Open Marriage Series – Part 2:

"दुनियाभर में क्यों बढ़ रहा है ओपन मैरिज का चलन?"
(लॉकडाउन डायरी – May 2020, जब रिश्तों की परिभाषाएं बदल रही थीं)



2020 के लॉकडाउन ने जैसे पूरी दुनिया को थमा दिया। मगर उसी ठहरे हुए समय में, बहुत से रिश्तों की परतें खुलीं। मैंने खुद महसूस किया कि शादी जैसे रिश्ते को लेकर अब सिर्फ ‘संग-साथ’ की पारंपरिक परिभाषा ही नहीं बची है, बल्कि लोग अब 'ईमानदार स्वतंत्रता' को रिश्तों का आधार मानने लगे हैं।

एक ऐसा ही मॉडल है: ओपन मैरिज (Open Marriage)
जिसमें दो विवाहित लोग आपसी सहमति से बाहरी यौन या रोमांटिक संबंध बनाने की स्वतंत्रता रखते हैं — बगैर अपनी मूल शादी को तोड़े।


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तो सवाल है — यह चलन अचानक क्यों बढ़ रहा है?

1. डिजिटल युग की पारदर्शिता और विकल्पों की भरमार

आज Instagram, Tinder, Bumble जैसे ऐप्स ने विकल्पों की भरमार कर दी है।

“क्या मैं किसी और के साथ भी खुश हो सकता/सकती हूं?” ये सवाल अब मन में दबा नहीं रहता, सामने आता है।


2017 की एक YouGov की रिपोर्ट के अनुसार:

> “Nearly 32% Americans under 30 said they would consider an open relationship.”




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2. पारंपरिक विवाह मॉडल की असफलता

अमेरिका में 40–50% शादियां तलाक में बदलती हैं।

भारत में तलाक की दर भले कम हो (~1%), पर मानसिक अलगाव और सेक्सलेस मैरिज के केस तेजी से बढ़ रहे हैं।


ऐसे में लोग सोचते हैं —
"शायद रिश्ते को तोड़े बिना, उसे नया सांस लेने का मौका दिया जा सकता है?"


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3. सेक्स और आत्मा को अलग देखने की प्रवृत्ति

ओशो ने कहा था:
“Sex is physical, but love is spiritual. Don’t confuse the two.”

आज के युवा और मिड-एज कपल्स, खासकर अमेरिका, कनाडा, यूरोप और अब भारत में भी, इस विचारधारा को अपनाने लगे हैं। उन्हें लगता है कि
“अगर मैं अपने पार्टनर से प्यार करता/करती हूं, तो सेक्स को बंधन क्यों बनाऊं?”


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4. LGBTQ+ और Non-Monogamy समुदाय की स्वीकृति

जैसे-जैसे समाज LGBTQ+ को स्वीकार कर रहा है, वैसे-वैसे monogamy (एक ही साथी के साथ रिश्ता) का दबाव भी कम हो रहा है।

अब “polyamory”, “swinging”, “open marriage” जैसे शब्द आम होते जा रहे हैं।


India में भी "Polyamorous Relationship" शब्द पर Google Trends में 2020 से spike देखा गया।


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5. लॉकडाउन में रिश्तों की सच्चाई उजागर हुई

जब लोग महीनों घर में साथ रहे, तब उन्हें अहसास हुआ कि:

“हम अब पहले जैसे नहीं हैं”

“हमारी जरूरतें बदल गई हैं”


कुछ ने रिश्ते तोड़ दिए, कुछ ने “New Rules of Marriage” बनाए।
Open Marriage उन्हीं में से एक रास्ता है।


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कुछ देशों की स्थिति:

देश Open Marriage/Non-monogamy स्वीकार्यता (%)

USA 20–25% लोगों ने कभी न कभी open relationship में रहने की बात स्वीकार की
France 30% से अधिक युवा open relationship को स्वीकारते हैं
Canada 21% कपल्स का मानना है कि open marriage marriages को बचा सकती है
India (Urban) अभी आंकड़े सीमित हैं, पर 2020–2024 में Google पर 'open marriage' सर्च 4x बढ़ा है



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भारत में भी चुपचाप हो रहा बदलाव:

फिल्म इंडस्ट्री में, मीडिया प्रोफेशनals में, cosmopolitan शहरों (Mumbai, Bangalore, Pune, Delhi) में बहुत से कपल्स अब इस model को explore कर रहे हैं — मगर social stigma के डर से चुपचाप।

मैंने खुद लॉकडाउन के दौरान कई जोड़ों से ऑनलाइन बात की — कुछ therapist के जरिये, कुछ दोस्ती के माध्यम से — जिन्होंने कहा:

> “हम अपने रिश्ते को खत्म नहीं करना चाहते थे, मगर monotony से बाहर निकलने का तरीका सिर्फ cheating नहीं था — open marriage थी।”

Open Marriage का बढ़ता चलन केवल एक यौनिक क्रांति नहीं है —
ये संवाद, समझ, और ईमानदारी की खोज है।

जहां पहले cheating छिपकर होती थी, वहां अब कुछ लोग खुलेपन से कह रहे हैं:
"मैं तुम्हें प्यार करता हूं, पर शायद कभी किसी और के साथ कुछ पलों के लिए रहना चाहूं — क्या हम इस पर बात कर सकते हैं?"


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Open Marriage Series – Part 1:

"जब रिश्ते की परिभाषा बदली"

(लॉकडाउन डायरी – May 2020)

मैंने कभी नहीं सोचा था कि एक शादीशुदा जोड़ा, एक-दूसरे से बेइंतहा मोहब्बत करने के बावजूद, एक-दूसरे को किसी और के साथ सोने की आज़ादी दे सकता है।

पर फिर लॉकडाउन आया।

काम बंद, शूटिंग बंद, पार्टियाँ बंद — और शुरू हुई ज़िंदगी की असली पड़ताल। मैंने अपने आस-पास, खासकर फिल्म इंडस्ट्री में, कुछ ऐसे कपल्स को देखा जिनके बीच संबंधों की सीमाएं पार हो चुकी थीं — मगर उनका रिश्ता टूट नहीं रहा था, बल्कि और मजबूत हो रहा था।


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"ओपन मैरिज क्या है?"

सीधे शब्दों में — ये एक ऐसी शादी है जिसमें पति और पत्नी, एक-दूसरे की सहमति से, बाहर यौन या रोमांटिक संबंध बना सकते हैं। मगर भावनात्मक और ज़िम्मेदारी का रिश्ता केवल पति-पत्नी के बीच रहता है।


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एक कपल की कहानी – 'अन्वेषा और रोहित' (नाम बदले गए हैं)

रोहित एक सिनेमैटोग्राफर हैं और अन्वेषा कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर। हम तीनों कई बार सेट पर मिले थे। एक दिन लॉकडाउन के दौरान वीडियो कॉल पर बात करते हुए मैंने अनायास पूछ लिया — "कैसे कट रही है जिंदगी?"

अन्वेषा मुस्कराई और बोली, “तू बहुत पूछता है... चल, आज एक राज़ खोलते हैं।”

और फिर उन्होंने मुझे बताया कि उनकी शादी ओपन मैरिज पर आधारित है।
“हमने तय किया है कि जब तक हमारे दिलों में भरोसा है, हम एक-दूसरे की देह की आज़ादी को नहीं रोकेंगे,” रोहित ने कहा।

मैं स्तब्ध था।
“क्या तुम जलते नहीं एक-दूसरे से?” मैंने पूछा।

“जलते हैं... मगर फिर बात करते हैं... और धीरे-धीरे वो जलन भी मोहब्बत में बदल जाती है।”


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ओशो के विचार – देह स्वतंत्र, आत्मा जुड़ी

ओशो ने कहा था:

"Marriage is the ugliest institution if it is possessive. But it can be the most beautiful friendship if it is based on freedom."

ओपन मैरिज उसी विचार की आधुनिक व्याख्या है। इसमें कोई एक-दूसरे को 'possess' नहीं करता। प्यार, विश्वास और संवाद ही उसका आधार होता है।


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लॉकडाउन और ओपन मैरिज

COVID-19 के दौरान लोगों को एहसास हुआ कि रिश्ता केवल सेक्स पर आधारित नहीं है। जब महीनों साथ रहकर भी कोई जोड़ा संतुष्ट नहीं था, तब उन्होंने सोचना शुरू किया — क्या उन्हें और भी आज़ादी चाहिए? क्या पारंपरिक शादी का ढांचा उनके लिए काम नहीं कर रहा?


ये सीरीज किसी को उपदेश देने के लिए नहीं है। ये मेरी यात्रा है — उन कहानियों और अनुभवों की, जो मैंने देखे, महसूस किए और समझने की कोशिश की।

ओपन मैरिज न सही या गलत है — वो बस एक विकल्प है। एक रास्ता है, जिसमें कुछ लोग खुद को ज़्यादा सच्चा और आज़ाद महसूस करते हैं।


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May 2020 Lockdown Diary

हस्तमैथुन: पाप या प्रकृति?
– एक मौन कामवासना की गूंज

"जब पूरी दुनिया थम गई थी, तब देह की पुकार और भी तेज़ हो गई थी..."

मई 2020 – कोविड के लॉकडाउन का वो महीना, जब हम सब अपने-अपने घरों में सिमटे बैठे थे। बाहर वायरस का डर था और भीतर एक अजीब बेचैनी। स्पर्श, आलिंगन, चुंबन — ये सब केवल कल्पना में रह गए थे। ऐसे समय में बहुत से लोग एक ऐसे अनुभव की तरफ लौटे जिसे हम अक्सर छुपाते हैं — हस्तमैथुन।


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क्या हस्तमैथुन पाप है? या यह प्रकृति की देन है?

हमारे समाज में अक्सर इसे गंदा, शर्मनाक, या अपराध जैसा माना जाता है। मगर जब मैंने खुद इस विषय पर आत्मचिंतन किया और पढ़ना शुरू किया — तो मुझे एहसास हुआ कि यह कोई मनुष्य का 'बिगाड़ा हुआ व्यवहार' नहीं है, बल्कि प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो न केवल मनुष्य, बल्कि जानवरों में भी पाई जाती है।


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जानवर भी करते हैं हस्तमैथुन?

हाँ। वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि हाथी, चिंपैंज़ी, बिल्लियाँ, कुत्ते, डॉल्फ़िन, और यहाँ तक कि पक्षी भी हस्तमैथुन करते हैं।

चिंपैंज़ी अक्सर पत्तियों या पत्थरों का उपयोग करते हैं खुद को संतुष्ट करने के लिए।

डॉल्फ़िन समुद्र के किनारों या साथी डॉल्फ़िन की सहायता से अपनी यौन इच्छाओं को शांत करते हैं।

नर हाथी अक्सर अपने लिंग को जमीन से रगड़ कर सुख प्राप्त करते हैं।


तो क्या ये भी पाप कर रहे हैं? नहीं। क्योंकि उनके लिए यह स्वाभाविक है। तो हमारे लिए क्यों नहीं?


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विज्ञान की नज़र से

हस्तमैथुन:

तनाव कम करता है

नींद को बेहतर बनाता है

यौन स्वास्थ को बनाए रखता है

पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर के खतरे को कम कर सकता है


यह नशा नहीं है, जब तक कि यह दिनचर्या पर हावी न हो जाए।


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ओशो की सोच

ओशो ने कहा था:
“Sex is a natural energy. It should be meditative, not condemned.”
उनका मानना था कि यदि हम हस्तमैथुन को अपराध की नजरों से देखना छोड़ दें और उसे ध्यानपूर्वक समझें, तो यह आत्म-प्रेम का एक रूप बन सकता है।


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धार्मिक और सामाजिक द्वंद्व

भारत जैसे देश में जहाँ कामसूत्र जन्मा, वहाँ आज भी हस्तमैथुन को गुप्त, शर्मनाक या धर्मविरुद्ध माना जाता है।

कुछ पुरानी मान्यताएँ कहती हैं कि इससे "ओज" की हानि होती है

मगर आधुनिक मनोविज्ञान कहता है कि यह सिर्फ गिल्ट से पैदा हुआ डर है



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लॉकडाउन में आत्म-स्पर्श की सच्चाई

लॉकडाउन में जब यौन संबंध संभव नहीं थे, तब मैंने खुद को, अपने शरीर को, अपनी स्पंदनशीलता को महसूस किया — बिना अपराधबोध के। मैंने जाना कि हस्तमैथुन केवल देह का क्रिया नहीं, मन की भी एक शुद्धि हो सकता है, अगर वह ध्यान से किया जाए।


हस्तमैथुन ना तो पाप है, ना पुण्य — यह सिर्फ एक प्राकृतिक क्रिया है। बस जैसे भोजन का अति करना नुकसानदेह होता है, वैसे ही इसका भी संतुलन ज़रूरी है। स्वीकृति, आत्म-जागरूकता और ध्यान — यही इसकी कुंजी है।




May 2020 Lockdown Diary

 पोर्नोग्राफी: स्वतंत्रता या असुरक्षा?

"जब पूरा शहर बंद हो गया था, तब मेरा मन और खुल गया था..."

मैं यह लेख  26 मई 2020 में लिख रहा हूँ। वही समय जब पूरी दुनिया लॉकडाउन में थी। लोग अपने घरों में बंद थे। सड़कों पर सन्नाटा था, अस्पतालों में हाहाकार था, और मनुष्यों के भीतर — एक गहरी बेचैनी। यह वो वक़्त था जब सेक्स, प्रेम, और स्पर्श जैसे शब्द हमारी ज़िन्दगी से गायब हो गए थे। और ऐसे समय में, मैंने महसूस किया कि बहुत से लोग एक ऐसे माध्यम की तरफ झुक रहे थे — पोर्नोग्राफी।

पोर्न क्या है, और क्यों?

पोर्न कोई नई चीज़ नहीं है। यह उतना ही पुराना है जितना कि इंसानी कल्पना। प्राचीन भारत में खजुराहो की मूर्तियाँ, कामसूत्र, अजन्ता की दीवारों पर बने चित्र — यह सब किसी न किसी रूप में 'पोर्नोग्राफिक' कहे जा सकते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि अब ये सब डिजिटल हो चुका है — अंगुली के एक क्लिक पर।

लॉकडाउन और पोर्न की भूख

कोविड के लॉकडाउन में जब लोग प्रेमियों से दूर हो गए, अकेलेपन और तनाव ने दिमाग को घेर लिया — तब बहुतों के लिए पोर्न एक 'comfort' बन गया। एक escapism — एक पलायन। WHO की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2020 के लॉकडाउन में पोर्न वेबसाइट्स पर ट्रैफिक में 20–30% की बढ़ोतरी हुई।

स्वतंत्रता या फिसलन?

कुछ लोग कहते हैं — "ये मेरी आज़ादी है, मेरी ख्वाहिश है।"
तो कुछ कहते हैं — "यह मानसिक और नैतिक गिरावट है।"

सच कहूँ तो मैं खुद इस द्वंद में रहा। कई बार ऐसा लगता है कि पोर्न एक private pleasure है — मगर धीरे-धीरे मैंने जाना कि यह pleasure अक्सर guilt में बदल जाता है। मनुष्य का मस्तिष्क डोपामाइन से भर जाता है, और हर बार एक नया, ज़्यादा刺激कारी content चाहिए होता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

पोर्न देखने से दिमाग में reward circuit activate होता है, जो हमें pleasure देता है। मगर repeated exposure se एक प्रकार की dependency या addiction develop हो सकती है। Neuroscience कहता है कि ज़्यादा पोर्न देखने से dopamine receptors dull हो जाते हैं, और real life intimacy से संतुष्टि नहीं मिलती।

ओशो का दृष्टिकोण

ओशो कहते थे —
“Sexual repression is the cause of perversion.”
उनका मानना था कि यदि सेक्स को सम्मान के साथ स्वीकार किया जाए, तो पोर्न जैसी छुपी हुई लालसाएं धीरे-धीरे कम हो जाएंगी।

मैंने क्या महसूस किया

लॉकडाउन में जब मेरे आसपास कुछ नहीं था, तब मैंने खुद को कई बार पोर्न की ओर झुकते पाया। मगर एक समय ऐसा भी आया जब इससे ऊबन, अपराधबोध और खालीपन महसूस हुआ। मैंने तब ध्यान और स्व-स्वीकृति की राह पकड़ी।

पोर्न एक tool है। इसका उपयोग अच्छा भी हो सकता है, और बुरा भी। यह आपकी स्वतंत्रता बन सकता है, या आपकी असुरक्षा। फर्क सिर्फ इस बात पर है — आप इसका इस्तेमाल क्यों कर रहे हैं?


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open sex end



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"काम एक ऊर्जा है – suppressed हो तो विनाश लाती है, समझी जाए तो साधना बन जाती है।"
– ओशो


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प्रस्तावना: एक अद्भुत यात्रा का अंत, या एक नई शुरुआत?

23 भागों की इस लंबी और गहन सीरीज़ के बाद, आज जब मैं यह अंतिम लेख लिख रहा हूँ, तब तारीख है 25 मई।
तारीख सिर्फ एक दिन नहीं, बल्कि एक अहसास है — कोविड लॉकडाउन का समय, जब पूरी दुनिया ठहरी हुई थी।
लोग अपने घरों में बंद थे, डर और असुरक्षा की चादर ओढ़े हुए। और उस समय, "सेक्स" नामक वह स्वाभाविक इच्छा — जो एक सामान्य दिनचर्या में सहज थी —
वो भी घुटने लगी।


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कोविड लॉकडाउन और सेक्स – जब इच्छाएं भी क्वारन्टीन में चली गईं

सेक्स हमेशा से दो शरीरों का नहीं, दो चेतनाओं का मिलन रहा है। लेकिन कोविड के समय:

न सोशल इंटरैक्शन,

न डेटिंग,

न फिजिकल एक्सप्रेशन।


लोग अपनी इच्छाओं के साथ अकेले पड़ गए।
Open Sex जैसे प्रयोगात्मक विचार — जिनके बारे में मैंने इस सीरीज़ में लिखा — वो भी ठहर गए।
शरीर को छूने की आज़ादी खत्म हुई। लेकिन शायद…
आत्मा को छूने का मौका मिला।


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23 भागों की श्रृंखला — विषय और उद्देश्य

इस श्रृंखला में हमने explore किया:

Open Sex

Open Marriage

Swingers

Group Sex

Pansexuality

Bisexuality

Asexuality

Spiritual Sex

Tantric Union

Gender Fluidity

Lust vs Love

और सबसे महत्वपूर्ण — मानव मन की गहराइयाँ।


ये लेख केवल सेक्स की बात नहीं कर रहे थे।
ये "Sex ke बहाने आत्मा की यात्रा" थे।
जैसे ओशो कहते हैं:

> "सेक्स ही शुरुआत है — मगर अगर ठीक से जिया जाए, तो वही समाधि की सीढ़ी बनता है।"




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मैंने क्या सीखा इस यात्रा से?

1. काम वर्जित नहीं है — वह जीवन ऊर्जा है।
उसे समझने से जीवन खिलता है, न कि उसे दबाने से।


2. हर इंसान की यौनिकता अलग है — और सबकी अपनी जगह पर सच्ची है।
चाहे कोई bisexual हो, pansexual हो, या asexual — सबका अनुभव मूल्यवान है।


3. सत्य आत्मा में है, शरीर में नहीं।
कई बार जो संबंध शारीरिक नहीं हो पाते, वे मानसिक रूप से अधिक शक्तिशाली बन जाते हैं।




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कोविड और सेक्स: आंतरिक मिलन की संभावना

जब बाहर का मिलन असंभव हो गया, तो हमने भीतर झाँकना शुरू किया।
Meditation, self-love, fantasy और imagination — ये सब उस वक्त के माध्यम बने।

कई लोगों ने पहली बार masturbation को शर्म नहीं, ज़िम्मेदारी की तरह समझा।
कई कपल्स ने पहली बार slow sex, mindful touch या tantric breathing को अपनाया।

कोविड ने हमसे हमारी आज़ादी छीनी, लेकिन शायद हमारी चेतना लौटा दी।


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एक निजी स्वीकारोक्ति

इस पूरी सीरीज को लिखते हुए मैंने अपने मन के कई गहरे हिस्सों को छुआ —
कभी संकोच हुआ, कभी पाप-बोध आया, तो कभी आज़ादी की महक मिली।

मैंने मुंबई, पुणे, रिषिकेश जैसे शहरों में जो अनुभव किए —
Open thinking, Osho commune, diverse people —
उन सबका सार इन पन्नों पर उतारा।


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आख़िरी सवाल: ये सब लिखकर क्या पाया?

शायद किसी का दिमाग खुले।
शायद कोई अकेला न महसूस करे।
शायद कोई shame छोड़ दे।
शायद सेक्स के ज़रिये प्रेम को, और प्रेम के ज़रिये आत्मा को छू ले।


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यह यात्रा खत्म नहीं हुई, बस एक दिशा बदली है।
अब जिस "open" की बात होगी — वो शरीर से ज़्यादा हृदय का होगा।
अब जिस "sex" की बात होगी — वो सिर्फ कामना नहीं, एक करुणा होगी।

> "जब सेक्स से प्रेम जन्म लेता है, और प्रेम से ध्यान –
तब इंसान पापी नहीं, पूज्य हो जाता है।"


"काम से ध्यान तक: एक साधक की सेक्स यात्रा"
मुझे बस कहना है, मैं साथ हूँ।

– लेखक




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Open Sex Series – Part 23



"Pansexual – Jab Prem Simāon ka Mohatāj Nahi"

(Na purush, na stri, na transgender... bas ek aakarshan jo rooh se hota hai.)


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मैंने पहली बार "Pansexual" शब्द सुना था बहुत साल पहले मुंबई के एक डिजिटल आर्ट इवेंट में।
वहाँ एक क्रिएटर मिली — नाम था Aashi.
बाल छोटे, आँखों में आज़ादी, और आवाज़ में वो साफगोई जो सिर्फ उन्हीं के पास होती है जो अपने सच के साथ जीते हैं।

मैंने पूछा —
“Pansexual ka matlab kya hota hai?”
वो मुस्कुराई और बोली:

> “Jo tumse pyaar kare, uski gender identity matter nahi karti.
Mujhe manushya se prem hota hai — na uske ling se, na uski labelling se.”




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Pansexual: Arth aur Samajh

Pan यानी सभी, और Sexual यानी यौन आकर्षण।
Pansexual vyakti kisi bhi gender identity se aakarshit ho sakte hain — male, female, transgender, non-binary ya gender-fluid.

ये sirf sex nahi, connection ka concept hai.


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Kaise hota hai Pansexuality ka Anubhav?

मैंने Aashi से पूछा,

> “Kya tumne kabhi kisi ladki se pyaar kiya?”



उसने jawab diya:

> “Ek baar ek ladki ke liye dil dhadka, ek baar ek transgender ke liye...
aur ab ek ladka meri kahani mein hai.
Sabhi apni jagah par asli the. Aur pyaar bhi.”




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Samaj ki Disha aur Dikkatein

Pansexuality abhi bhi ek less understood aur less accepted identity hai.
Log confuse karte hain ise bisexuality ke saath, par antar hai:

Bisexual: Attracted to both men & women.

Pansexual: Attracted to all genders, ya kahen beyond gender.


Zyada tar log maante hi nahi ki gender binary ke alawa bhi kuch hota hai.

> “Log hume confused bolte hain, par hamari clarity unse zyada hoti hai,”
Aashi ne ek baar kaha.




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Kya Purane Granthon Mein Iska Ullekh Hai?

Bharatiya darshanon mein prem ko roohani drishti se dekha gaya hai:

Bhakti yug ke sant, jaise Meerabai ne Shri Krishna ko patim mana, par unka prem ek deh se pare ek atma se tha.

Shiva-Shakti tattva, jahan Ardhanarishwar roop dikhata hai ki masculine aur feminine dono ek hi tattva hain.


Tantro mein bhi aise sambandhon ka ullekh hai jahan yoni-ling ke bhed se par prem ki baat hoti है।


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Mera Anubhav:

Jab main Aashi ke kareeb gaya, mujhe laga main kisi ek gender se nahi, ek prakash se mil raha hoon।
Ek baar usne mujhe kaha:

> “Tum purush ho ya patthar – farak nahi padta.
Tumhara dil sachcha hai – wahi kaafi hai.”




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Aaj ke yug mein Pansexuality ki Jagah

Instagram, Reddit aur YouTube jaise platforms par Pansexual Creators apna truth boldly rakh rahe hain।
Fir bhi India mein:

Families acceptance nahi dikhati.

Relationships ko “confusion” ka label milta hai.

Legal protection abhi bhi basic gender identities tak limited hai.



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Osho kya kehte the?

> “Sex ek prakritik urja hai – use dabao mat, use samjho.
Prem roop badal sakta hai, par prem ki asli pehchaan uski गहराई है, ना कि लिंग।”



Osho ke commune mein gender ke traditional definition se pare experimental spaces hote the।
Unka maanna tha —

> "Pyaar bina label ke hi saccha hota hai."




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Ant mein:

Pansexual hona vikriti nahi, vikas hai।
Ye darshata hai ki ek insaan ka dil kitna open ho sakta hai — jahan sirf sharir nahi, आत्मा पसंद आती है।

> “Tumhare dil ne kiski taraf haan kaha – wahi tumhara sach hai।”




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Open Sex Series – Part 22


"Gay Pati, Sanskari Biwi – Ek Modern Marriage ka Raaz"

(जब रिश्ते समझ से चलते हैं, सेक्स से नहीं)

यह कहानी है स्वाति की, जिसकी ज़िंदगी की किताब में प्यार, समझौता, और सच्चाई तीनों की इबारतें दर्ज हैं।

मैं स्वाति से पहली बार पुणे के एक साहित्य फेस्टिवल में मिला था। 
सीधी-सादी, संस्कारी साड़ी पहने, आँखों में गहराई और चेहरे पर मुस्कान। वो भी एक राइटर है। 
जब मैंने उसे अपने ब्लॉग के बारे में बताया, तो उसने धीरे से कहा:

> “मुझे भी कुछ कहना है... लेकिन बस, नाम मत लिखना। इसलिए इस कहानी में दोनों नाम मैने बदल दिए हैं।  स्वाति और रवि दोनों नाम काल्पनिक हैं but कहानी real है। 




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उसकी कहानी उसी की ज़ुबानी:

> “मेरी शादी अरेंज थी। रवि एक समझदार, शांत और cultured लड़का था।
सबकुछ ठीक था — पर कुछ ‘missing’ था।



> शादी के 8 महीने बाद एक रात उसने मुझे गले लगाकर कहा –
‘मैं gay हूं।’
और मैं... एकदम सन्न। पर गुस्सा नहीं हुआ, क्योंकि मैंने उसकी आंखों में डर देखा था – टूट जाने का डर।”




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क्यों नहीं टूटा ये रिश्ता?

> “मैंने उसे नहीं छोड़ा, क्योंकि वो झूठ में नहीं जीना चाहता था।
उसने मुझे धोखा नहीं दिया, बल्कि सच बोलकर मुझे अपना बनाया।



> और मैंने फैसला लिया –
हम दोनों एक साथ रहेंगे, बिना उस दबाव के जिसे समाज ‘शादीशुदा रिश्ता’ कहता है।”




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Modern Arrangements, Indian Values:

स्वाति और रवि ने तय किया कि वे एक-दूसरे के ‘life partners’ बने रहेंगे –
बिना सेक्स के, पर एक दोस्ती, एक भरोसे के बंधन में।

> “अब हम एक-दूसरे को date करने की इजाज़त भी देते हैं।
रवि किसी लड़के से मिले तो मैं उस लड़के से बात भी करती हूं –
और मैं जब किसी पुरुष के करीब जाऊं, रवि मुझे बस एक हँसी के साथ आशीर्वाद देता है।”




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क्या ये Marriage है? या समझौता?

> “ये शादी नहीं, companionship है।
जहां सेक्स एक ऑप्शन है, बाध्यता नहीं।
मैं कभी तलाक नहीं चाहती थी — मुझे जीवनसाथी चाहिए था, जिसपर मैं भरोसा कर सकूं। और रवि ने वो भरोसा दिया।”




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ऐसे रिश्ते कितने होते हैं?

आज भारत में LGBTQIA+ समुदाय को लेकर legal बदलाव आए हैं —
लेकिन ground reality ये है कि ऐसे modern arrangements अब भी rare हैं।
परंतु जो couples emotional maturity और openness रखते हैं, वो इन रास्तों पर भी चलते हैं।


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क्या पुराने ग्रंथों में ऐसे उदाहरण मिलते हैं?

महाभारत में शिखंडी का चरित्र — एक gender-fluid identity को दर्शाता है।

कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी अलग-अलग प्रकार के संबंधों का वर्णन मिलता है।

तंत्र परंपराओं में यौन इच्छाएं suppression नहीं, sublimation की ओर मोड़ने की बात की गई है।



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मेरी राय:

कई बार शादी दो जिस्मों का मेल नहीं, दो आत्माओं का समझौता होती है।
रवि और स्वाति जैसे लोग हमें यह सिखाते हैं कि प्यार में ‘सच’ सबसे बड़ा उपहार होता है।
भले ही वो सच थोड़ा असहज हो।


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कैद का जीवन



मैं कैद नहीं सह सकता,
दीवारों में साँस नहीं भर सकता।
कोई राह हो, कोई दर हो,
जहाँ खुले गगन का स्वर हो।

पर देखता हूँ चारों ओर,
कैसे लोग सजा रहे हैं,
अपनी-अपनी कोठरियों को,
कैसे कैद में भी हँस रहे हैं।

कोई शराब में डूबा बैठा,
कोई पर्दे की दुनिया में खोया,
कोई दौलत का खेल रचाए,
कोई रिश्तों में झूठ संजोया।

मैं सोचता हूँ, क्यों नहीं भागते?
क्यों ये बेड़ियाँ तोड़ नहीं जाते?
फिर समझ आता है उत्तर,
ये खुद ही बेड़ियाँ बनाते।

मैं निकलूँगा, मैं उड़ूँगा,
न व्यसन में, न छल में झुकूँगा।
जहाँ खुले नभ का विस्तार हो,
वहीं जीवन का त्यौहार हो।


Open Sex Series – Part 21


"Ek Biwi, Ek Premika – Dono Sahi, Dono Sachche?"

(A Bisexual Woman’s Journey Through Marriage and Love)

रात के करीब 10 बजे थे, हम मुंबई के बांद्रा में एक café के बाहर बैठे थे — मैं, और वह — रिया।
एक स्मार्ट, soulful और साफगो लड़की, जो अपनी ज़िंदगी की एक सच्ची कहानी मेरे साथ बाँटना चाहती थी।

> “क्या तुम्हें कभी किसी औरत से प्यार हुआ है?”
मैंने मुस्कुराते हुए पूछा।



उसने मेरी आँखों में देखा, और बोली —

> “प्यार एक ही बार नहीं होता, औरत हो या मर्द — दिल तो बस ‘connection’ ढूंढता है। और मुझे दोनों से हुआ है।”




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उसकी कहानी, उसी की ज़ुबानी:

> “मैंने अपने पति को प्यार से चुना था।
लेकिन मुझे अपनी कॉलेज की दोस्त से भी मोहब्बत हो गई थी — नर्म, गहरी, और किसी पवित्र नदी की तरह बहती हुई।
जब मैं उसके पास होती थी, मैं पूरी लगती थी।
और जब अपने पति के पास होती थी, मैं सुरक्षित महसूस करती थी।”



“क्या ये धोखा था?”

> “नहीं... ये मेरा सच था। एक अधूरा सच किसी से छुपाया नहीं, सिर्फ़ बाँटा नहीं था।”




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Bisexuality – विज्ञान और मनोविज्ञान की नज़र से:

Bisexuality का अर्थ है एक ऐसा व्यक्ति जिसे दोनों लिंगों की ओर आकर्षण महसूस हो सकता है – emotionally, physically या romantically। यह कोई नया चलन नहीं, बल्कि प्राचीन ग्रंथों, लोककथाओं और इतिहास में भी उल्लेखित भावना है।

Sigmund Freud bisexual tendencies को इंसान की मूलभूत प्रवृत्ति मानते थे।

Kinsey Scale (1948) के अनुसार sexuality कोई दो छोरों वाली चीज नहीं है, बल्कि एक स्पेक्ट्रम है।



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हमारे ग्रंथों में:

प्राचीन भारत में sexuality को कभी taboo नहीं माना गया।
कामसूत्र, अर्थशास्त्र, और शिव पुराण जैसे ग्रंथों में विभिन्न प्रकार के यौन रुझानों का उल्लेख मिलता है।
कुछ तंत्र साधनाओं में तो स्त्री-स्त्री मिलन को आध्यात्मिक शक्ति का आदान-प्रदान भी माना गया है।


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रिया की जंग:

> “मुझे खुद से डर लगता था।
क्या मैं गलत हूं? क्या मेरे पति मुझे छोड़ देंगे?”
पर मैंने सच बोला। मैंने अपने पति से सबकुछ कहा — आँसू के साथ, लेकिन झूठ के बिना।



> “शुरू में उसे झटका लगा... पर फिर उसने मुझे गले लगाया और कहा —
‘तू मेरी है, चाहे कोई भी तुझसे प्यार करे।’”




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तो क्या समाज इसे अपनाता है?

मुंबई, बेंगलुरु, दिल्ली जैसे शहरों में acceptance बढ़ा है,
पर अब भी bisexual women को अक्सर "confused", "attention-seeking", या "phase" कहकर invalid किया जाता है।

Reality ये है –

ये कोई choice नहीं,

ना ही कोई "Western influence",

ये एक भाव है — उतना ही सच्चा जितना किसी का heterosexual होना।



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मेरी राय:

प्यार, ईमानदारी और समझ —
ये तीन चीजें ही किसी भी रिश्ते की जड़ होती हैं।
रिया bisexual है, पर उससे भी बड़ी बात है कि वह सच्ची है।
और जब कोई इंसान अपने सच के साथ जीने लगे, तभी असली आज़ादी मिलती है।






Open Sex Series – Part 20 - 2


(Poetic-Reflective Edition)

"Bandhan ke Pare – Ek Raat, Ek Sach"

एक चमकदार रात थी वो, जुहू की गलियों में,
जहाँ रिश्ते शराब के पैग से नहीं, नीयत के इरादों से बहकते हैं।
जहाँ प्यार की परिभाषा सिर्फ़ ‘तेरा’ और ‘मेरा’ नहीं,
बल्कि ‘हम’ और ‘उनका’ मिलकर एक नई कहानी कहते हैं।


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"कौन हैं ये लोग?"
मैंने ख़ुद से पूछा —
जो अपनी पत्नियों को थमाते हैं किसी और के हाथ,
और लौटते हैं उसी बाहों में जैसे कुछ बदला ही नहीं।

"ये मोह है या मोक्ष?"
शायद दोनों के बीच की कोई धुंधली लकीर,
जिस पर चलने के लिए
ज़रूरत है हिम्मत की, ईमानदारी की — और बेपनाह समझ की।


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नील और तान्या
एक कपल, एक philosophy।
जहाँ jealousy थी —
पर उससे भी बड़ी थी intimacy।
जहाँ दूरी थी —
पर उससे भी गहरी थी बातों की नज़दीकी।

> “हमने प्यार को पिजरे में नहीं रखा,”
तान्या ने कहा।
“उसे हवा दी, धूप दी, और देखा वो कैसे उड़ता है... पर लौटकर आता है।”




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ओशो की बातें कानों में गूंजीं...

> "Sex को डर की नज़रों से मत देखो,
उसे चेतना की आंख से देखो।
तब वो पाप नहीं, परमात्मा बन जाएगा।"




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मैं देखता रहा...
उन रेत जैसे रिश्तों को,
जो छूने पर फिसलते हैं
पर समंदर से मिल जाएं तो
एक नई दुनिया बना सकते हैं।


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Swingers की ये दुनिया
कोई ‘चाल’ नहीं,
ये एक ‘चयन’ है —
जैसे कोई संत जंगल छोड़कर नग्नता चुन लेता है,
वैसे ही ये लोग कपड़ों में रहते हुए भी
रिश्तों को उघाड़ देते हैं।


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मैंने जाना —
Sex केवल शरीर नहीं होता।
Desire केवल गुनाह नहीं होती।
और शादी केवल पवित्रता का मंडप नहीं —
कभी-कभी समझ का बंधन भी बन सकती है।


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तो क्या ये सब सही है?
शायद नहीं।
क्या ये सब गलत है?
शायद वो भी नहीं।

यह बस एक तरीका है जीने का,
जहाँ प्यार और sex की परिभाषाएं,
किसी dictionary में नहीं —
बल्कि दिल की धड़कनों और एक-दूसरे की आँखों में लिखी जाती हैं।


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और मैं?
मैं अब भी वही हूं —
देखने वाला, सुनने वाला,
समझने वाला।

पर अब मैं किसी को जज नहीं करता।
क्योंकि हर दिल की अपनी भूख होती है —
और हर रिश्ते की अपनी रोटी।


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Open Sex Series – Part 20


"Swingers – रिश्तों की अदला-बदली या समझ का विस्तार?"

एक फ़िल्मी दुनिया के भीतर से मेरी आंखों देखी कहानी।


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कहानी की शुरुआत – एक चमकदार पार्टी से

उस रात मैं जुहू के एक bungalow में हुए प्राइवेट after-party में गया था।
फिल्म की शूटिंग खत्म हुई थी और celebrate करने के लिए छोटा-सा gathering रखा गया था — सिर्फ़ ‘core crew’ के लिए।
वहाँ glam और gossip की वो दुनिया सामने थी, जिसे आम लोग केवल ख़बरों में पढ़ते हैं।

एक कपल मेरी नज़र में आया — नील और तान्या (नाम बदले गए हैं)।
तान्या एक costume designer थी, bold और intelligent।
नील एक AD था — charming, confident।

बातचीत के दौरान अचानक तान्या ने कहा:

> “We’re swingers. And it has actually brought us closer.”



मैं चौंका।
मेरा चेहरा पढ़कर नील मुस्कुरा पड़ा —

> “Relax bhai, हम किसी को ज़बरदस्ती नहीं खींचते।
ये बस एक space है, जहां couples अपनी physical desires को boundaries के साथ explore करते हैं।”




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Swinging का अर्थ क्या है?

Swinging या partner swapping का मतलब होता है
consensual तरीके से किसी committed relationship में रहते हुए
दूसरे कपल्स के साथ sexual relation बनाना।

ये सिर्फ़ sex नहीं होता —
इसमें emotional maturity, trust, jealousy management और ढेर सारी बातचीत शामिल होती है।


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फ़िल्म इंडस्ट्री में खुलापन आम है... लेकिन छिपा भी बहुत है

मुंबई में रहते हुए,
खासतौर पर फ़िल्म और creative इंडस्ट्री में काम करते हुए
मैंने कई ऐसे couples देखे, जो traditional marriage की सीमाओं को तोड़कर
sex को एक exploration की तरह देखते हैं।

बांद्रा, अंधेरी, लोखंडवाला जैसे इलाकों में अक्सर
whatsapp या telegram पर private swingers groups चलते हैं।

> हर पार्टी के अपने codes होते हैं —
“soft swap”
“full swap”
“only voyeur”
और consent हर चीज़ की बुनियाद होती है।




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नील-तान्या की कहानी – क्यों चुना swinging?

मैंने पूछा, “तुमने ये lifestyle क्यों चुना?”

तान्या ने कहा:

> “हम दोनों creative हैं। Bold हैं।
और सबसे बड़ी बात — possessive नहीं हैं।
जब हमने देखा कि हमारे desires अलग हैं,
हमने cheating के बजाय honesty को चुना।”



नील ने जोड़ा:

> “हमने पहली बार एक Goa trip में ट्राय किया था।
बहुत nerves थे, लेकिन after that— हम और भी connected feel करने लगे।”




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Jealousy vs Intimacy – क्या सच में दूरी नहीं आती?

मैंने पूछा —

> “लेकिन जब तुम अपनी बीवी को किसी और के साथ देखो तो…?”



नील ने गहरी सांस ली —

> “Jealousy आती है, हां। लेकिन हम post-session एक-दूसरे को hold करते हैं।
Communication ही bridge है इस lifestyle का।”



उनका अनुभव बताता है —
Swinging का मकसद केवल sex नहीं है,
बल्कि trust को test करना और boundaries को explore करना है।


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Osho का दृष्टिकोण – सेक्स के माध्यम से जागृति

> “Sex becomes sacred only when it is lived with full awareness.” — Osho



ओशो हमेशा इस बात पर ज़ोर देते हैं कि
Sex को suppress मत करो।
अगर तुम किसी partner के साथ हो और तुम्हारे भीतर कोई और desire जन्म लेती है,
तो उसे छिपाने के बजाय उसे ईमानदारी से partner के साथ share करो।

Swinging एक ऐसा ही model है —
जहाँ transparency, honesty, और mutual consent की रोशनी में
sex को celebration की तरह जिया जाता है।


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भारत में Swinging – बढ़ता चलन, मगर चुप्पी के साथ

India में ये trend खासकर metro cities — मुंबई, बंगलुरु, पुणे, दिल्ली में बढ़ रहा है।

Websites, private apps, swinger communities underground exist करती हैं।
लेकिन अधिकतर लोग इसे छिपाकर जीते हैं क्योंकि समाज अब भी इसे पाप, व्यभिचार, या marriage की बेइज़्ज़ती मानता है।


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मेरे अनुभव से – ये सबकुछ एक illusion नहीं है, ये बदलती हुई मानसिकता है

मैंने नील-तान्या जैसे कई couples देखे हैं।
कुछ गहराई से जुड़े हुए हैं, कुछ टूट भी जाते हैं।
क्योंकि swinging किसी weak relationship को strong नहीं बनाता —
बल्कि strong relationship को और भी सच के करीब ले आता है।


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आख़िर में... सवाल तुम्हारे लिए

> क्या sex केवल दो लोगों की चीज़ है?
या इंसान की इच्छाएं इतनी complex होती हैं कि वो boundaries के भीतर सड़ने लगती हैं?



Swinging हर किसी के लिए नहीं है,
लेकिन जिनके लिए है — उनके लिए ये एक discovery है, एक growth है, एक raw truth है।


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Open Sex Series – Part 19


“Bisexuality – बीच के उस पुल की कहानी, जिसे सब पार करना चाहते हैं मगर नाम नहीं देना चाहते।”

> “Sexuality कोई सीधी रेखा नहीं है—
ये एक स्पेक्ट्रम है,
जिसमें दिल किसी भी ओर झुक सकता है—
बिना किसी लेबल, डर या पापबोध के।”




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मुंबई की वो शाम – जब मेरी सोच बदल गई

वो शाम मुंबई के अंधेरी वेस्ट की एक book café में बीती थी।
मैं एक documentary research कर रहा था “Modern Relationships in Metro India” पर।

वहीं मेरी मुलाक़ात हुई राहुल और अवनी से।(नाम बदले गए हैं)
ऊपरी तौर पर एक straight couple लगने वाला ये जोड़ा मुझे बेहद normal और खुश दिखा।

बातों-बातों में राहुल ने मुझे धीरे से कहा:

> “मैं bisexual हूं। और अवनी जानती है।”



मैं चौंका, लेकिन अवनी मुस्कुरा रही थी।

> “जब हम मिले, उसने पहले हफ्ते में ही बता दिया था।
और पता है, मैंने इसे weakness नहीं, उसकी ईमानदारी माना।”




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Bisexuality: एक Dual World की यात्रा

Bisexuality का मतलब है—
ऐसे लोग जो स्त्री और पुरुष दोनों की ओर यौन या भावनात्मक रूप से आकर्षित हो सकते हैं।

लेकिन असल में ये परिभाषा इतनी सीमित नहीं—
क्योंकि कई बार attraction शरीर से ज़्यादा ऊर्जा से होता है।


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राहुल की कहानी: "कन्फेशन और कन्फ्यूज़न"

राहुल ने बताया कि कॉलेज के दिनों में वो एक लड़के की ओर खिंचा था।

> “पहले तो खुद से डर गया था। लगा कहीं गड़बड़ तो नहीं?”
“फिर जब एक लड़की के साथ भी वही जुड़ाव महसूस हुआ,
तब जाकर समझ आया— मैं दोनों से जुड़ सकता हूं।”



ये समझना जितना आसान लगता है,
उतना ही मुश्किल होता है इसे स्वीकारना—
खुद से भी और समाज से भी।


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Avni की सोच – "मेरा पार्टनर कौन है, उसकी चाहत क्या है—मैं ये समझना चाहती हूं, जज नहीं करना"

> “राहुल bisexual है, इससे हमारे रिश्ते पर कोई फर्क नहीं पड़ा।
बल्कि हमने boundaries, trust, और emotional safety को लेकर
और भी clarity develop की।”



उन्होंने कुछ ground rules तय किए,
खुलकर बातचीत की, और emotional honesty को रखा सबसे ऊपर।


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Osho की दृष्टि – Beyond Gender, Beyond Labels

> “Love is not heterosexual, not homosexual, not bisexual.
Love is just love — pure energy.” — Osho



ओशो ने बार-बार कहा कि
Sexuality एक fluid energy है—
जो शरीरों से नहीं,
आत्माओं की लय से जुड़ती है।

> “कभी पुरुष आकर्षित करेगा, कभी स्त्री—
ये तय करने वाला मन नहीं, तुम्हारा being है।”



पुणे आश्रम में मैंने ऐसे कई seekers देखे—
जो ना ही खुद को male-female की सीमाओं में बाँधते थे,
ना ही अपनी desires को suppress करते थे।


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भारत में Bisexuality – इतिहास, शास्त्र और समकाल

कामसूत्र में ऐसे पात्र और यौन क्रियाएं वर्णित हैं
जहाँ व्यक्ति दोनों लिंगों से यौन सुख लेता है।

पुराणों में भी शिव के Ardhanarishwar रूप में
एक divine bisexuality को दर्शाया गया है—
जहाँ स्त्री और पुरुष दोनों की ऊर्जा एक में समाहित है।

> "न स्त्री न पुरुष, शिव स्वयं काम के पार हैं—
परन्तु उनकी लीला में दोनों का सम्मिलन है।"


कहानी का दूसरा कपल – प्रियंका और सिम्मी (नाम बदले गए हैं)

फिर मैं एक event में मिला दो औरतों से—
प्रियंका और सिम्मी, जो एक couple थीं।
लेकिन twist यह था कि प्रियंका शादीशुदा थी,
और bisexual होने की वजह से अपने पति से भी emotionally जुड़ी थी।

> “मैं दोनों से प्यार करती हूं।
मुझे neither monogamy suits, nor strict labels.”



इस कहानी में दर्द भी था,
confusion भी,
और प्यार की जटिलता भी।


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Bisexual होने का मतलब – Confused होना नहीं है।

समाज आज भी bisexuality को एक “कन्फ्यूज़न” मानता है।
कहते हैं:

> “अरे, तुम तय करो, लड़कों से प्यार है या लड़कियों से!”



मगर सच्चाई यह है—
Bisexuality कोई आधा-अधूरा फेज़ नहीं है।
ये एक पूर्ण यौन और भावनात्मक अनुभव है—
जो दो ध्रुवों को छूता है,
और हर इंसान को खुद को explore करने की आज़ादी देता है।


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एक संदेश: “Love को सीमाओं से मत तोलो”

Bisexual होना कोई rebel होना नहीं—
ये बस अपनी आत्मा की उस लय को पहचानना है
जो कभी स्त्री से, कभी पुरुष से, कभी दोनों से झूम उठती है।


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Open Sex Series – Part 18



"Fetishism – जब ख्वाहिशें आम नहीं होतीं"

> "इंसानी कामनाएं सीधी-सादी नहीं होतीं—
वो अजीब रास्तों से गुज़रती हैं,
किसी के जूतों में, किसी के बालों में,
किसी की चुप्पी में भी छिपा हो सकता है यौन आकर्षण।"




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Fetishism क्या है?

Fetishism एक ऐसी मानसिक-यौन प्रवृत्ति है जिसमें व्यक्ति किसी वस्तु, शारीरिक अंग, या किसी विशिष्ट स्थिति से यौन आकर्षण महसूस करता है, जो आमतौर पर यौन नहीं माने जाते।

उदाहरण के लिए:

किसी को सिर्फ पैर (Feet) देखकर उत्तेजना होती है।

किसी को चमड़े की चीज़ें (Leather, Latex) पहनकर sex करना पसंद है।

किसी को partner को बाँधना (Bondage), रोलप्ले या कंट्रोल करना उत्तेजित करता है।


ये इच्छाएं न तो पागलपन हैं, न बीमारी—
ये बस इंसान की कामना की जटिलताओं का हिस्सा हैं।


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मेरा अनुभव – पुणे के एक क्लास में

मैंने पुणे के एक Tantra-workshop में हिस्सा लिया था, जहाँ लोग अपने भीतर की suppressed इच्छाओं को खुलकर explore कर रहे थे।

वहाँ एक व्यक्ति था— नाम था विवेक।
उसने स्वीकार किया कि उसे सिर्फ तब यौन सुख मिलता है जब कोई उसे जूते पहनकर डाँटे, या उस पर हावी हो।

सुनने में अजीब लगता है?
मगर वो उस वक्त सबसे ईमानदार इंसान लग रहा था।

उसकी आँखों में कोई शर्म नहीं थी,
बस एक राहत —
कि उसने अपनी परतों को उतार फेंका था।


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Fetish के प्रकार:

1. Foot Fetish:
पैरों से यौन आकर्षण


2. Domination/Submissive:
किसी का हुक्म मानना या दूसरों पर हावी होना


3. Roleplay Fetish:
Teacher-student, Doctor-patient जैसे रोलप्ले से उत्तेजना


4. Latex/Leather Fetish:
खास कपड़ों से उत्तेजना


5. Object Fetish:
किसी वस्तु से sexual जुड़ाव (जैसे gloves, socks, etc.)


6. Pain Fetish (Masochism):
दर्द से यौन सुख पाना




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Fetish क्यूँ होते हैं? (Psychology + Science)

Fetish एक तरह का conditioning होता है—
हमारा दिमाग किसी object या स्थिति को यौन सुख से जोड़ देता है।

बचपन या किशोरावस्था में किसी विशिष्ट वस्तु या स्थिति के साथ जब पहली बार यौन उत्तेजना जुड़ी हो—
तो वही चीज़ बार-बार दिमाग में sex से associate होने लगती है।

कुछ वैज्ञानिक इसे brain wiring मानते हैं—
जैसे dopamine release एक unusual trigger से जुड़ जाए।


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Osho का दृष्टिकोण

> "Sexual fantasies repress नहीं करनी चाहिए,
उन्हें समझो, स्वीकारो—
क्योंकि repression से बीमारी पैदा होती है,
और स्वीकृति से ध्यान।"



ओशो ने Fetish को कभी condemn नहीं किया।
बल्कि उन्हें एक inner journey का हिस्सा माना।

उनका मानना था—

> "जो तुम्हारे भीतर छिपा है, उसे रोको मत,
क्योंकि वही repression एक दिन विस्फोट बनेगा।"




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क्या Fetish हमारे पुराने ग्रंथों में भी मिलते हैं?

कामसूत्र में कई ऐसी प्रवृत्तियों का वर्णन है—
जैसे अलग-अलग dress codes, रोलप्ले, प्रेम में प्रतीक्षा का नाटक आदि।

यहां तक कि कंदर्प शास्त्रों में ऐसे अभ्यास भी हैं जहाँ
स्त्री के बालों, उसकी चाल, कपड़ों तक से यौन आकर्षण की बात की गई है।

यानि हमारी संस्कृति ने भी desires को suppress नहीं किया—
उन्हें सौंदर्य और अनुभव के रूप में देखा।


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Fetish – सही या ग़लत?

कोई भी sexual inclination जब तक consensual हो और किसी को हानि न पहुँचा रहा हो,
वह गलत नहीं है।

Fetish तब गड़बड़ होता है जब वो आपकी या दूसरों की आज़ादी, स्वाभाविकता या मनोदशा को नुकसान पहुँचाने लगे।


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एक असली कहानी – "जया और रवि"

मैं एक बार एक कपल से मिला जो मेरी ब्लॉग सीरीज़ पढ़ते थे।
जया ने कहा:

> “रवि को सिर्फ तब arousal होता है जब मैं nurse का रोल निभाती हूं। पहले मुझे गुस्सा आता था। पर जब मैंने उसे समझा, तो पाया— कि उसमें कुछ भी असामान्य नहीं है। ये बस उसका तरीका है अपने pleasure को पाने का।”



अब वो दोनों हर महीने एक नया रोलप्ले ट्राय करते हैं,
और उनका रिश्ता पहले से ज़्यादा खुला और मज़बूत हो गया है।


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अंत में...

कामना की दुनिया सीधी नहीं होती—
वो टेढ़े रास्तों से होती हुई
कभी जूतों, कभी धड़कनों,
कभी चुप्पियों में आकार लेती है।

Fetish कोई अपराध नहीं—
बल्कि आपकी sexual यात्रा की एक परछाईं है,
जिसे अपनाया जाए तो चेतना का दरवाज़ा खुल सकता है।


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Open Sex Series – Part 17



"Asexuality – जब मन ही नहीं चाहता"

> "जब सब शोर कर रहे हों प्यार की, देह की, स्पर्श की—
तब कुछ लोग बस चुप रहते हैं।
क्योंकि उन्हें चाहिए ही नहीं।"




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Asexuality क्या है?

Asexuality का अर्थ है —
जब कोई व्यक्ति किसी भी लिंग या व्यक्ति के प्रति यौन आकर्षण महसूस नहीं करता।
ना पुरुष, ना स्त्री, ना दोनों —
बस एक भीतर की स्थिरता।

पर इसका मतलब यह नहीं कि वो व्यक्ति प्यार, रिश्ते, या भावनात्मक गहराई नहीं चाहता।
बहुत से asexual लोग रोमांटिक संबंधों में होते हैं —
बस उनमें sex की इच्छा नहीं होती।


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Asexual होना कोई बीमारी नहीं है

समाज ने हमें यह सिखाया है कि
sex करना ज़रूरी है, प्राकृतिक है, और हर इंसान को करना चाहिए।
लेकिन asexuality इस सोच को चुनौती देती है।

कुछ लोगों के लिए sex बस एक biological function नहीं,
बल्कि आवश्यकता ही नहीं है।


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मेरा अनुभव – एक शांत तपस्वी से मुलाक़ात

मैं एक बार ऋषिकेश में गंगा किनारे बैठा था।
वहाँ एक युवा तपस्वी मिला — नाम था नयन।

बिलकुल आधुनिक पहनावा, आंखों में शांति, बोलचाल में प्रेम।

बातों-बातों में उसने कहा:

> "मुझे कभी किसी के साथ सोने की इच्छा ही नहीं हुई।
ना स्त्री, ना पुरुष।
मुझे लगता है, मेरी ऊर्जा किसी और दिशा में बह रही है।"



वो संगीत रचता था, ध्यान करता था, नदी को सुनता था।

मैंने उसकी आँखों में एक अद्भुत शांति देखी —
जो मैंने बहुत कम लोगों में देखी थी।


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Types of Asexual People

1. Asexual (Pure):
उन्हें sex में कोई रुचि नहीं होती।


2. Graysexual:
कभी-कभी बहुत दुर्लभ स्थितियों में थोड़ा यौन आकर्षण महसूस कर सकते हैं।


3. Demisexual:
सिर्फ तभी यौन इच्छा महसूस करते हैं, जब बहुत गहरा भावनात्मक जुड़ाव हो।




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Asexual लोगों के सामने चुनौतियाँ

समाज का यह कहना कि "तुम्हें कुछ गड़बड़ है"

रिश्तों में पार्टनर की sexual जरूरतें पूरी न कर पाने की दुविधा

खुद को "different" या "broken" समझने का डर


लेकिन सच्चाई ये है —
उनमें कुछ भी गलत नहीं है।
हर इंसान का शरीर और मन अलग है।


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ओशो का नज़रिया

> "Sex एक साधन है — साध्य नहीं।
और अगर किसी के भीतर ऊर्जा sex की ओर नहीं जाती —
तो वह सीधे परमात्मा की ओर जा सकती है।"



ओशो ने कभी sex को ना अपनाने वालों को भी सम्मान दिया।
क्योंकि उनके अनुसार हर आत्मा की दिशा अलग हो सकती है।

कुछ लोग प्रेम से परमात्मा तक जाते हैं,
कुछ लोग अकेले ध्यान से —
और दोनों ही रास्ते वैध हैं।


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क्या Asexuality हमारे शास्त्रों में है?

हां।
कई ऋषियों-मुनियों, ब्रह्मचारियों ने स्वेच्छा से यौन जीवन का त्याग किया।
वो सिर्फ शरीर से नहीं, मन से भी संन्यासी थे।

हनुमान जी को ब्रह्मचारी कहा गया।

भीष्म पितामह ने आजीवन विवाह और यौन जीवन से दूरी बनाई।


उनकी तपशक्ति सिर्फ त्याग की नहीं,
बल्कि एक गहरे आत्मिक निर्णय की थी।


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Asexuality – आधुनिक दौर में

आजकल Asexuality को LGBTQIA+ के 'A' में जोड़ा गया है।
बहुत से युवाओं को जब ये अहसास होता है कि "मैं ऐसा ही हूँ",
तो वो राहत महसूस करते हैं।

वे जान जाते हैं कि वो अकेले नहीं हैं।


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अंत में...

हर इंसान की देह और चेतना अलग है।
Sexuality एक रंगमंच है —
जिसमें सबकी भूमिका अलग है।

Asexuality भी एक विकल्प है —
एक जीवनशैली,
जो न शोर मचाती है,
न विरोध करती है —
बस शांत रहती है।


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अगर तुम्हारे भीतर कभी ऐसा कोई मौन रहा हो —
तो तुम समझोगे,
कि प्रेम की सबसे ऊँची अवस्था शायद यही है —
जहाँ देह की कोई ज़रूरत नहीं बचती।


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Open Sex Series – Part 16



"Bisexuality – भीतर की दोहरी आग"

> “जब दिल और देह दोनों को प्यार चाहिए —
न सिर्फ स्त्री से, न सिर्फ पुरुष से —
बल्कि उस ऊर्जा से, जो दोनों में है।”




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बाइसेक्सुअल होना — मतलब क्या है?

जब कोई व्यक्ति स्त्री और पुरुष दोनों की ओर भावनात्मक, शारीरिक या यौन आकर्षण महसूस करता है, तो वह खुद को बाइसेक्सुअल मान सकता है।
यह कोई कन्फ्यूजन नहीं है,
बल्कि एक बहुत गहरे स्वीकार की निशानी है।


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बाइसेक्सुअलिटी – इतिहास की नज़रों से

प्राचीन यूनान में, जैसे सॉक्रेटीज़ और प्लेटो के समय में,
पुरुषों और युवकों के बीच आत्मिक और शारीरिक संबंध सामान्य माने जाते थे।

भारत के पुराणों में भी "शिव" को अर्धनारीश्वर के रूप में दिखाया गया है –
जो संकेत करता है कि हर व्यक्ति के भीतर स्त्री और पुरुष दोनों का मेल होता है।

ओशो ने भी कहा:

> “तुममें स्त्री भी है, पुरुष भी –
अगर तुम दोनों से प्रेम कर सकते हो, तो तुम्हारा प्रेम दोगुना होगा।”





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मेरा व्यक्तिगत अनुभव – एक Bisexual मित्र की कहानी

मैं पुणे में ओशो commune के बाहर एक युवा से मिला –
वह एक कलाकार था – चित्र बनाता, संगीत बजाता और बहुत भावुक रहता।

एक शाम हमारी लंबी बातचीत हुई —
उसने कहा:

> "Deepak bhai,
जब मैं किसी पुरुष को देखता हूँ, तो उसकी ऊर्जा मुझे आकर्षित करती है,
और जब किसी स्त्री को देखता हूँ, तो उसका सौंदर्य मुझे मोहित करता है।
मैं दोनों से प्रेम करना चाहता हूँ –
क्या ये गलत है?"



उसकी आँखों में सवाल नहीं,
बस एक चाह थी — कि उसे कोई जज ना करे।

मैंने बस इतना कहा:

> "तू वही कर, जो तुझे भीतर से सही लगे —
क्योंकि प्रेम कभी गलत नहीं हो सकता।"




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मनोविज्ञान और बाइसेक्सुअलिटी

1. Fluid Orientation:
कई मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि sexuality कोई rigid identity नहीं,
बल्कि यह समय और अनुभवों के साथ बदल सकती है।


2. Kinsey Scale:
सेक्सोलॉजिस्ट Alfred Kinsey ने 0 से 6 तक एक स्केल बनाई —
जहाँ 0 = पूरी तरह straight
और 6 = पूरी तरह homosexual
और इसके बीच के नंबर bisexual spectrum को दर्शाते हैं।


3. Identity vs Behavior:
कोई bisexual हो सकता है लेकिन सिर्फ opposite sex से संबंध बनाता हो —
इसका मतलब यह नहीं कि उसकी पहचान झूठी है।
क्योंकि भावना और व्यवहार में फ़र्क होता है।




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भारत और Bisexuality – वर्जनाएं और बदलाव

भारत में अभी भी bisexuality को ठीक से स्वीकार नहीं किया गया है।
लोग या तो confused समझते हैं, या attention-seeker।
LGBTQIA+ मूवमेंट में भी bisexuality की representation कम है।
लेकिन धीरे-धीरे Urban spaces और Youth groups में ये चर्चा में आने लगा है।


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ओशो का दृष्टिकोण

> “तुम अगर सच में खुलोगे —
तो पाओगे,
तुम्हारा प्रेम न तो सिर्फ एक शरीर से है,
न एक लिंग से।
वह ऊर्जा से है — और ऊर्जा का कोई gender नहीं होता।”



ओशो ने sexuality को केवल देह का नहीं,
बल्कि आत्मिक विकास का द्वार माना।

उनकी commune में कई bisexual लोगों को मैंने खुलकर जीते देखा —
बिना डर, बिना शर्म, बस प्रेम और स्वीकृति के साथ।


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बाइसेक्सुअलिटी के फायदे और चुनौतियाँ

फायदे:

गहराई से स्वयं को जानने की क्षमता

दो तरह की ऊर्जा (masculine & feminine) को अनुभव करने का मौका

समाज में बदलाव लाने की प्रेरणा


चुनौतियाँ:

समाज का भ्रम और अस्वीकार

दोनों gender के पार्टनर से ईमानदारी निभाने की जिम्मेदारी

खुद को “confused” कहे जाने की पीड़ा



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अंत में...

बाइसेक्सुअल होना किसी दुविधा का नाम नहीं,
बल्कि यह एक प्रेम का विस्तार है —
जहाँ दिल और देह सिर्फ एक लिंग से नहीं बंधते।

तुम कौन हो, किससे प्रेम करते हो,
ये तुम्हारी आत्मा तय करे —
ना कि समाज के डर।


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Open Sex Series – Part 15




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Open Sex Series – Part 15

"Group Sex – मनोविज्ञान, अनुभव और भारतीय समाज में इसका वजूद"

> “जब देह एक से अधिक देहों में घुलती है,
तब मन में कई परतें खुलती हैं –
कुछ मोहक, कुछ डरावनी।”




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Group Sex – ये शब्द सुनते ही कई लोगों के भीतर एक रोमांच उठता है, और साथ ही एक झिझक भी।

क्यों?

क्योंकि ये समाज के बनाए संकीर्ण ढांचों से बाहर है।
हमने सेक्स को हमेशा दो लोगों के बीच की चीज़ माना है –
पति-पत्नी, प्रेमी-प्रेमिका, या बस दो शरीर।

लेकिन क्या होता है जब तीसरा, चौथा या पाँचवाँ शरीर इस खेल में जुड़ता है?


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Group Sex का इतिहास – ये नया नहीं है

प्राचीन रोम और यूनान की सभ्यताओं में ये एक सामान्य अभ्यास था।

तांत्रिक परंपराओं में भी ऐसे यज्ञ होते थे जहाँ कई साधक-साधिकाएं मिलकर एक ऊर्जा क्षेत्र का निर्माण करते थे।

ओशो की कम्यून में, विशेष ध्यान और सहमति के साथ कभी-कभी ऐसे प्रयोगों की अनुमति दी जाती थी –
जहाँ देह सिर्फ देह नहीं थी,
वह एक माध्यम था चेतना को स्पर्श करने का।



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मनोविज्ञान क्या कहता है?

Group Sex के पीछे कुछ गहरे मनोवैज्ञानिक कारण होते हैं:

1. नवीनता की भूख (Novelty Seeking):
मस्तिष्क का डोपामिन सिस्टम नए अनुभवों से उत्तेजित होता है।
Multiple partners dopamine surge बढ़ाते हैं।


2. फैंटेसी फुलफिलमेंट:
कई लोगों की छुपी इच्छाएं — जैसे 'being watched', 'sharing partner', 'threesome' — इस माध्यम से पूरी होती हैं।


3. Power Dynamics और Submission:
कोई खुद को पूरी तरह सौंप देना चाहता है, कोई सब पर नियंत्रण चाहता है —
Group sex इन इच्छाओं को मंच देता है।




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मैंने खुद एक बार इसे एक साधना के रूप में देखा – पुणे के ओशो कम्यून में।

वहाँ एक ध्यान शिविर था –
"Deconditioning the Sexual Mind"
जिसमें कुछ सेशंस में शरीर को ‘collective energy field’ का हिस्सा माना गया।

शुरू में अजीब था –
तीन लोग एक-दूसरे के बेहद पास, नंगे,
लेकिन कोई हवस नहीं,
कोई जबरदस्ती नहीं —
सिर्फ मौन, सिर्फ कंपन, सिर्फ स्पर्श की ऊर्जा।

मैंने पहली बार समझा —
सेक्स सिर्फ देह की बात नहीं है,
बल्कि ऊर्जा के प्रवाह का एक प्रयोग भी हो सकता है।


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Group Sex के फायदे (अगर सहमति और समझदारी हो):

Emotional Liberation (especially from jealousy)

Deep understanding of your own boundaries

Non-monogamous love का अनुभव

शरीर और आत्मा की खुली अभिव्यक्ति



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नुकसान और खतरे (अगर सिर्फ उत्तेजना के लिए किया जाए):

मन में अपराधबोध, guilt

STD’s और शारीरिक जोखिम

Emotional trauma या Attachment confusion

संबंधों में असुरक्षा



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भारत में Group Sex – वर्जना या सच्चाई?

बात करें आधुनिक भारत की, तो:

Metros जैसे दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु में swingers communities बढ़ रही हैं।

कई कपल्स इसे explore कर रहे हैं — secrecy और anonymity के साथ।

लेकिन समाज इसे अब भी अश्लीलता और नैतिक पतन की दृष्टि से देखता है।


हालांकि, मेरा अनुभव कहता है —
अगर हर भागीदार की स्पष्ट सहमति और मानसिक तैयारी हो,
तो यह एक प्रयोग हो सकता है – आत्मा और देह दोनों को जानने का।


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ओशो क्या कहते हैं?

> "तुम जितना अपनी देह के साथ ईमानदार हो,
उतना ही परमात्मा के करीब हो।
भय और वर्जनाएं ही तुम्हें बाँधती हैं।
प्रेम और समझ तुम्हें मुक्त करते हैं।"




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अंत में...

Group Sex कोई ‘जरूरत’ नहीं है,
यह एक चुनाव है।
वह चुनाव जो तुम्हें या तो गहराई देगा, या और उलझा देगा।

मैंने जब इसे एक साधना के रूप में देखा –
तो पाया कि ये भी एक दर्पण है
जहाँ न तुम किसी और को देखते हो –
बल्कि खुद को नया रूप देते हो।


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Open Sex Series – Part 14


"पुरुष की ऊर्जा, शिव तत्व और उसके डर – एक गहरे अनुभव की यात्रा"

जब भी सेक्स की बात होती है,
ज़्यादातर बातें स्त्री के अनुभव, उसकी शक्ति या उसकी भावनाओं पर केंद्रित होती हैं –
लेकिन पुरुष के भीतर भी एक ऐसा संसार है
जो अक्सर अनकहा, अनसुना और अनछुआ रह जाता है।


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मैंने खुद को जब गहराई से टटोला,

तो पाया कि मेरे भीतर दो चीज़ें लगातार टकरा रही थीं:

1. वासना और भय


2. प्रेम और मौन



एक ओर शरीर खिंचता था,
तो दूसरी ओर आत्मा डरती थी –
कहीं मैं टूट न जाऊँ, कहीं खो न जाऊँ।


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ओशो कहते हैं:

> “पुरुष का डर यह नहीं कि वह स्त्री में खो जाएगा,
बल्कि यह है कि वह स्वयं को कभी पूरी तरह नहीं दे पाया।”




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पुरुष की ऊर्जा – शिव तत्व क्या है?

शिव का अर्थ है –
पूर्ण शून्यता, अडोल मौन, निस्पंद चेतना।

जब पुरुष अपनी वासना से ऊपर उठता है,
तो वह साक्षी बनता है।

न वह भागता है

न वह पकड़ता है

बस देखता है

बस होता है


यही शिवत्व है।


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मेरा अनुभव – रात्रि की वह साधना

ये तब की बात है जब मैं रिशिकेश के पास एक ध्यान शिविर में गया था।
वहाँ एक ध्यान सत्र था – "पुरुष का मौन और स्त्री की ऊर्जा"।
उस ध्यान में पुरुषों को अकेले एक कमरे में बैठाया गया
और कहा गया –
"तुम्हें कुछ नहीं करना है – बस अपनी ऊर्जा को भीतर महसूस करना है।"

शुरू के 10 मिनटों में मेरी देह में अजीब बेचैनी थी।
मन बार-बार बाहर भाग रहा था,
कल्पनाएँ, कामनाएँ, डर...

लेकिन धीरे-धीरे
जब साँसें गहरी होने लगीं
तो एक गहराई भीतर उतरने लगी।


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तब मुझे महसूस हुआ कि मैं हमेशा ‘कुछ करना’ चाहता था।

छूना, पाना, जीतना।
लेकिन उस मौन में –
जब मैंने पहली बार खुद को पूरी तरह देखा,
तो एक शांत, विशाल, मौन पुरुष मेरे भीतर खड़ा था।
वो डरता नहीं था,
वो माँगता नहीं था।
वो सिर्फ देख रहा था –
वह शिव था।


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पुरुष का सबसे बड़ा डर क्या है?

1. विफलता का भय – सेक्स में अच्छा न कर पाने का डर।


2. अस्वीकृति का भय – कहीं स्त्री उसे अस्वीकार न कर दे।


3. अधिकार खोने का भय – क्योंकि उसने हमेशा सेक्स को ‘पाना’ समझा है।


4. खुद को पूरी तरह खोलने का डर – क्योंकि उसने रोना, टूटना, समर्पण करना सीखा ही नहीं।




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पुराने ग्रंथों में शिव क्या कहते हैं?

विज्ञान भैरव तंत्र में पार्वती पूछती हैं:

> "प्रेम क्या है? और मिलन क्या है?"



शिव उत्तर देते हैं:

> "जो मौन में विलीन हो जाए, वही सच्चा मिलन है।
जहाँ न इच्छा बचे, न पहचान – बस शून्यता रहे।"




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तो क्या पुरुष सेक्स के जरिए आत्मज्ञान पा सकता है?

हाँ —
अगर वह सेक्स को मौन से, प्रेम से, और समर्पण से जीता है।
अगर वह स्त्री को जीतने की जगह उसे समझता है।
और अगर वह खुद को खोलकर, रोकर, टूटकर
देह से आगे की यात्रा करता है।


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अंत में...

पुरुष होना आसान नहीं।
शिव बनना और भी कठिन है।
लेकिन जो पुरुष इस मार्ग पर चलता है –
वो न सिर्फ स्त्री को जान पाता है,
बल्कि खुद को भी मुक्त करता है।

Open Sex Series – Part 14 यही कहता है:

“सेक्स अगर सिर्फ जीतने का माध्यम है, तो तुम कभी प्रेम नहीं कर पाओगे।
लेकिन अगर तुम खुद को हार दोगे —
तो तुम्हारी चेतना शिव बन जाएगी।”


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Open Sex Series – Part 13





"तांत्रिक सम्भोग में नारी की भूमिका और देवी-चेतना का जागरण – एक सच्ची कहानी के साथ"

जब हम प्रेम करते हैं तो अक्सर पुरुष की दृष्टि से ही देखते हैं,
लेकिन तांत्रिक मार्ग में स्त्री केवल एक शरीर नहीं होती —
वह शक्ति है, वह देवी है, वह जागरण का द्वार है।


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ओशो कहते हैं:

> “स्त्री को अगर संपूर्ण स्वीकृति और सम्मान मिले, तो वह स्वयं ब्रह्मज्ञान का माध्यम बन सकती है। नारी देह, शक्ति का मंदिर है।”




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स्त्री की भूमिका – तांत्रिक दृष्टि से

तांत्र में पुरुष शिव होता है —
स्थिर, मौन, चेतन
और स्त्री शक्ति —
संचारी, लहराती हुई ऊर्जा।

जब ये दोनों संपूर्ण होश और प्रेम से मिलते हैं,
तब वो आनंद जन्म लेता है जिसे तुरीयावस्था कहा गया है।


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एक सच्ची कहानी – 'दीपा' का अनुभव

यह अनुभव मेरा है — और इसका जिक्र करते हुए भी
मुझे आज भी भीतर से कंपन होता है।

वो पुणे के ओशो आश्रम में थी। नाम था – X
लगभग 36 साल की साधिका।
पहली बार मैंने उसे देखा, तो लगा जैसे वो अपने शरीर से नहीं,
अपने ऊर्जा-मंडल से चल रही है।
उसकी आँखों में कोई लालसा नहीं,
बस एक गहरा मौन।


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हमारे बीच बातचीत कुछ खास नहीं थी।

बस सुबह ध्यान, दोपहर में वॉक और रात को संगीत ध्यान में मुलाकात होती थी।
लेकिन एक दिन — उसने कहा:
“तुम मौन हो। मैं भी हूँ। क्या तुम मेरी ऊर्जा में उतरना चाहोगे?”

मैं स्तब्ध था।
ये कोई अश्लील प्रस्ताव नहीं था।
ये एक आमंत्रण था — एक ऊर्जा की यात्रा में प्रवेश का।


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उस रात हम एक साथ ध्यान में बैठे।

कोई शारीरिक संपर्क नहीं था।
सिर्फ साँसों की एकता।
धीरे-धीरे —
उसने मेरा हाथ पकड़ा और मेरी आँखों में देखा।

उसके भीतर से कुछ बह रहा था —
जैसे कोई जलधारा मेरे भीतर उतर रही हो।
मेरे हृदय में कंपन्न हुआ — और अचानक मेरा सिर पीछे की ओर झुक गया।

मैंने नहीं झुकाया था।

वो स्वयं हुआ।


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तब उसने कहा:

> "अब हम मिलेंगे – जैसे शिव और शक्ति मिलते हैं,
ना देह से, ना वासना से – केवल मौन से।"



हमने कुछ भी जल्दी नहीं की।
छूने में भी ध्यान था।
हर स्पर्श, जैसे कोई मंत्र हो।


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तकरीबन एक घंटे बाद —

हमारी देहें जुड़ी थीं लेकिन आत्माएं उड़ रही थीं।
मैंने पहली बार महसूस किया कि स्त्री देह से कोई दिव्यता निकल रही है।
जैसे कोई गंगा बह रही हो,
और मैं उसमें शिवलिंग की तरह स्थिर।

तब मैंने महसूस किया —
स्त्री अगर स्वीकृति में, प्रेम में और मौन में हो
तो वो केवल एक पार्टनर नहीं —
एक ऊर्जा का ब्रह्मद्वार बन जाती है।


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स्त्री की भूमिका क्यों ज़रूरी है?

क्योंकि:

पुरुष ऊर्जा को स्थिर करता है

स्त्री ऊर्जा को उठाती है

स्त्री की स्वीकृति, उसकी समर्पण-भावना ही
कुंडलिनी को ऊपर ले जाती है

जब वह स्वयं देवी बन जाती है,
तभी पुरुष का शिव जागता है



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ओशो का कथन फिर दोहराता हूँ:

> "अगर पुरुष स्त्री को केवल शरीर की तरह देखेगा,
तो वो कभी स्वयं के भीतर की ऊर्जा नहीं देख पाएगा।
स्त्री तुम्हारा मार्ग बन सकती है — अगर तुम होश से प्रेम करो।”




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अंत में...

यह अनुभव कोई फैंटेसी नहीं था।
वो रात एक साधना थी।
और दीपा अब मेरे जीवन में नहीं है —
पर उसकी ऊर्जा अब भी कभी-कभी
मेरे ध्यान में उतर आती है।

Open Sex Series – Part 13 यही कहता है:
स्त्री को अगर तुम देवी की तरह देखो,
तो सम्भोग नहीं – समाधि मिलती है।


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Open Sex Series – Part 12



"तांत्रिक सम्भोग और कुंडलिनी जागरण का संबंध – एक रहस्यमयी अनुभव"

मैंने सेक्स में हमेशा कुछ ज्यादा महसूस किया है।
कभी-कभी यह केवल शरीर का खेल नहीं था, बल्कि जैसे कोई ऊर्जा मुझमें घूम रही हो। धीरे-धीरे जब मैंने ओशो को पढ़ा, ऋषियों की तंत्र परंपरा को समझा, और कुछ साधिकाओं के साथ ध्यान की अवस्था में सेक्स का अनुभव किया — तब मुझे समझ आया कि यह कोई सामान्य चीज़ नहीं थी। यह कुंडलिनी थी।


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कुंडलिनी क्या है?

भारतीय तंत्र और योग परंपरा में कुंडलिनी को एक सर्पाकार शक्ति माना गया है, जो हर व्यक्ति के भीतर, मेरुदंड के मूल में सुप्त अवस्था में पड़ी रहती है।
ओशो कहते हैं:

> “कुंडलिनी शक्ति है, जो अगर जाग जाए तो तुम ईश्वर से मिल सकते हो। मगर अगर सोई रहे, तो तुम केवल एक देह बने रह जाओगे।”




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तांत्रिक सम्भोग से कुंडलिनी कैसे जागती है?

जब दो लोग पूर्ण चेतना के साथ, बिना अपराधबोध, बिना वासना, सिर्फ प्रेम और मौन के साथ एक-दूसरे के साथ जुड़ते हैं — तब दोनों के ऊर्जा केंद्र खुलने लगते हैं।

मेरे साथ यह अनुभव एक गहराई से जुड़ी साथी के साथ हुआ।

हमारा मिलन लगभग बिना शब्दों के हुआ

कोई जल्दबाज़ी नहीं थी

हम दोनों की साँसें धीरे-धीरे एक लय में बहने लगीं

मुझे लगा जैसे मेरे मूलाधार चक्र से एक ऊर्जा ऊपर उठ रही है

वो धीरे-धीरे स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा से होती हुई सहस्रार तक पहुँच गई


मैंने सच में देखा — प्रकाश।
ना कोई फैंटेसी, ना कोई कल्पना — बस एक प्रखर मौन उजाला।


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कुंडलिनी और सम्भोग – विरोध नहीं, पूरक हैं (यदि होश के साथ हो)

आधुनिक समाज ने सेक्स को या तो वर्जना बना दिया है या केवल भोग।
लेकिन तांत्रिक दृष्टि में यह एक ऊर्जा विनिमय है।

यदि तुम:

मौन हो

प्रेम से भरे हो

अपने पार्टनर के साथ ऊर्जा स्तर पर जुड़ते हो

और कोई जल्दबाज़ी नहीं करते,


तो सम्भव है कि तुम्हारी कुंडलिनी हलचल में आ जाए।

ओशो कहते हैं:

> "The energy that moves down becomes reproduction. The same energy, if moved upward, becomes realization."




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कुछ संकेत जो मैंने अनुभव किए (कुंडलिनी जागरण के दौरान):

1. रीढ़ की हड्डी में गर्मी का बहाव


2. साँसों में गहराई और सहजता


3. आँखें बंद होते ही प्रकाश और कंपन


4. देह नहीं, केवल चेतना का अनुभव


5. उसके बाद दिनों तक भीतर से आनंदित रहना — बिना कारण




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क्या यह सब सभी के लिए है?

नहीं।

ये राह उन लोगों के लिए है जो सेक्स को सिर्फ भोग नहीं समझते,
जो ध्यान, मौन और प्रेम को सेक्स में लाना चाहते हैं।

अगर तुम सिर्फ उत्तेजना चाहते हो, तो ये रास्ता नहीं है।

अगर तुम तुम्हारे भीतर की देवी/शक्ति को जगाना चाहते हो,
तो तांत्रिक सम्भोग एक सीढ़ी बन सकता है।


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पुराने ग्रंथों में क्या है इसके प्रमाण?

शिव-शक्ति की लीला,

कामसूत्र,

विग्यान भैरव तंत्र,

और तांत्रिक बौद्ध परंपरा —
इन सभी में सम्भोग को ऊर्जा जागरण का माध्यम माना गया है।


वो कहते हैं —
“संभोग में शिव बनो, न कि भोगी।”


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अंत में...

मेरी ये यात्रा आज भी जारी है।
अब सेक्स केवल देह का क्रिया नहीं,
बल्कि एक तांत्रिक ध्यान बन गया है।

Open Sex Series – Part 12 में मैंने जो महसूस किया, वही बांटा।
हो सकता है तुम्हें कभी ऐसा अनुभव न हुआ हो —
लेकिन अगर कभी हो, तो उसे दबाना मत।
हो सकता है वही तुम्हारी भीतर की शक्ति का पहला संकेत हो।


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open sex series part 11



"एक रात तांत्रिक ऊर्जा के साथ: सम्भोग से ध्यान की ओर मेरी यात्रा"

मैंने सेक्स को हमेशा एक गहराई से महसूस किया है —
वो सिर्फ शरीर की भूख नहीं थी मेरे लिए,
बल्कि एक रहस्यमयी खिड़की थी किसी और ही दुनिया की ओर।

कई बार जब मैं किसी स्त्री को प्रेम से, मौन से छूता था —
मुझे लगता था जैसे कोई ऊर्जा लहर बनकर उठ रही है।
कोई हलचल नहीं,
कोई शब्द नहीं —
सिर्फ दो साँसों का संगीत।


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ओशो की छाया में

जब मैं पहली बार पुणे के ओशो आश्रम पहुँचा,
मुझे लगा जैसे मैं किसी और ही ग्रह पर आ गया हूँ।

लोग निर्वस्त्र धूप में ध्यान कर रहे थे,
कोई किसी को गले लगाकर रो रहा था,
कोई प्रेम से नाच रहा था —
कोई सेक्स को गाली नहीं दे रहा था,
बल्कि पूजा की तरह जी रहा था।

वहीं मैंने पहली बार जाना —
सेक्स को दबाने की ज़रूरत नहीं है,
बल्कि उसे जागरूकता के साथ जिया जा सकता है।


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रिशिकेश का अनुभव

एक बार मैं ऋषिकेश में एक साधिका से मिला —
उसकी आँखों में ध्यान था, शरीर में आग थी, और छुअन में शांति।

उस रात हमने कोई योजना नहीं बनाई।
कोई हड़बड़ी नहीं थी।
हम सिर्फ आँखों में देखते रहे, साँस लेते रहे, और मौन में बहते रहे।

हम दोनों के बीच कोई कामुकता नहीं,
बल्कि एक अजीब-सी ईश्वरीय ऊर्जा थी।

मैंने देखा कैसे मेरी धड़कनें धीमी होने लगीं,
मेरा मन रुक गया,
और एक क्षण ऐसा आया —
जैसे मैं उसके शरीर में नहीं,
बल्कि अपने ही अंतरिक्ष में उतर गया।


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क्या यही तांत्रिक सेक्स था?

बिना कुछ जाने,
बिना कोई तकनीक सीखे —
मुझे जो मिला वो शायद वही था
जिसे तांत्रिक परंपरा संभोग से समाधि कहती है।

मैंने महसूस किया:

मेरे भीतर कोई ऊर्जा उठ रही है (शायद कुंडलिनी?)

कोई पुराना डर पिघल रहा था

मेरा अहंकार, मेरी इच्छा — सब मौन हो रहे थे

और सेक्स, एक माध्यम बन गया अपने आप में लौटने का



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सेक्स, जब साधना बन जाए

अब मैं किसी स्त्री के साथ एक आम "सेक्स एक्ट" नहीं चाहता।
मैं चाहता हूँ — मौन, गहराई, ध्यान, जुड़ाव।

ओशो कहते हैं:

> “अगर तुम पूरी तरह जागरूक होकर सम्भोग करो,
तो वही तुम्हारी सबसे बड़ी ध्यान यात्रा बन सकती है।”



मैंने इसे जीकर देखा है।
और अब मैं सेक्स को सिर्फ एक 'एक्ट' नहीं मानता —
बल्कि एक द्वार,
जिससे होकर मैं अपने आप में प्रवेश करता हूँ।


---

यह सभी के लिए नहीं है

नहीं, यह किसी फैंटेसी की तरह नहीं है।
तांत्रिक सेक्स बहुत गहराई माँगता है:

तुम्हारा अहंकार पिघले

तुम अपने शरीर से प्रेम करो

और स्त्री को ‘वस्तु’ नहीं, देवी मानो


अगर तुम सिर्फ भोग चाहते हो,
तो यह तुम्हारे लिए नहीं है।
लेकिन अगर तुम जागना चाहते हो —
तो यह रास्ता अद्भुत है।


---

आख़िरी बात

सेक्स जब शरीर से ऊपर उठे
और मन की सीमाओं को पार करे,
तभी वह तुम्हें शून्य की ओर ले जा सकता है।

और उस शून्य में —
तुम्हें मिलेगा ध्यान,
और शायद… ईश्वर।

,.....

ओशो कहते हैं:

> “सम्भोग से डरना नहीं, उसे होश के साथ जीओ — 

सेक्स, जब ध्यान बन जाए

अब मैं समझ पाया हूँ कि सेक्स केवल उत्तेजना नहीं है —
ये ध्यान का पहला द्वार हो सकता है, अगर हम उसे होशपूर्वक जिएं।

तांत्रिक सेक्स का अर्थ यह नहीं कि आप किसी रिचुअल में उलझें —
बल्कि यह है कि आप किसी के साथ इतने गहराई से जुड़ें,
कि दोनों का अहंकार पिघल जाए
और केवल मौन बचे।


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एक चेतावनी

तांत्रिक सेक्स:

ना तो फ़ैंटेसी है

ना कोई पॉर्नोग्राफ़ी

ये साधना है, समर्पण है


अगर तुम सिर्फ भोग की तलाश में हो, तो ये रास्ता नहीं है।
लेकिन अगर तुम अपने भीतर की देवी/देवता को जगाना चाहते हो,
तो यही तुम्हारा प्रवेश-द्वार बन सकता है।


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अंत में…

मेरी अपनी यात्रा का एक पड़ाव है।
शायद तुम इससे सहमत हो, शायद नहीं।
मगर जो मैंने पुणे, ऋषिकेश और अपने अंतरतम में देखा,
वो मैं बांटना चाहता था — बिना डर के, बिना नकाब के।

अगर तुम्हारे भीतर भी कभी सेक्स एक ध्यान की तरह प्रकट हो,
तो उसे दबाना मत —
शायद वही तुम्हारा पहला ध्यान हो।


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Open Sex Series – भाग 9



"तांत्रिक सेक्स: क्या सेक्स समाधि का मार्ग बन सकता है?"

लेखक: दीपक डोभाल


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1. प्रस्तावना: जब काम, ध्यान में बदल जाए

हमारी सभ्यता में सेक्स को या तो वर्जित मानकर दबा दिया गया,
या फिर केवल भोग का साधन मान लिया गया।
परंतु भारत की प्राचीन तांत्रिक परंपरा ने सेक्स को न तो त्यागा,
न ही उसे केवल कामवासना तक सीमित किया।
बल्कि उसे आध्यात्मिक जागरण का एक द्वार माना।

क्या सम्भोग वास्तव में समाधि बन सकता है?
क्या यह केवल शारीरिक सुख नहीं,
बल्कि ऊर्जा का विस्फोट भी हो सकता है
— जो तुम्हें ब्रह्माण्ड से जोड़ दे?


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2. तंत्र क्या है?

तंत्र का अर्थ है – “विस्तार और मुक्ति का मार्ग।”
यह कोई धर्म नहीं, एक प्राचीन विज्ञान है
जो ऊर्जा (शक्ति) के माध्यम से चेतना (शिव) की ओर ले जाता है।
और इस मार्ग में, सेक्स एक शक्तिशाली माध्यम है।

शैव और शक्ति परंपरा में —
नारी को देवी, और पुरुष को शिव मानकर
उनके मिलन को ईश्वर से एकात्मता का प्रतीक माना गया।


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3. तांत्रिक सेक्स क्या होता है?

Tantric Sex एक ध्यान प्रक्रिया है,
जहाँ दो लोग सिर्फ शरीर से नहीं,
बल्कि प्राण, हृदय और आत्मा से जुड़ते हैं।

इसमें कोई जल्दी नहीं होती,
कोई लक्ष्य नहीं होता,
केवल हर क्षण को पूरी जागरूकता से जीना होता है।

मुख्य तत्व:

Slow & conscious breathing

Eye gazing

Heart connection before physical touch

Sexual energy को ऊपर उठाना (kundalini awakening)

Climax को control करना – और उसे ध्यान में बदल देना



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4. ओशो और तांत्रिक सेक्स

ओशो ने तंत्र को पश्चिम के सामने दोबारा जीवंत किया।
उन्होंने कहा:

> “अगर तुम सेक्स को पूर्ण जागरूकता से जियो,
तो तुम्हें ध्यान मिल सकता है —
क्योंकि सेक्स वह क्षण है, जब मन रुकता है,
और तुम शुद्ध अस्तित्व में उतरते हो।”



ओशो के commune में कई बार Tantric Workshops करवाई जाती थीं,
जहाँ युगल जोड़े ध्यानपूर्वक एक-दूसरे से जुड़ते थे —
बिना हड़बड़ी, बिना लक्ष्य।

ओशो मानते थे कि —
“सम्भोग से समाधि की यात्रा”
संभव है — परंतु केवल तब,
जब तुम उसे पवित्रता और पूर्ण होश से जियो।


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5. तंत्र में नारी की भूमिका

तंत्र में स्त्री को ‘शक्ति’ कहा गया है।
वह केवल भोग्या नहीं,
बल्कि मुक्ति का माध्यम है।

स्त्री का शरीर, उसकी ऊर्जा,
और उसका प्रेम —
पुरुष के अंदर सुप्त चेतना को जगाने का साधन है।

इसलिए तांत्रिक सेक्स में नारी का सम्मान,
और उसके साथ पूजा की तरह व्यवहार किया जाता है —
न कि वस्तु की तरह।


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6. विज्ञान और ऊर्जा के स्तर पर क्या होता है?

तांत्रिक सेक्स के दौरान,
शरीर में उत्पन्न dopamine, oxytocin, endorphins
तुम्हें एक आनंदमय शांति देते हैं

लंबे समय तक intercourse करने से
heart coherence बढ़ता है

Kundalini energy – जो रीढ़ की हड्डी के मूल में सोई रहती है,
वह जाग्रत हो सकती है

पुरुष ejaculation को रोककर
ऊर्जा को ऊपर की ओर ले जाता है —
जिससे ब्रेन सेंटर activate होते हैं



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7. तांत्रिक सेक्स की साधनाएं

कुछ मुख्य साधनाएं:

मैत्री ध्यान (Loving Presence Meditation)

Yab-Yum मुद्रा (जहाँ पुरुष बैठता है और स्त्री उसकी गोद में)

संयुक्त श्वास-प्रश्वास

सेक्स से पहले मौन और ध्यान


इनमें कोई जल्दबाज़ी नहीं होती।
हर एक क्रिया आराधना की तरह होती है।


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8. क्या यह सभी के लिए है?

नहीं।
तांत्रिक सेक्स केवल उन्हें फलता है
जो अपने शरीर, भावनाओं और संबंधों को गहराई से समझते हैं।
जो सेक्स को साधन नहीं, साधना मानते हैं।

यदि तुम केवल सुख के लिए इसमें उतरोगे —
तो यह भी एक और भटकाव बन जाएगा।


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9. निष्कर्ष:

> "सेक्स के द्वारा अगर ध्यान में प्रवेश किया जाए,
तो वही सेक्स, योग बन जाता है।
वही शरीर, शिव बन जाता है।"



तांत्रिक सेक्स कोई काल्पनिक कल्पना नहीं,
बल्कि एक ऊर्जा विज्ञान है —
जो प्रेम को ध्यान में बदल सकता है।

अब यह तुम पर है —
तुम सेक्स को भोग बनाते हो या ध्यान?


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Open Sex Series – भाग 8



"Group Sex, Threesome और Polyamory: नई सोच या संबंधों की विघटन?"

लेखक: दीपक डोभाल


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1. प्रस्तावना: जब प्यार की सीमाएँ टूटती हैं

हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जहाँ रिश्तों की पारंपरिक परिभाषाएँ बदल रही हैं।
Monogamy (एकसंगता) के सामने अब सवाल खड़े हो रहे हैं –
क्या प्रेम केवल एक व्यक्ति तक सीमित रहना चाहिए?
क्या शारीरिक संबंधों में विविधता मानसिक और आत्मिक विकास में सहायक हो सकती है?

Group Sex, Threesome, और Polyamory इसी विचारधारा की उपज हैं —
जहाँ सेक्स सिर्फ निजी क्रिया नहीं,
बल्कि एक open experience बन चुका है।


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2. Group Sex और Threesome: इतिहास की छाया

यह कोई नया चलन नहीं है।
प्राचीन ग्रीक और रोमन सभ्यताओं में orgy culture आम था।
भारत में भी कामसूत्र और अजन्ता-एलोरा की चित्रकारी
इस बात की गवाही देती है कि
— काम का उत्सव समूह में भी देखा गया है।

कुछ तंत्र साधनाओं में यह प्रयोग ऊर्जा के आदान-प्रदान के लिए किया जाता था।
जहाँ पुरुष और स्त्रियाँ, युगल रूप में नहीं, सामूहिक रूप में काम से समाधि की ओर जाते थे।


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3. Polyamory: एक दिल, कई प्रेम

Polyamory का अर्थ है –
एक समय में कई व्यक्तियों से प्रेम करना, लेकिन ईमानदारी और सहमति के साथ।

यह धोखा नहीं है, यह स्पष्टता है।
इसमें jealousy को स्वीकार कर,
उसे पार करने का अभ्यास होता है।

कुछ लोग मानते हैं कि यह ‘Unconditional Love’ की दिशा में एक कदम है —
जहाँ व्यक्ति किसी एक शरीर से नहीं,
बल्कि आत्मा से जुड़ता है।


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4. मनोविज्ञान क्या कहता है?

मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि:

Group Sex या Threesome एक नवीनता की तलाश है

इसमें dopamine का उत्सर्जन बहुत तीव्र होता है

कुछ लोग इसे फंतासी फुलफिलमेंट के रूप में देखते हैं

जबकि कुछ इसे intimacy issues या commitment fear से जोड़ते हैं


परंतु यदि ये सभी consensual, emotionally aware और safe हों,
तो यह मानसिक रूप से हानिकारक नहीं कहे जा सकते।


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5. मेरा अनुभव – पुणे और ऋषिकेश में

पुणे के Osho Commune में मैंने ऐसे कई लोगों से मुलाकात की
जो open relationship, nudity, और group intimacy को आध्यात्मिक मानते थे।
वहाँ शाम को white robe meditation के बाद
कभी-कभी लोग अपने तन और मन को पूरी आज़ादी देते थे।

एक फ्रेंच कपल ने मुझसे कहा:

> “We don't sleep around for pleasure.
We meet souls through bodies.”



ऋषिकेश में भी कुछ ओशो फॉलोअर्स मिले जो polyamory को higher consciousness की यात्रा मानते थे।


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6. ओशो का दृष्टिकोण: नैतिकता नहीं, जागरूकता

Osho ने हमेशा कहा:

> “Sex को नैतिकता के तराजू पर मत तोलो।
इसे जागरूकता की आँख से देखो।
अगर तुम पूरी होश में हो, तो कोई भी अनुभव पवित्र हो सकता है।”



उन्होंने Group Sex या Commune-style living को
एक Experiment in Love and Freedom कहा था।
उनके Commune में nudity, shared love, और open sex उत्सव का हिस्सा थे — repression नहीं।


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7. नैतिकता, समाज और कानून

भारत जैसे देश में:

Polyamory या Threesome को अभी भी कानूनी स्वीकृति नहीं

परंतु सहमति से बने निजी रिश्तों में कानून हस्तक्षेप नहीं करता

समाज इसे taboo मानता है

पर नई पीढ़ी इसे रिश्तों की ईमानदारी का एक नया प्रारूप मानती है



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8. क्या यह सही है या गलत?

यह सवाल व्यक्तिगत है।

अगर किसी व्यक्ति या जोड़े के लिए
Group Sex या Polyamory सच में मानसिक और आत्मिक संतुलन लाता है,
और वह पूरी ईमानदारी, सुरक्षा और जागरूकता से उसे जीते हैं,
तो यह न तो सही है, न गलत —
यह बस एक और रास्ता है।

परंतु यदि यह कुंठा, झूठ, धोखा या भटकाव से उपजा है —
तो यह विनाशकारी भी हो सकता है।


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9. निष्कर्ष:

> "Sexual freedom is not the end,
It is a beginning.
A beginning of deep honesty with oneself." — Osho



Group Sex, Threesome या Polyamory कोई क्रांति नहीं —
अगर उसमें आत्मा नहीं,
केवल शरीर है।

सवाल यह नहीं कि तुम क्या कर रहे हो,
सवाल है — तुम किस चेतना से कर रहे हो?


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Open Sex Series – भाग 7



Spiritual Celibacy: क्या ब्रह्मचर्य सच में जीवन को ऊर्जावान बनाता है?

लेखक: दीपक डोभाल


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1. प्रस्तावना: ब्रह्मचर्य का अर्थ क्या है?

आज जब हर जगह सेक्सुअल फ्रीडम की बात हो रही है, वहीं एक विचार और है — ब्रह्मचर्य, यानी यौन संयम।

पर क्या ब्रह्मचर्य सिर्फ सेक्स से दूरी है?

नहीं। “ब्रह्मचर्य” का अर्थ है —
“ब्रह्म में चर्या करना”, यानी जीवन को परम चेतना की दिशा में ले जाना।

यह केवल शारीरिक संयम नहीं,
बल्कि मानसिक, भावनात्मक और आत्मिक अनुशासन है।


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2. ब्रह्मचर्य और ऊर्जा: विज्ञान क्या कहता है?

आधुनिक विज्ञान मानता है कि वीर्य या यौन ऊर्जा केवल प्रजनन से जुड़ी नहीं है।
ये शरीर की सबसे गहन ऊर्जा होती है —
जिसे यदि रिटेन किया जाए, तो वह मानसिक स्पष्टता, आत्मविश्वास, और रचनात्मकता को बढ़ा सकती है।

कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि सेमिनल फ्लूइड में उपस्थित प्रोटीन, टेस्टोस्टेरोन और न्यूरोट्रांसमीटर्स पूरे तंत्र को प्रभावित करते हैं।
Dopamine, Serotonin और Acetylcholine जैसी रसायन ऊर्जा के रूपांतरण में सहायक होते हैं।


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3. प्राचीन ग्रंथों की दृष्टि

मनुस्मृति कहती है:

> “ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमपाघ्नत।”
(ब्रह्मचर्य और तप के बल से ही देवताओं ने मृत्यु को जीत लिया।)



योग सूत्र (पतंजलि) में स्पष्ट है:

> “ब्रह्मचर्य प्रतिष्ठायां वीर्य लाब:”
— जो ब्रह्मचर्य में स्थित होता है, उसे अपार ऊर्जा की प्राप्ति होती है।



तंत्र ग्रंथों में इसे "ऊर्जा का रोहण" कहा गया है —
जहाँ मूलाधार से सहस्रार तक ऊर्जा चढ़ाई जाती है। यही कुंडलिनी जागरण की प्रक्रिया है।


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4. ब्रह्मचर्य सिर्फ पुरुषों के लिए नहीं

स्त्रियों में भी यह उतना ही प्रभावी है।
महिला साधिकाएँ, तपस्विनियाँ और योगिनियाँ सदियों से ब्रह्मचर्य के पथ पर रही हैं।

यह ऊर्जा केवल वीर्य तक सीमित नहीं —
बल्कि काम वासना की संचित ऊर्जा को सृजनात्मकता और साधना में रूपांतरित करना है।


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5. Osho का दृष्टिकोण: repression नहीं, transformation

Osho ने ब्रह्मचर्य के पारंपरिक विचारों की आलोचना की थी।
उनका कहना था:

> “ब्रह्मचर्य कोई जबरदस्ती नहीं,
यह समझदारी से पैदा हुआ एक सहज परिणाम है।
जब तुम सेक्स को पूरी जागरूकता से जान लेते हो,
तब ही वह तुम्हारे भीतर रूपांतरित होता है।”



उन्होंने repression (दमन) को खतरनाक माना।
क्योंकि दबी हुई वासना व्यक्ति को और अधिक कुंठित बना देती है।


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6. क्या ब्रह्मचर्य Superpower देता है?

कई योगी और साधु मानते हैं कि ब्रह्मचर्य से:

स्मृति और ध्यान की शक्ति बढ़ती है

चेहरा चमकने लगता है (Tejas)

आवाज़ में गहराई आती है

नींद कम लगती है

आत्म-नियंत्रण में बढ़ोतरी होती है


यह सब वैज्ञानिक दृष्टि से भी जुड़ता है —
क्योंकि जब यौन ऊर्जा बाहर नहीं जाती, तो वह मस्तिष्क और नाड़ियों में रूपांतरित होती है।


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7. मेरा अनुभव – रूट से क्राउन की यात्रा

Rishikesh में 21 दिनों के मौन ब्रह्मचर्य शिविर में मैंने खुद ये महसूस किया —
शरीर पहले बेचैन होता है, मन बार-बार भटकता है, लेकिन तीसरे सप्ताह में शांत ऊर्जा भीतर उतरने लगती है।

शरीर हल्का हो जाता है, दृष्टि गहरी, और ध्यान सहज।

एक जापानी युवक, जो Osho commune से आया था, बोला:

> “Earlier I used to ejaculate for pleasure.
Now I retain to meditate deeper.”




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8. क्या यह सबके लिए संभव है?

ब्रह्मचर्य को थोपा नहीं जा सकता।
यह एक अनुभवजन्य निर्णय होना चाहिए।

यदि आप ध्यान, योग, साधना या कोई गहरी कला में रचे-बसे हैं,
तो ब्रह्मचर्य आपके भीतर सहज उतर सकता है।

पर जबरदस्ती करने से ये कुंठा और आक्रोश भी ला सकता है।


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9. निष्कर्ष:

ब्रह्मचर्य कोई साधारण त्याग नहीं,
यह आत्मा का उत्सव है।

> "जब कामना समाप्त नहीं होती,
तब तक ब्रह्मचर्य नहीं आता।
जब कामना रूपांतरित हो जाती है,
तब ब्रह्मचर्य स्वयं उतरता है।"




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