्णता की ओर

यह विचार गहराई से सच्चाई को छूता है।
"Connect to share your completeness, Not to find a missing piece."
यह समझाता है कि हम अपने भीतर पूर्ण हैं। हमें संबंधों में अपनी कमी पूरी करने के लिए नहीं जाना चाहिए, बल्कि अपनी पूर्णता को साझा करने के लिए जाना चाहिए।

पूर्णता की ओर

मैंने खोजा था टुकड़ों में खुद को,
हर रिश्ते में ढूंढा एक अधूरी गूंज को।
पर हर तलाश ने और खाली किया,
जैसे अपना ही प्रतिबिंब धुंधला दिया।

फिर यह पंक्तियाँ मुझसे आ टकराईं,
जैसे किसी ने गूंजती शांति सुनाई।
"पूर्णता तुम्हारा स्वभाव है,
संबंध केवल उसे साझा करने का प्रभाव है।"

क्या मैं अधूरा था, या बस भ्रम में था?
क्या यह दुनिया मेरी कमी से जूझ रही थी?
नहीं, उत्तर मेरे भीतर ही सोया था,
पूर्णता का दीपक, जिसे मैंने खोया था।

अब मैं जुड़ता हूँ, पर किसी आस से नहीं,
कोई खालीपन भरने की तलाश से नहीं।
मैं जुड़ता हूँ, अपनी रोशनी को बांटने,
अपने स्वभाव को हर दिल तक पहुंचाने।

हर रिश्ता अब एक संगम बन गया है,
जहाँ दो पूर्ण आत्माएँ मिलती हैं।
न कोई अधूरापन, न कोई आवश्यकता,
सिर्फ प्यार, स्नेह और उपस्थिति।

पूर्णता के इस सत्य को जी लो,
और देखो, कैसे जीवन बहारों से भर जाएगा।


खुद से प्यार, असली शक्ति



अजीब है ना, खुद को सबसे ज़्यादा कठोर बनाना,
जबकि हमें चाहिए था खुद को सबसे बड़ा झंडा उठाने वाला।
दूसरों को तारीफों से सजाते हैं,
पर खुद को अक्सर इग्नोर करते जाते हैं।

सोचो, अगर हम खुद को वही प्रेम देते,
जो अपने सबसे प्यारे दोस्त को कहते।
"तुम कर सकते हो," "तुम बेस्ट हो,"
तब तो हर मुश्किल आसान हो जाती, देखो!

खुद से दयालु होना कोई मामूली बात नहीं,
यह तो असली ताकत है, जो हमें मिलती है आत्म-विश्वास से।
नफरत की जगह, प्यार को अपनाओ,
इससे तो हर दिन खुद से ही जीत जाओ।

हमेशा खुद को समझाना है,
"तुम भी हो ख़ास, ये याद रखना है।"
कभी नज़रें न झुका लो, ख़ुद को बढ़ाने दो,
क्योंकि खुद से प्यार करना ही असली राज़ है, जो कभी नहीं कम होने दो!


वैदिक ज्योतिष में 27 नक्षत्रों के वेद मंत्रों का महत्व



वैदिक ज्योतिष में नक्षत्रों का विशेष स्थान है। नक्षत्र वे तारामंडल हैं, जिनके आधार पर व्यक्ति की जन्म कुंडली और ग्रहों की स्थिति का आकलन किया जाता है। कुल 27 नक्षत्र होते हैं, और प्रत्येक नक्षत्र का अपना एक विशिष्ट महत्व होता है। इन नक्षत्रों से जुड़े मंत्रों का जाप व्यक्ति के जीवन में शांति, उन्नति और संतुलन लाने में सहायक होता है।

### नक्षत्रों का आध्यात्मिक प्रभाव
हर नक्षत्र का संबंध किसी न किसी देवता या शक्ति से जुड़ा होता है, और यह माना जाता है कि इनके मंत्रों के माध्यम से उन देवताओं की कृपा प्राप्त होती है। जब व्यक्ति इन मंत्रों का नियमित जाप करता है, तो वह नक्षत्रों से उत्पन्न होने वाले नकारात्मक प्रभावों से बच सकता है। इसके साथ ही, मंत्र जाप से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जो जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने में सहायक होता है।

### वेद मंत्रों का महत्व
वेद मंत्र केवल शब्दों का मेल नहीं होते, बल्कि इनमें दिव्य ध्वनियाँ और गहरे अर्थ समाहित होते हैं। जब व्यक्ति इन मंत्रों का सही उच्चारण करता है, तो वे व्यक्ति की आत्मा और ब्रह्मांड के बीच की ऊर्जा को संतुलित करते हैं। हर नक्षत्र के लिए अलग-अलग वेद मंत्र होते हैं, जिनका प्रभाव व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक जीवन पर पड़ता है।

### नक्षत्र और उनका संबंध जीवन से
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, जिस नक्षत्र में व्यक्ति का जन्म होता है, वह उसके स्वभाव, भाग्य और जीवन की दिशा को प्रभावित करता है। यदि किसी नक्षत्र का प्रभाव नकारात्मक हो, तो उसके वेद मंत्रों का जाप करने से उस नक्षत्र के बुरे प्रभाव को कम किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर, यदि व्यक्ति का जन्म अश्विनी नक्षत्र में हुआ है, तो अश्विनी नक्षत्र का वेद मंत्र "ॐ अश्विनी कुमाराभ्यो नमः" का जाप करने से उस नक्षत्र की सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।

### मंत्र जाप का सही तरीका
वेद मंत्रों का जाप करने के लिए सबसे पहले व्यक्ति को मंत्रों का सही उच्चारण सीखना आवश्यक है। इसके लिए योग्य गुरु की सहायता लेना चाहिए। मंत्रों का जाप शुद्ध हृदय और श्रद्धा से करना चाहिए ताकि वे पूरी तरह से प्रभावी हों। मंत्र जाप करने का सबसे उत्तम समय ब्रह्म मुहूर्त यानी सुबह के समय माना जाता है, जब वातावरण शुद्ध और शांत होता है।

### नक्षत्र मंत्र और जीवन में शांति
जो लोग अपने जीवन में शांति, उन्नति और स्थिरता की तलाश कर रहे हैं, उनके लिए नक्षत्र वेद मंत्रों का जाप अत्यधिक लाभकारी हो सकता है। ये मंत्र व्यक्ति की कुंडली में स्थित ग्रहों और नक्षत्रों को संतुलित करने में सहायक होते हैं। इसके अलावा, नियमित मंत्र जाप से मानसिक तनाव कम होता है और जीवन में आंतरिक शांति का अनुभव होता है।

वैदिक ज्योतिष में नक्षत्र वेद मंत्रों का महत्व अनमोल है। ये मंत्र केवल आध्यात्मिक जागरूकता ही नहीं बढ़ाते, बल्कि इन्हें सही ढंग से अपनाने से जीवन में सकारात्मक बदलाव भी आते हैं। यदि आप भी अपने जीवन में नक्षत्रों के प्रभाव को संतुलित करना चाहते हैं, तो नक्षत्र वेद मंत्रों का नियमित जाप करें और अपने जीवन को शांति, समृद्धि और संतुलन से भरें। 

इस प्रकार, वैदिक परंपरा में नक्षत्रों के मंत्रों का जाप एक आध्यात्मिक यात्रा है, जो व्यक्ति को स्वयं से और ब्रह्मांड से जोड़ने में सहायक होता है।

वैदिक ज्योतिष में नक्षत्रों का विशेष स्थान है। आइये जानते हैं सभी 27 नक्षत्रों के वेद मंत्र और उनके महत्व।

### 1. अश्विनी नक्षत्र वेद मंत्र
```
ॐ अश्विनौ तेजसाचक्षु: प्राणेन सरस्वती वीर्य्यम वाचेन्द्रो
बलेनेन्द्राय दधुरिन्द्रियम । ॐ अश्विनी कुमाराभ्यो नम: ।
```
**महत्व**: अश्विनी नक्षत्र का यह मंत्र शारीरिक और मानसिक शक्ति को बढ़ाने में सहायक होता है।

### 2. भरणी नक्षत्र वेद मंत्र
```
ॐ यमायत्वा मखायत्वा सूर्य्यस्यत्वा तपसे देवस्यत्वा सवितामध्वा
नक्तु पृथ्विया स गवं स्पृशस्पाहिअर्चिरसि शोचिरसि तपोसी।
```
**महत्व**: भरणी नक्षत्र का मंत्र जीवन में अनुशासन और नियम का पालन करने में मदद करता है।

### 3. कृतिका नक्षत्र वेद मंत्र
```
ॐ अयमग्नि सहत्रिणो वाजस्य शांति गवं
वनस्पति: मूर्द्धा कबोरीणाम । ॐ अग्नये नम: ।
```
**महत्व**: कृतिका नक्षत्र का यह मंत्र आग्नेय तत्व को संतुलित करने और जीवन में सफलता पाने के लिए महत्वपूर्ण है।

### 4. रोहिणी नक्षत्र वेद मंत्र
```
ॐ ब्रहमजज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्विसीमत: सूरुचोवेन आव: सबुधन्या उपमा
अस्यविष्टा: स्तश्चयोनिम मतश्चविवाह (सतश्चयोनिमस्तश्चविध:) ॐ ब्रहमणे नम: ।
```
**महत्व**: यह मंत्र बुद्धि और ज्ञान को बढ़ाने में सहायक होता है।

### 5. मृगशिरा नक्षत्र वेद मंत्र
```
ॐ सोमधेनु गवं सोमाअवन्तुमाशु गवं सोमोवीर: कर्मणयन्ददाति
यदत्यविदध्य गवं सभेयम्पितृ श्रवणयोम । ॐ चन्द्रमसे नम: 
```
**महत्व**: मृगशिरा नक्षत्र का मंत्र जीवन में शांति और समृद्धि लाने में मदद करता है।

### 6. आर्द्रा नक्षत्र वेद मंत्र
```
ॐ नमस्ते रूद्र मन्यवSउतोत इषवे नम: बाहुभ्यां मुतते नम: 
ॐ रुद्राय नम: 
```
**महत्व**: यह मंत्र जीवन में आ रही बाधाओं और नकारात्मक शक्तियों को दूर करने में सहायक होता है।

### 7. पुनर्वसु नक्षत्र वेद मंत्र
```
ॐ अदितिद्योरदितिरन्तरिक्षमदिति र्माता: स पिता स पुत्र:
विश्वेदेवा अदिति: पंचजना अदितिजातम अदितिर्रजनित्वम 
ॐ आदित्याय नम: 
```
**महत्व**: पुनर्वसु नक्षत्र का मंत्र सुरक्षा और शांति प्रदान करता है।

### 8. पुष्य नक्षत्र वेद मंत्र
```
ॐ बृहस्पते अतियदर्यौ अर्हाद दुमद्विभाति क्रतमज्जनेषु 
यददीदयच्छवस ॠतप्रजात तदस्मासु द्रविण धेहि चित्रम 
ॐ बृहस्पतये नम: 
```
**महत्व**: यह मंत्र गुरु की कृपा से ज्ञान और धन प्राप्त करने में सहायक होता है।

### 9. अश्लेषा नक्षत्र वेद मंत्र
```
ॐ नमोSस्तु सर्पेभ्योये के च पृथ्विमनु:
ये अन्तरिक्षे यो देवितेभ्य: सर्पेभ्यो नम: 
ॐ सर्पेभ्यो नम:।
```
**महत्व**: यह मंत्र सर्प दोष और नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करता है।

### 10. मघा नक्षत्र वेद मंत्र
```
ॐ पितृभ्य: स्वधायिभ्य स्वाधानम: पितामहेभ्य: स्वधायिभ्य: स्वधानम: 
प्रपितामहेभ्य स्वधायिभ्य स्वधानम: अक्षन्न पितरोSमीमदन्त:
पितरोतितृपन्त पितर:शुन्धव्म । ॐ पितरेभ्ये नम: 
```
**महत्व**: पितरों की कृपा प्राप्त करने के लिए मघा नक्षत्र का यह मंत्र अति महत्वपूर्ण है।

### 11. पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र वेद मंत्र
```
ॐ भगप्रणेतर्भगसत्यराधो भगे मां धियमुदवाददन्न: 
भगप्रजाननाय गोभिरश्वैर्भगप्रणेतृभिर्नुवन्त: स्याम: 
ॐ भगाय नम: 
```
**महत्व**: इस मंत्र से जीवन में सुख-समृद्धि और संतोष प्राप्त होता है।

### 12. उत्तराफालगुनी नक्षत्र वेद मंत्र
```
ॐ दैव्या वद्धर्व्यू च आगत गवं रथेन सूर्य्यतव्चा 
मध्वायज्ञ गवं समञ्जायतं प्रत्नया यं वेनश्चित्रं देवानाम 
ॐ अर्यमणे नम: 
```
**महत्व**: यह मंत्र व्यक्ति के जीवन में नेतृत्व और संतुलन का संचार करता है।

### 13. हस्त नक्षत्र वेद मंत्र
```
ॐ विभ्राडवृहन्पिवतु सोम्यं मध्वार्य्युदधज्ञ पत्त व विहुतम
वातजूतोयो अभि रक्षतित्मना प्रजा पुपोष: पुरुधाविराजति 
ॐ सावित्रे नम: 
```
**महत्व**: यह मंत्र रचनात्मकता और सृजनशीलता को प्रकट करता है।

### 14. चित्रा नक्षत्र वेद मंत्र
```
ॐ त्वष्टातुरीयो अद्धुत इन्द्रागी पुष्टिवर्द्धनम 
द्विपदापदाया: च्छ्न्द इन्द्रियमुक्षा गौत्र वयोदधु: 
त्वष्द्रेनम: । ॐ विश्वकर्मणे नम: 
```
**महत्व**: यह मंत्र कला और सौंदर्य की सराहना को बढ़ाता है।

### 15. स्वाती नक्षत्र वेद मंत्र
```
ॐ वायरन्नरदि बुध: सुमेध श्वेत सिशिक्तिनो
युतामभि श्री तं वायवे सुमनसा वितस्थुर्विश्वेनर:
स्वपत्थ्या निचक्रु: । ॐ वायव नम: 
```
**महत्व**: स्वाती नक्षत्र का मंत्र जीवन में गति और स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है।

### 16. विशाखा नक्षत्र वेद मंत्र
```
ॐ इन्द्रान्गी आगत गवं सुतं गार्भिर्नमो वरेण्यम 
अस्य पात घियोषिता । ॐ इन्द्रान्गीभ्यां नम: 
```
**महत्व**: यह मंत्र इच्छाशक्ति को बढ़ाता है और सफलताएँ प्राप्त करने में सहायक होता है।

### 17. अनुराधा नक्षत्र वेद मंत्र
```
ॐ नमो मित्रस्यवरुणस्य चक्षसे महो देवाय तदृत
गवं सपर्यत दूरंदृशे देव जाताय केतवे दिवस्पुत्राय सूर्योयश
गवं सत । ॐ मित्राय नम: 
```
**महत्व**: अनुराधा नक्षत्र का यह मंत्र मित्रता और सहयोग को बढ़ावा देता है।

### 18. ज्येष्ठा नक्षत्र वेद मंत्र
```
ॐ त्राताभिंद्रमबितारमिंद्र गवं हवेसुहव गवं शूरमिंद्रम वहयामि शक्रं
पुरुहूतभिंद्र गवं स्वास्ति नो मधवा धात्विन्द्र: । ॐ इन्द्राय नम: ।
```
**महत्व**: यह मंत्र व्यक्ति को शक्ति और सुरक्षा प्रदान करता है।

### 19. मूल नक्षत्र वेद मंत्र
```
ॐ मातेवपुत्रम पृथिवी पुरीष्यमग्नि गवं स्वयोनावभारुषा तां
विश्वेदैवॠतुभि: संविदान: प्रजापति विश्वकर्मा विमुञ्च्त 
ॐ निॠ

### 20. मूल नक्षत्र वेद मंत्र
```
ॐ मातेवपुत्रम पृथिवी पुरीष्यमग्नि गवं स्वयोनावभारुषा तां
विश्वेदैवॠतुभि: संविदान: प्रजापति विश्वकर्मा विमुञ्च्त 
ॐ निॠतये नम: 
```
**महत्व**: यह मंत्र व्यक्ति को स्थिरता और सुरक्षा प्रदान करता है और नकारात्मक ऊर्जा से बचाने में मदद करता है।

### 21. पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र वेद मंत्र
```
ॐ अपाघ मम कील्वषम पकृल्यामपोरप: अपामार्गत्वमस्मद
यदु: स्वपन्य-सुव: ॐ अदुभ्यो नम: 
```
**महत्व**: पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र का मंत्र व्यक्ति को पाप और नकारात्मक कर्मों से मुक्त करता है।

### 22. उत्तराषाढ़ा नक्षत्र वेद मंत्र
```
ॐ विश्वे अद्य मरुत विश्वAउतो विश्वे भवत्यग्नय: समिद्धा:
विश्वेनोदेवा अवसागमन्तु विश्वेमस्तु द्रविणं बाजो अस्मै 
```
**महत्व**: यह मंत्र विश्व के देवताओं का आह्वान करता है और व्यक्ति को समाज में प्रतिष्ठा और सफलता दिलाता है।

### 23. श्रवण नक्षत्र वेद मंत्र
```
ॐ विष्णोरराटमसि विष्णो श्नपत्रेस्थो विष्णो स्युरसिविष्णो
धुर्वोसि वैष्णवमसि विष्नवेत्वा । ॐ विष्णवे नम: 
```
**महत्व**: श्रवण नक्षत्र का यह मंत्र भगवान विष्णु का आह्वान करता है और व्यक्ति के जीवन में शांति और संतुलन लाता है।

### 24. धनिष्ठा नक्षत्र वेद मंत्र
```
ॐ वसो:पवित्रमसि शतधारंवसो: पवित्रमसि सहत्रधारम 
देवस्त्वासविता पुनातुवसो: पवित्रेणशतधारेण सुप्वाकामधुक्ष: 
```
**महत्व**: यह मंत्र व्यक्ति को संपत्ति, धन, और समृद्धि प्रदान करता है और उनके कार्यों को सफल बनाता है।

### 25. शतभिषा नक्षत्र वेद मंत्र
```
ॐ वरुणस्योत्त्मभनमसिवरुणस्यस्कुं मसर्जनी स्थो वरुणस्य
ॠतसदन्य सि वरुण स्यॠतमदन ससि वरुणस्यॠतसदनमसि 
```
**महत्व**: शतभिषा नक्षत्र का यह मंत्र स्वास्थ्य और दीर्घायु की प्राप्ति के लिए वरुण देव का आह्वान करता है।

### 26. पूर्वभाद्रपद नक्षत्र वेद मंत्र
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ॐ उतनाहिर्वुधन्य: श्रृणोत्वज एकपापृथिवी समुद्र: विश्वेदेवा
ॠता वृधो हुवाना स्तुतामंत्रा कविशस्ता अवन्तु 
ॐ अजैकपदे नम:
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**महत्व**: यह मंत्र व्यक्ति के जीवन में अनुशासन और संतुलन लाने में सहायक होता है।

### 27. उत्तरभाद्रपद नक्षत्र वेद मंत्र
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ॐ शिवोनामासिस्वधितिस्तो पिता नमस्तेSस्तुमामाहि गवं सो
निर्वत्तयाम्यायुषेSत्राद्याय प्रजननायर रायपोषाय (सुप्रजास्वाय) 
ॐ अहिर्बुधाय नम: 
```
**महत्व**: यह मंत्र जीवन में सफलता, समृद्धि, और लंबी आयु की प्राप्ति के लिए उपयुक्त है।

### 28. रेवती नक्षत्र वेद मंत्र
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ॐ पूषन तव व्रते वय नरिषेभ्य कदाचन 
स्तोतारस्तेइहस्मसि । ॐ पूषणे नम:
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**महत्व**: रेवती नक्षत्र का यह मंत्र व्यक्ति के जीवन में शांति, संतुलन और सुरक्षा का संचार करता है।

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यह 27 नक्षत्रों के वेद मंत्र हैं, जिनका वैदिक ज्योतिष में विशेष महत्व है। इन मंत्रों का जाप व्यक्ति की कुंडली के अनुसार किया जा सकता है, जिससे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, और व्यक्ति की कठिनाइयों का समाधान प्राप्त होता है।

प्रबल अर्पण

जीवन है सादा, सरल-सा सार,  
प्रेम पनपता, रिश्तों में बारंबार।  
सेहत मिलती, अच्छे कर्मों से रोज,  
धन संचित होता, निवेशों से संजो।  

शांति का वास, आत्मचिंतन में होता,  
प्रतिभा उभरती, जो श्रम निरंतर होता।  
यदि चाहिए जीवन में सच्चा मान,  
सोचो, समझो, और करो दीर्घकाल।  

लंबी अवधि में फलते हैं ये बीज,  
समर्पण से मिलते, जीवन के सजीव।  
मूल्य पाना हो अगर, तो रखो यही दृष्टिकोण,  
दीर्घकालिक सोच, बनाओ अपना प्रबल अर्पण।

अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...