अतिरेक का फूल


जीवन का अर्थ क्या, बस जीते जाना?
दो रोटियों में ही, दिन बिताना?
पर जीवन का अर्थ है, ओवरफ्लो होना,
अतिरेक की गंगा में, बहते रहना।

देखा है कभी, पौधे पर फूल खिला?
वह अतिरिक्त का जादू, जिसने सबको छला।
शाखाओं का विस्तार, जड़ों का गहराना,
जब सब पूर्ण हो, तब ही फूल मुस्काना।

मैं भी तो बस एक पौधा सा था,
जड़ों में पानी, शाखाओं में हवा था।
पर जब भीतर कुछ अतिरिक्त जगा,
तभी तो जीवन ने नया अर्थ कहा।

ताजमहल की मीनारें भी कहती यही,
सौंदर्य अतिरेक से ही उपजती सही।
काव्य, संगीत, साहित्य के हर शिखर,
अतिरेक की बूँदों से ही हो रहे निखर।

तो मैं जीना चाहता हूँ इस तरह,
अतिरेक से भर जाए, हर उमर।
जहां जीवन बने, एक बहता झरना,
फूल सा खिले, ओवरफ्लो का सपना।


गहरी नींद

गहरी नींद लगी थी
आँखों में
शरीर होशो हवास खो चूका था
तभी ख़याल आया
ख्यालों में खोये मन में
ख़याल ने ख्वाब को जन्म दिया
 ख्वाब ने शब्द बोया
शब्द ने वाक्यों का विस्तार किया
वाक्यों ने इतिहास गढ़ दिया
और इतिहास ने फिर से सुला दिया  


कोई आंधी मुझे डिगा नहीं सकती,
कोई तूफ़ान मुझे गिरा नहीं सकता,
कोई रास्ता मुझे रुकने नहीं देता,
तुम जो साथ हो, मेरा विश्वास हो।

हर मुश्किल को मैं मुस्कुरा के पार करूँ,
हर दर्द को तुमसे और सशक्त करूँ,
जिंदगी की हर चुनौती को आसान बना दूँ,
क्योंकि तुम मेरा सहारा हो, मेरा संबल हो।

जैसे सूरज को कोई बादल छुपा नहीं सकता,
वैसे ही मेरी शक्ति को कोई नहीं रोक सकता,
तुम्हारी छांव में ही तो मैं खड़ा हूँ,
तुम हो मेरा विश्वास, तुम हो मेरा राहबर।

सपनों की उड़ान को कोई पंख नहीं काट सकता,
मेरे इरादों को कोई तोड़ नहीं सकता,
तुम हो मेरे साथ तो कुछ भी असंभव नहीं,
क्योंकि तुम मेरा साथ हो, तुम मेरा मार्गदर्शक हो।


तुम्हारी छांव में


कोई आग मुझे नहीं जला सकती,
कोई जंग मुझे नहीं हिला सकती,
कोई पहाड़ मुझे नहीं रोक सकता,
क्योंकि तुम मेरी राह में हाथ थामे हो।

सपनों के रास्ते, जो कांटे थे पहले,
अब फूलों से महकते हैं, तुम्हारी मूरत से।
मेरे डर और शंकों को तुमने सहेजा,
तुम ही तो हो जो मेरी ताकत का कारण हो।

वो तूफ़ान जो कभी मुझसे भिड़ते थे,
अब मुझसे सिर्फ टकराते हैं,
क्योंकि तुमने मेरी आत्मा को शक्ति दी,
तुम्हारी मुस्कान में दुनिया जीने की वजह है।

ना कोई आसमान इतना ऊँचा,
जो मेरी उड़ान को रोक सके,
कभी जो डर था, अब उम्मीद है,
क्योंकि तुम मेरी हिम्मत हो, तुम मेरी शक्ति हो।

राहों में कांटे और रेत की आंधियाँ,
बस तुम्हारी यादों में खो जाती हैं,
तुम हो साथ, तो कोई बाधा नहीं है,
तुमसे जुड़ी हर सांस में एक नई जिन्दगी है।

इस जीवन के हर संघर्ष में,
हर दर्द में, हर आंधी में,
मुझे बस तुम्हारी जरूरत है,
क्योंकि तुम हो, और यही मेरा विश्वास है।

कोई आग मुझे नहीं जला सकती,
कोई जंग मुझे नहीं हिला सकती,
कोई पहाड़ मुझे नहीं रोक सकता,
क्योंकि तुम मेरी राह में हाथ थामे हो।


प्रेम सम्राट


जब प्रेम से हट जाएं वासना और मोह,
जब प्रेम हो निर्मल, निष्कलंक, अद्वैत,
जब प्रेम में हो सिर्फ देना, न कोई माँग,
जब प्रेम हो समर्पण, न कोई आशा,
जब प्रेम हो सम्राट, न कोई भिखारी;
जब आप प्रसन्न हों इस बात पर
कि किसी ने आपके प्रेम को अपनाया,
तब समझो, सच्चा प्रेम है।

प्रेम की नदी बहे बिना किनारे,
प्रेम की धूप फैलाए उजाले,
प्रेम की चाँदनी छाए बिना रात,
प्रेम की गंगा हो पवित्र, सात्विक,
जब प्रेम हो निःस्वार्थ, निःशंक, निराकार,
तब समझो, प्रेम का साम्राज्य है।

प्रेम हो जब मुक्त, बिन किसी बंधन के,
प्रेम हो जब संतुष्टि, बिना किसी तृष्णा के,
प्रेम हो जब संवेदनाओं का पर्व,
प्रेम हो जब आत्मा की पुकार,
तब समझो, प्रेम का महासागर है।

प्रेम हो जब संतोष, बिन किसी अपेक्षा के,
प्रेम हो जब अभय, बिना किसी डर के,
प्रेम हो जब आनंद, बिना किसी कारण के,
प्रेम हो जब अनंत, बिन किसी सीमा के,
तब समझो, प्रेम का परम सत्य है।

तब प्रेम बन जाता है शाश्वत,
प्रेम बन जाता है असीम,
प्रेम बन जाता है परिपूर्ण,
प्रेम बन जाता है दिव्य,
तब प्रेम है, सच्चा प्रेम।

छाता और आस्था


L

बरसात जब थमती है,  
छाता एक बोझ बन जाता है।  
जैसे जब स्वार्थ समाप्त हो जाए,  
निष्ठा का अंत हो जाता है।  

फिर वही छाता जो था सुरक्षा का ढाल,  
अब घर के कोने में बेजान सा पड़ा है।  
कोई उसे नहीं चाहता, जब तक फिर से,  
बादल न बरसने लगें आसमान में।  

पर जब कोई उसे खोजने निकलता है,  
वो छाता फिर कहीं खो चुका होता है।  
याद आती है उसकी, पर छाता अब,  
कभी नहीं लौटता उन्हीं हाथों में।  

वो अपनी प्रकृति में अटल है,  
जो उसे अपनाए, उसकी सेवा में तत्पर है।  
अब वो किसी और की छांव बना,  
उसे नया विश्वास दे रहा है।  

पर इस बार वो छाता सतर्क है,  
समर्पण के संग परिपूर्ण है।  
हर मुस्कान सच्ची नहीं होती,  
कुछ बस जलन का आवरण हैं।  
हर वार का प्रतिकार आवश्यक है,  
तभी संतुलन बना रहता है संसार में।  


प्रेम का सच्चा रूप


जब तुम प्रेम से मोह और आसक्ति हटाते हो,  
जब तुम्हारा प्रेम शुद्ध, निष्कलंक, निराकार हो,  
जब तुम प्रेम में केवल देते हो, माँगते नहीं,  
जब प्रेम केवल एक देना हो, लेना नहीं,  

जब प्रेम एक सम्राट हो, भिखारी नहीं,  
जब तुम खुश होते हो, क्योंकि किसी ने तुम्हारा प्रेम स्वीकार किया,  
तब ही प्रेम का सच्चा रूप प्रकट होता है,  
तब ही प्रेम का असली मतलब समझ आता है।  

तब प्रेम में कोई शर्त नहीं होती,  
तब प्रेम में कोई स्वार्थ नहीं होता,  
तब प्रेम केवल एक अनुभव होता है,  
तब प्रेम केवल एक संवेदना होती है।  

यह प्रेम है, जो आत्मा को मुक्त करता है,  
यह प्रेम है, जो दिल को हल्का करता है,  
यह प्रेम है, जो जीवन को अर्थपूर्ण बनाता है,  
यह प्रेम है, जो हमें सच्चे सुख का एहसास कराता है।  

प्रेम में जब यह भाव आते हैं,  
तब जीवन में एक नई रोशनी जगमगाती है,  
तब हर दिन एक नया उत्सव बन जाता है,  
तब हर पल एक नई कविता बन जाता है।  

प्रेम का यही सच्चा रूप है,
जो हर दिल को छूता है,
जो हर आत्मा को जीता है,
जो हमें इंसान से इंसान बनाता है।

प्रकृति का अनुपम सौंदर्य



मनुष्य ने रची हैं अनेकों कृतियाँ,
मशीनें, इमारतें, और अभूतपूर्व कलाएँ।
पर इन सबके पार, जो खड़ा मुस्कुरा रहा है,
वह है प्रकृति, सृष्टि की सच्ची काया।

सूरज की पहली किरण जब धरती पर पड़े,
उसकी सुनहरी छवि को कौन रच सके?
बादलों का नृत्य और वर्षा की बूँदें,
इनकी ध्वनि से सुंदर कौन गीत गा सके?

पर्वतों की ऊँचाई और सागर की गहराई,
इनकी विशालता के आगे सब बौने नज़र आएँ।
हर पेड़ की छाया, हर फूल की खुशबू,
इनकी कोमलता को कोई कैसे रच पाए?

चाँदनी रात का उजाला, नदियों का बहाव,
पंछियों का संगीत, जंगलों का स्वाभाव।
यह सब है प्रकृति का अनुपम उपहार,
जिसके आगे हर मानव रचना बेकार।

मनुष्य ने बनाए महल और पुल,
पर प्रकृति ने दिए जंगल और झरने कुल।
हमने रची कल्पनाएँ, मशीनों की सीमाएँ,
पर प्रकृति ने रचा अनंत का गीत सुनाएँ।

तितलियों के रंग, मोर का नृत्य,
हर जीव में बसा सृष्टि का मंत्र।
आकाश का नीला और धरती का हरापन,
इन रंगों का मुकाबला कौन कर सकता है?

प्रकृति की कला में छिपा है ईश्वर का स्पर्श,
जो देता है जीवन को सच्चा उत्कर्ष।
उसकी रचनाओं का कोई सानी नहीं,
उसकी सादगी में भी छुपा है बेजोड़ सौंदर्य कहीं।

तो देखो, सुनो, और महसूस करो इस कला को,
जिसे किसी चित्रकार ने नहीं, सृष्टिकर्ता ने रचा।
प्रकृति का यह अनुपम सौंदर्य सिखाता है,
सादगी में ही छिपा है जीवन का असली मज़ा।


पारदर्शी कला का स्वप्न



मैं स्वप्न देखता हूँ एक ऐसी कला का,
जो सत्य का आइना हो, छलावा नहीं।
जहां रंगों के बीच छिपा न हो संसार,
बल्कि हर रंग से झलके जीवन की कहानी।

एक ऐसी कला, जो पर्दों को हटाए,
जिसे देख हृदय सच्चाई को अपनाए।
जहां हर रेखा बोले अपने आप,
जहां हर छवि हो जीवन का आलाप।

न हो उसमें झूठ, न कोई आडंबर,
केवल सरलता का हो उसमें अंबर।
जहां हर छवि में दिखे प्रेम का प्रकाश,
और हर छाया में छुपे न हो कोई आश।

वह कला हो एक खिड़की सी निर्मल,
जहां से झांको तो दिखे जीवन का मंगल।
जहां हर दृश्य हो आत्मा का प्रतिबिंब,
जहां हर रचना हो समय का प्रतीक।

वह कला न सीमित हो किसी फ्रेम में,
न बंधे केवल शब्दों या रंगों के गेम में।
वह कला हो अंतर्मन का दर्पण,
जहां झलकता हो हर जीव का स्पंदन।

मैं स्वप्न देखता हूँ उस कला का,
जो न केवल सुंदर, बल्कि सच्ची हो।
जो दिखाए दुनिया को वैसी जैसी है,
और प्रेरित करे इसे वैसी बनाने की।

ऐसी कला, जो सृजन की आत्मा हो,
और जिससे झलके हर जीवन की छवि।
मैं स्वप्न देखता हूँ उस कला का,
जो पारदर्शी हो, और मुक्त की नवी।


Into the wild

The statement "Into the Wild” is a movie about the desire for freedom that feels, in itself, like the fulfillment of that desire" suggests that the film explores the theme of freedom in a way that is both authentic and satisfying. It implies that the movie not only depicts the longing for freedom but also captures the essence of what it means to be free. This statement also suggests that the director, Sean Penn, has skillfully executed this theme in a way that is not simplistic or superficial. Overall, this statement sets high expectations for the movie's portrayal of freedom and its ability to evoke a strong emotional response from the audience.
In the wild, Christopher roams free,
His spirit soars, his soul set free.
The wilderness, his solace, his home,
A place where he's never felt alone.

The mountains stand tall, their peaks kissed by the sun,
Their shadows stretch long as the day draws to a close.
The trees sway in the wind, their leaves rustling like whispers,
Nature's symphony echoes through the valleys and hills.

Christopher's footsteps crunch on the forest floor,
His heart beats in time with the rhythm of the land.
He breathes in the crisp air, his lungs filling with life,
His soul awakens as he becomes one with the wild.

In this place of solitude and simplicity,
Christopher finds a peace that he's never known before.
He learns to live off the land, to hunt and forage,
To find joy in the small things and to let go of more.

As he journeys onwards, he meets those who've been before him,
Each with their own story to tell. They share their wisdom and their woes.
Christopher listens intently, his heart open and receptive,
Learning from their experiences as he goes.

And so Christopher continues on his path,
Through trials and triumphs he carries on. His spirit unbroken and true.
For in this wilderness he has found a purpose, a calling,
A life that is simple yet profoundly true.

In search of freedom, he set out alone,
A top student, an athlete, a soul unknown.
His heart yearned for the wild, to be reborn,
He donated his savings, and hitched his way to Alaska's morn.

The road ahead was long and rough,
But he was determined to prove enough.
He met strangers along the way,
Each one leaving an impression that would not fade away.

The wind whispered secrets in his ear,
The mountains roared like a lion's fear.
The sun set in a blaze of red and gold,
A sight that left him breathless and bold.

He learned to live off the land,
To hunt and fish with a steady hand.
He found solace in the stillness of the night,
And danced with the stars in their heavenly light.

But the wilderness was not kind,
It tested him in ways he could not find.
He battled hunger and thirst and cold,
But he refused to let go of his hold.

In the end, he found what he sought,
A sense of purpose that he could not bought.
He left this world with a heart full of grace,
A true wanderer who found his own place.

आत्मा का स्वरूप



उसकी देह पे हंसी आई तुमको,
जो बस एक परछाईं है,
हड्डी, माँस और रक्त की काया,
क्यों इसमें लिप्त होना मन चाही है।

क्या यह सब जानने के बाद भी,
तुमको सच का एहसास नहीं,
जीवात्मा का कोई आकार नहीं,
न ही कोई रूप, कोई वास नहीं।

वह आत्मा है, अनंत, अमर,
जिसमें न रंग, न शरीर का भार,
यह देह तो है बस आभासी परछाई,
माया के जाल में बंधी एक तरंग की काई।

तुम कहो कैसे, किसको लज्जा दें,
जिसे न समय बाँध सकता है, न जगह,
यह माटी का पुतला ढलता-ढलता खो जाता,
पर वह आत्मा का न स्वरूप, न परदा है।

जब आत्मा की पहचान हो जाए,
तो देह की सीमाओं में न बंध पाए,
तब हर देह में देखो दिव्यता,
तुम्हारी चेतना में आए वो जागरूकता।

अब जागो इस सच की ओर,
जहाँ शरीर नहीं, आत्मा का नृत्य है,
आकार रहित, प्रकाश का एक बिंदु,
जो परमात्मा से न कभी अलग है, न बिछुड़ता।

तो जब तक हो यह जीवन का बोध,
उसको नीचा दिखाने का विचार छोड़ो,
हर देह में झाँको आत्मा का अनंत स्वरूप,
बस यही है जागृति, यही है आत्मा का अनुरूप।


निष्कलंक प्रेम


जब प्रेम से हट जाएं लगाव और मोह,
हो जाए जब वह शुद्ध और निराकार,
न हो कोई मांग, बस देना ही देना,
प्रेम बने सम्राट, न हो कोई भिक्षु का द्वार।

जब खुशी मिलती हो केवल इस बात से,
कि किसी ने तुम्हारा प्रेम स्वीकारा है,
बिन किसी स्वार्थ के, बिन किसी शर्त के,
प्रेम हो जैसे निर्मल जलधारा है।

न हो कोई चाहत, न हो कोई बंधन,
प्रेम का अर्थ हो केवल समर्पण,
निस्वार्थ भाव से, पवित्र मन से,
प्रेम हो जैसे आत्मा का वंदन।

जब प्रेम को समझो केवल देने का अधिकार,
तो दिल हो जाता है वाकई उदार,
निष्कलंक, निर्मल, निस्वार्थ हो जब प्रेम,
तब जीवन हो जाता है अद्भुत, निस्संदेह।

प्रेम पथ

निश्छल प्रेम का रूप है अलौकिक,
न चाहत की लौ, न वासना की ढाल।
निस्वार्थ समर्पण का पथ है निर्मल,
प्रेम का सागर है, जिसमें ना कोई ख्वाहिश की चाल।

प्रेम है जब मासूम और निराकार,
जब दिल से देना हो और न कोई माँग।
जब प्रेम हो केवल एक अर्पण,
प्रेम सम्राट बनता है, न कि भिक्षुक की तरह।

सुखी हो तुम केवल इसलिए,
कि किसी ने तुम्हारे प्रेम को अपनाया।
न मोल की इच्छा, न लोलुपता की चाह,
बस प्रेम का पथ अपनाया।

प्रेम वो है जो आत्मा को छू जाए,
नजरअंदाज करें दुनिया के सारे शिकवे।
प्रेम समर्पण का एक गहरा सागर है,
जहाँ बस है अमृत का पान।

#### अनंत ख्वाहिशें

Here's a poem in Hindi inspired by the themes:  keeping it within tasteful boundaries:

#### अनंत ख्वाहिशें

दिन रात चलती हैं ये ख्वाहिशें,
सपनों में लिपटी अनंत आशाएँ।
हर पल, हर सांस में बसे,
वो रूह की गहराइयाँ।

संगम का लम्हा, मस्ती की कहानी,
जब दो दिल मिलते हैं, होती एक रवानी।
आँखों की चमक, होंठों की मुस्कान,
छूने से पहले ही हो जाती पहचान।

भीड़ में मिलती कभी अनजान राहत,
साथ गुज़ारें वो हसीन रातें।
मोहब्बत के संग, उड़ानें हज़ार,
हर चाहत की पूरी हो दरकार।

तृष्णा की तरह, ललकती हर चाहत,
रंगीन रातें, वो प्यारी अदावत।
एक साथ, कई साथ, ख्वाबों की ज़ंजीर,
हर रस का स्वाद, हर पल का नशा गहरा।

फिर भी दिल में बसी एक मासूमियत,
सादगी में छुपी होती एक नज़ाकत।
सपनों के शहर में, सच की उड़ान,
ख्वाहिशों की दुनिया, हर तरफ़ अरमान।

जुड़ते हैं दिल, फिर होती जुदाई,
मस्ती में लिपटी है ये ज़िंदगी की परछाई।
हर ख्वाब में, हर पल में, बसते हैं सवाल,
चाहतों के सागर में, तैरते हैं ख्याल।

छतरी का आलिंगन



बारिश जब थम जाए, छतरी बोझ लगने लगे,  
वफ़ा की राहों में, नफ़रत की खुशबू बहे।  
जब जरूरत हो छतरी की, फिर खोजेंगे सब,  
पर उस वक्त तक, क्या खो गई वो छतरी, दाब में दब।

छतरी तो वहीं है, बस नज़दीकियों की दूरियां बढ़ी,  
उसने तो हमेशा दी थी, पर छूटी हर घड़ी।  
जिसने दिया सहारा, उसका क्या हुआ एहसास?  
अब वो छतरी फिर न आएगी, ये है मन का उदास।

हर मुस्कान का रंग नहीं, सच का हर रंग है नहीं,  
कभी-कभी ये दिखती, सिर्फ जलन का अंग है यही।  
हर वार का जवाब, ज़रूरी है फिर से समझना,  
इस दुनिया का संतुलन, इसी में है खुद को बांधना।

छतरी की कहानी में, हमें ये समझना है,  
जो भी छुपा हो भीतर, वो हमेशा बनता रहना है।  
सच्ची वफ़ा की पहचान, ना हो एक पल की बात,  
उसकी गरिमा में है सदा, प्यार और सुरक्षा की मात।

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प्रेम ईश्वर का संदेश।

जब प्रेम से वासना और आसक्ति को हटा दिया जाए,
जब प्रेम शुद्ध, निर्दोष, निराकार हो जाए,
जब प्रेम में केवल देना हो, कोई माँग न हो,
जब प्रेम एक सम्राट हो, भिखारी न हो,
जब किसी ने आपके प्रेम को स्वीकार कर लिया हो
 और आप खुश हों,

तो प्रेम का स्वरूप कुछ ऐसा हो:

प्रेम वो है, जिसमें बस देना ही देना हो,
प्रेम वो है, जिसमें किसी अपेक्षा की जगह न हो।
जब न हो कोई शर्त, न हो कोई मांग,
बस प्रेम में हो अपनापन और विश्वास का रंग।

शुद्ध हो जैसे गंगा का जल, निर्मल और पवित्र,
प्रेम का स्पर्श हो, जैसे शीतल पवन का मित्र।
न हो कोई भय, न हो कोई संकोच,
प्रेम की भाषा हो, बस प्रेम का ही बोझ।

हर धड़कन में बस प्रेम का नाम हो,
हर साँस में बस प्रेम की सुगंध हो।
जैसे फूल खिलता है बगिया में हर रोज़,
प्रेम का एहसास हो, हर पल और हर रोज़।

प्रेम में हो जब सच्चाई और निष्कलंकता,
तब प्रेम का मार्ग हो स्वर्ग की ओर संकता।
जब हो केवल देना और न हो कोई चाह,
तब प्रेम की दुनिया हो, जैसे एक पवित्र राह।

प्रेम का सम्राट हो, जब मन का राज,
तब प्रेम का ही हो, हर दिन और हर रात।
न हो कोई छल, न हो कोई प्रपंच,
तब प्रेम हो जैसे, ईश्वर का संदेश।

निश्छल प्रेम की परिभाषा


जब प्रेम से हो हट जाएँ,
आसक्ति और आवेग,
हो प्रेम शुद्ध, निर्दोष, निराकार,
हो बस एक दान, न कोई मांग।

प्रेम हो सम्राट, भिक्षुक नहीं,
जब मिले खुशी किसी के स्वीकार से,
प्रेम बने शाश्वत, शाश्वत सत्य,
करे केवल देना, ना लेना कभी।

उस निर्मल प्रेम की महिमा हो,
जो हो सागर के समान विशाल,
जो बहे निश्छल, निर्बाध,
हो प्रेम की भाषा, अनमोल और निर्मल।

हर दिल में जब प्रेम हो ऐसा,
तो जग हो स्वर्ग समान,
मिट जाएं सारी द्वेष-भावनाएं,
प्रेम की हो बस एक ही पहचान।

नीरव निश्छल प्रेम


जब तुम प्रेम से हटाओ वासना और मोह,
जब तुम्हारा प्रेम हो पवित्र, निष्कलंक, निराकार।
जब तुम प्रेम में केवल दो, मांगो नहीं कुछ और,
जब प्रेम हो केवल दान, न हो कोई व्यापार।

जब प्रेम हो सम्राट, भिक्षुक नहीं,
जब तुम खुश हो क्योंकि किसी ने तुम्हारा प्रेम स्वीकार किया।
जब प्रेम की धारा बहे बिना किसी अपेक्षा के,
जब प्रेम हो परम आनंद का अद्वितीय सार।

तब ही तुम जान पाओगे प्रेम का सच्चा अर्थ,
तब ही तुम्हारा हृदय होगा सच्चे प्रेम से परिपूर्ण।
तब तुम जानोगे कि प्रेम है स्वर्गिक अमृत,
जो सिखाता है हमें, जीवन का सच्चा मूल्य, सम्पूर्ण।

प्रेम की बातें

निश्छल प्रेम की बातें हैं अनमोल,
जब छूट जाएं वासना और मोह के जाल,
निर्मल हो प्रेम, शुद्ध और निर्दोष,
न हो आकार, न हो कोई खोज।

जब प्रेम केवल देना हो,
न कोई माँग, न कोई रोक,
जब प्रेम बने सम्राट, न हो भिखारी,
तब ही सच्चे प्रेम की हो जयकारी।

खुशियों की छांव में हो बसेरा,
क्योंकि किसी ने स्वीकारा तुम्हारा प्रेम सवेरा।
नहीं चाहें प्रतिदान, न हो कोई उलाहना,
सिर्फ प्रेम की धारा में बहता रहे मन का क़ाफ़िला।

आओ प्रेम की इस राह पर चलें,
निष्काम, निष्कपट प्रेम में डूबें,
सच्चे हृदय से प्रेम करें सब,
तो ही मिलेगा जीवन का सच्चा अनुभव।

सकारात्मकता का सृजन: ओशो की दृष्टि से एक कहानी


हम सभी के जीवन में ऐसे क्षण आते हैं, जब चुनौतियाँ पहाड़ जैसी लगती हैं। लेकिन इन्हीं चुनौतियों के बीच कहीं न कहीं, आशा और सकारात्मकता का एक दीप जलता है। ओशो ने हमें सिखाया कि जीवन की हर कठिनाई के भीतर एक अवसर छिपा होता है।  

ओशो की बात याद आती है—"अंधकार से मत लड़ो, बस एक दीप जलाओ।"  

यह बात एक छोटी कहानी से और भी स्पष्ट होती है:

**कहानी: दो भाइयों की सोच**  

एक बार दो भाई थे। दोनों का बचपन गरीबी और संघर्ष में बीता। बड़े भाई ने जीवन की कठिनाइयों को देखकर सोचा, "जीवन में कुछ नहीं रखा है, सब बेकार है।" उसने हार मान ली और अपने जीवन को नकारात्मक सोच में डूबा दिया।  

वहीं छोटे भाई ने वही कठिनाइयाँ देखीं, लेकिन उसकी सोच अलग थी। उसने सोचा, "अगर मैं इन हालातों में रहकर भी कुछ अच्छा कर सकता हूँ, तो शायद यही मेरी जीत होगी।" वह रोज़ मेहनत करता रहा, सकारात्मकता को अपना मंत्र बनाकर।  

समय बीता, और जहाँ बड़ा भाई अपने ही जीवन से निराश था, वहीं छोटा भाई अपने जीवन में सफलता और संतोष पा चुका था।  

**संस्कृत श्लोक**  
**"यथा दृष्टिः तथा सृष्टिः।"**  
(जैसी आपकी दृष्टि होगी, वैसी ही आपकी सृष्टि होगी।)

यह श्लोक हमें यही सिखाता है कि हमारी सोच ही हमारे जीवन की दिशा तय करती है।  

**ओशो का विचार**  
ओशो कहते हैं, "तुम्हारी सोच ही तुम्हारा संसार बनाती है। अगर तुम सोचो कि जीवन सुंदर है, तो हर ओर तुम्हें सुंदरता ही दिखाई देगी। लेकिन अगर तुम नकारात्मकता को चुनते हो, तो वही तुम्हारी वास्तविकता बन जाएगी।"

इस कहानी में छोटे भाई ने जीवन की चुनौतियों में भी आशा और सकारात्मकता को देखा। यह दृष्टिकोण उसे जीवन में आगे बढ़ने में मदद करता है।  

ओशो हमें यही सिखाते हैं—**अपने मन को विशाल बनाओ**। जीवन की हर परिस्थिति में कुछ नया सीखने और आगे बढ़ने का अवसर खोजो। सकारात्मकता सिर्फ एक सोच नहीं, बल्कि जीवन जीने का तरीका है।  

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त्रिपुंड: शिव की महिमा और आध्यात्मिकता का प्रतीक

  

त्रिपुंड भगवान शिव के माथे पर धारण किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण प्रतीक है, जो उनके गहन आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व को दर्शाता है। यह तीन समानांतर सफेद राख (भस्म) की रेखाओं से निर्मित होता है, जो शिव के भक्तों द्वारा भी धारण किया जाता है। त्रिपुंड न केवल शिव की महिमा और उनकी संहारक शक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह आत्मज्ञान, मोक्ष, और संसार के चक्र से मुक्ति के गूढ़ रहस्यों का भी प्रतिनिधित्व करता है। इस लेख में हम त्रिपुंड के सात प्रमुख अर्थों और उनके आध्यात्मिक महत्व को विस्तार से समझेंगे।

     1. तीन गुणों का प्रतीक: सत्त्व, रजस्, और तमस्  

त्रिपुंड की तीन रेखाएं सृष्टि के तीन प्रमुख गुणों—सत्त्व, रजस्, और तमस्—का प्रतिनिधित्व करती हैं। हिंदू दर्शन में ये तीन गुण जीवन और जगत के प्रत्येक पहलू को नियंत्रित करते हैं। 

- सत्त्व (शुद्धता और प्रकाश): यह गुण शुद्धता, ज्ञान, और आध्यात्मिक जागरूकता को दर्शाता है। सत्त्व गुण के प्रभाव में व्यक्ति शांति, संतुलन, और ध्यान की स्थिति में होता है। यह आत्मा की परम अवस्था की ओर इशारा करता है।
  
    श्लोक:  
  _"सत्त्वं सुखे सञ्जयति ज्ञानं सत्त्वात् समुत्थितम्।  
  रजः कर्माणि भूतानां तमः प्रमादमेव च॥"_  
  (भगवद गीता 14.9)

- रजस् (क्रियाशीलता और भावनात्मकता): यह गुण जीवन में सक्रियता, क्रियाशीलता और इच्छाओं का प्रतीक है। जब रजस् हावी होता है, तो व्यक्ति अपने कर्मों, इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं में उलझा रहता है।

- तमस् (अज्ञानता और निष्क्रियता): तमस् अज्ञान, निष्क्रियता, और भ्रम का प्रतीक है। जब तमस् अधिक होता है, तो व्यक्ति आलस्य, अज्ञानता और मानसिक अवसाद की स्थिति में होता है।

भगवान शिव इन तीनों गुणों से परे हैं, और त्रिपुंड यह प्रतीक है कि शिव इन गुणों पर नियंत्रण रखते हैं। शिव-भक्ति का मार्ग सत्त्व गुण के माध्यम से आत्मज्ञान की ओर ले जाता है, जिससे व्यक्ति इन तीनों गुणों से ऊपर उठ सकता है।

     2. आध्यात्मिक अवस्थाओं का प्रतीक: जाग्रत, स्वप्न, और सुषुप्ति  

त्रिपुंड तीन प्रमुख अवस्थाओं का भी प्रतीक है—जाग्रत, स्वप्न, और सुषुप्ति—जो व्यक्ति की चेतना के विभिन्न स्तरों को दर्शाती हैं। 

- जाग्रत (जागृति की अवस्था): यह अवस्था जीवन की जागरूकता को दर्शाती है, जहां व्यक्ति संसार के भौतिक अनुभवों में संलग्न रहता है।
  
- स्वप्न (स्वप्न अवस्था): यह वह अवस्था है जहां व्यक्ति जीवन के सपनों और इच्छाओं के बीच होता है। इसमें मन भ्रमित होता है और सत्य से दूर होता है।
  
- सुषुप्ति (गहरी निद्रा): यह गहरी निद्रा की अवस्था है, जहां व्यक्ति अज्ञान और भ्रम में लिप्त होता है। यह तमस् की गहरी स्थिति है।

भगवान शिव तुरीय अवस्था में स्थित होते हैं, जो इन तीनों अवस्थाओं से परे शुद्ध चेतना की अवस्था है। त्रिपुंड यह दर्शाता है कि शिव ध्यान, योग और आत्म-साक्षात्कार के माध्यम से इन अवस्थाओं से मुक्त कर सकते हैं।

  श्लोक:  
_"त्रयाणां स्थूलभूतानां वृत्तिर्भवति येषु तु।  
तेषु स्तिथिं समास्थाय सुषुप्तिर्ज्ञेयता बुधैः॥"_  
(योगवशिष्ठ)

     3. अहम, माया, और कर्म का नाश  

त्रिपुंड की तीन रेखाएं यह भी संकेत देती हैं कि भगवान शिव अहंकार, माया, और कर्म का नाश करने में सक्षम हैं। 

- अहंकार (अहम): अहंकार वह शक्ति है जो व्यक्ति को स्वयं से जोड़कर रखती है। शिव का त्रिपुंड अहंकार के नाश का प्रतीक है, जिससे व्यक्ति को आत्मा की शुद्धता का अनुभव हो।
  
- माया (भौतिक भ्रम): माया वह भ्रम है, जो व्यक्ति को संसार के जाल में फंसाए रखता है। शिव की भक्ति माया के बंधनों से मुक्ति दिलाती है।
  
- कर्म (पाप और पुण्य का चक्र): कर्म संसार के चक्र का आधार है। शिव त्रिपुंड द्वारा यह दर्शाते हैं कि वे कर्मों के परिणामों से मुक्ति दिला सकते हैं।

     4. त्रिमूर्ति का प्रतीक: ब्रह्मा, विष्णु, और महेश  

त्रिपुंड हिंदू धर्म की त्रिमूर्ति—ब्रह्मा, विष्णु, और महेश—का भी प्रतिनिधित्व करता है।

- ब्रह्मा (सृष्टि के निर्माता): ब्रह्मा सृष्टि के आरंभकर्ता हैं, जो जीवन को जन्म देते हैं।
  
- विष्णु (पालनकर्ता): विष्णु जीवन का पालन करते हैं और सृष्टि को संतुलित रखते हैं।
  
- महेश (संहारक): शिव सृष्टि के संहारक हैं, जो पुरानी व्यवस्था को समाप्त कर नई व्यवस्था की स्थापना करते हैं।

शिव त्रिपुंड द्वारा यह दिखाते हैं कि वे सृष्टि के संहारक होते हुए भी पुनः निर्माण के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

     5. अग्नि के तीन रूपों का प्रतीक  

त्रिपुंड को अग्नि के तीन रूपों से भी जोड़ा जाता है, जो आत्मा की शुद्धि के लिए आवश्यक होते हैं।

- ज्ञानाग्नि: यह वह अग्नि है जो अज्ञान को जलाकर ज्ञान का प्रकाश फैलाती है। शिव के ध्यान और योग के माध्यम से यह ज्ञानाग्नि प्रज्वलित होती है।
  
    श्लोक:  
  _"ज्ञानाग्नि: सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा।"_  
  (भगवद गीता 4.37)

- कर्माग्नि: यह कर्मों की अग्नि है, जो बुरे कर्मों को जलाती है और व्यक्ति को पापों से मुक्त करती है।
  
- चित्ताग्नि: यह चेतना की अग्नि है, जो आध्यात्मिक जागरूकता को प्रज्वलित करती है और आत्मा को शुद्ध करती है।

     6. शिव के संहारक रूप का प्रतीक  

त्रिपुंड भगवान शिव के संहारक रूप का प्रतीक है। यह दिखाता है कि शिव अज्ञान, अहंकार, और माया का नाश करके भक्त को मोक्ष की ओर ले जाते हैं। 

     7. मृत्यु और पुनर्जन्म से मुक्ति  

त्रिपुंड का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक अर्थ है—मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति। त्रिपुंड यह संकेत करता है कि भगवान शिव के आशीर्वाद से भक्त इस चक्र से मुक्त हो सकता है और परम शांति (मोक्ष) प्राप्त कर सकता है।

  श्लोक:  
_“मृत्योर् मुञ्जीय मामृतात्”_  
(कठोपनिषद् 1.2.15)

     निष्कर्ष

त्रिपुंड एक गहरे आध्यात्मिक प्रतीक के रूप में भगवान शिव की महानता और उनके भक्तों के लिए मोक्ष के मार्ग का प्रतीक है। यह सृष्टि, गुण, अवस्थाओं, अग्नि, और त्रिमूर्ति के विभिन्न रूपों का प्रतिनिधित्व करता है और शिव की भक्ति के माध्यम से आत्मा को शुद्धि और मोक्ष प्रदान करता है। शिव की भक्ति के माध्यम से व्यक्ति संसार के बंधनों से मुक्त होकर तुरीय अवस्था की ओर अग्रसर हो सकता है, जो शुद्ध चेतना की अवस्था है।


सेक्स की शक्ति: दिव्यता या वासना का खेल



सेक्स मात्र एक शारीरिक क्रिया नहीं है, यह ऊर्जा, विचारों और भावनाओं का गहन आदान-प्रदान है। जब एक पुरुष एक महिला के गर्भ में प्रवेश करता है, तो वह किस प्रकार की चेतना और ऊर्जा के साथ आता है? क्या वह कड़वाहट से भरा है, या खुश है? क्या वह स्वयं से प्रेम करता है, और क्या वह आपसे प्रेम करता है? क्या वह सकारात्मक सोच वाला है या नकारात्मक?

स्त्री और पुरुष का मिलन: ऊर्जा का आदान-प्रदान
जब एक स्त्री पुरुष से प्रेम करती है, तो वह उसे आशीर्वाद दे रही होती है या श्राप दे रही होती है? क्या वह हताश, दुखी है, या वह स्वयं से प्रेम करती है? सेक्स एक ऐसा अनुष्ठान है जिसमें दोनों के बीच ऊर्जा, विचार और भावनाओं का अदान-प्रदान होता है। सेक्स के समय हम दूसरे व्यक्ति की चेतना और ऊर्जा को अवशोषित करते हैं। हर स्पर्श, हर गहरा संबंध एक पुष्टि होती है। क्या उस समय आपकी ऊर्जा और शक्ति कम हो रही है, या फिर आप सशक्त हो रहे हैं?

सेक्स: दिव्यता का एक शक्तिशाली अनुष्ठान
यदि आप सेक्स की शक्ति को समझते, तो आप इसे किसी भी व्यक्ति के साथ करने की गलती कभी नहीं करते। यह अत्यंत शक्तिशाली अनुष्ठान है। जब एक पुरुष किसी स्त्री के पास जाता है, तो क्या वह वासना से प्रेरित होता है या कुछ दिव्य बनाने की प्रेरणा से? दंपति के बीच क्रोध, दुःख, भय या हताशा के भाव हैं तो इसका प्रभाव उनकी ऊर्जा और सृष्टि पर पड़ेगा।  

देवत्व और दानवत्व का चुनाव
क्या पुरुष और स्त्री दिव्यता के वाहक बनने का प्रयास करते हैं, या वे वासना के गुलाम बनकर कुछ दानवीय उत्पन्न कर रहे हैं? पुरुष की स्वयं की मंशा, उसके पूर्वजों का प्रभाव, और उसकी जीवनशैली सब मिलकर सेक्स के परिणाम को तय करते हैं। यदि यह प्रक्रिया स्वार्थपूर्ण है, तो यह पूरे कर्म चक्र को दूषित करती है।

शिव-शक्ति का पवित्र मिलन
सेक्स केवल शारीरिक संबंध नहीं है, बल्कि यह शिव और शक्ति का दिव्य मिलन है। यह केवल दो व्यक्तियों का शारीरिक संबंध नहीं है, बल्कि इसमें उनके वंशजों का आशीर्वाद, उनके कुल का प्रभाव, और उनके कर्मों का प्रभाव भी शामिल होता है। यह कर्म प्रधान और अत्यंत प्रभावशाली आध्यात्मिक क्रिया है, जिसे केवल वासना के कारण करना, मनुष्य को पशु समान बना देता है।

शास्त्रों में कहा गया है:

"यो वै भूमा तत् सुखम्, नाल्पे सुखमस्ति" 
(छांदोग्य उपनिषद् 7.23.1)  
अर्थात, "जो अनंत है, वही सुख है; जो सीमित है, उसमें सुख नहीं है।"

यह श्लोक इस बात पर जोर देता है कि वास्तविक सुख केवल तब मिलता है जब हम अपनी आत्मा की गहराई से जुड़ते हैं, और सेक्स का उद्देश्य भी यही होना चाहिए। यह मात्र शारीरिक संतोष तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि इसे आत्मिक मिलन और ऊर्जा के आदान-प्रदान के रूप में देखा जाना चाहिए। 
सेक्स एक पवित्र अनुष्ठान है, जिसका सही उद्देश्य दिव्य ऊर्जा का आदान-प्रदान और आत्मिक उन्नति है। इसे वासना के अधीन करना हमारी चेतना को कमजोर करता है और हमारे जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। जब तक सेक्स को आत्मिक विकास और दिव्यता के संदर्भ में नहीं देखा जाएगा, तब तक इसे पूरी तरह से समझा नहीं जा सकेगा।

महानता का मूल चरित्र



महानता न बुद्धि का वरदान है,
न तीव्र मस्तिष्क का कोई प्रमाण है।
यह तो हृदय की गहराइयों से उपजती,
चरित्र की मिट्टी में धीरे-धीरे ढलती।

बुद्धिमत्ता चमकती है पल भर के लिए,
पर चरित्र स्थायी है युगों-युगों तक।
सफलता तो क्षणिक झोंका है हवा का,
पर चरित्र वह दीप है जो कभी न बुझा।

सच्चा चरित्र नहीं बनता सुख के रंगों से,
यह तो तपता है दुख के अंगारों में।
हर आँसू जो गिरा, वह बीज बना,
हर पीड़ा ने व्यक्ति को महान किया।

जो टूटे हैं, वही समझते हैं दर्द का सार,
उनकी सहानुभूति में छिपा है संसार।
जो अंधेरों से गुज़रे, वही प्रकाश लाए,
जो गिरे, वही उठने का साहस दिखाए।

चरित्र निखरता है संघर्षों के बीच,
जहां सपने टूटते हैं, और इरादे सींच।
जहां हर हार एक सबक बन जाए,
जहां हर चोट आत्मा को गढ़ जाए।

बुद्धिमत्ता तो बनाती है योजनाएँ बड़ी,
पर चरित्र देता है उन्हें आत्मा नई।
वह सत्य, करुणा और धैर्य सिखाता है,
जीवन को मानवीयता से भर जाता है।

तो मत गर्व करो केवल अपने ज्ञान पर,
नहीं है यह महानता का आधार।
महान वही, जो दुख से बना है अमर,
जिसका चरित्र है धैर्य, सत्य और विचार।

याद रखो, चरित्र की अग्नि से गुजरना,
हीरे को चमक देने जैसा है सुंदर।
और महानता वही, जो चरित्र से बहे,
जो इंसान को इंसान बना कर रहे।


कौन हूँ मैं? 4



जन्म के उस पहले क्षण में, क्या कोई परिचय था मेरा?
ना कोई नाम, ना कोई चेहरा, ना ही कोई निशान ठहरा।
बस एक आत्मा का कण था, इस जग में जो आया,
मुक्त, निराकार, शुद्ध, जैसे अम्बर में हो समाया।

पर तब से धीरे-धीरे ये संसार ने लपेटा मुझे,
नाम, जाति, और धर्म के रेशों में जकड़ लिया मुझे।
असतो मा सद्गमय — अंतर्मन की ये पुकार,
असत्य से सत्य की ओर, मुझे खींचता बार-बार।

बचपन में थे कुछ सपने, जीवन के निश्छल रंग,
लेकिन समाज की परतों में, खो गया वो अनछुआ संग।
एक देश, एक धर्म, एक जाति का ले लिया मैंने नाम,
सच का वो स्वरूप था पीछे, बस मृगतृष्णा में था भ्रमित ये धाम।

कभी मन में सवाल उठता, कौन हूँ मैं वास्तव में?
क्या ये सब पहचानें, सचमुच हैं मेरे अस्तित्व में?
सोऽहम् — यह ध्यान मुझे शून्यता की ओर बुलाता है,
जहाँ ना कोई रूप है, ना कोई नाम, ना कोई परिभाषा बताता है।

क्या है ये धर्म, ये जाति, ये समाज का बंधन?
केवल मेरे भीतर की शांति को है एक कठोर मंथन।
बाहरी पहचान के जाल में फँसा हूँ कबसे,
लेकिन भीतर कहीं आज भी हूँ उसी सत्य की ही तलाश में।

वास्तविकता तो यही है कि मैं असीम, अनन्त हूँ,
अहं आत्मा गुहाशयः — उस गहरे अंतर में स्थित हूँ।
जाति और धर्म के इन बंधनों से दूर,
सिर्फ आत्मा का हूँ, वही है मेरा असली सुरूर।

तो क्यों मैं इस सीमितता में बाँधूँ खुद को बार-बार?
जब मेरा मूल सत्य है अनन्त, पूर्ण और अपार।
सिर्फ वही सत्य है, बाकी सब भ्रम का आवरण,
जब मिटेगा यह आवरण, तब ही होगा सच्चा जीवन।

सर्वं खल्विदं ब्रह्म — सबमें तो है वही आत्मा का स्वर,
ना कोई भेद, ना कोई भिन्नता, बस प्रेम का ही है संभार।
इस सत्य को समझूँ, इस माया से पार होऊँ,
अपने मूल रूप में, आत्मा का एहसास फिर से पाऊँ।

इस अंतहीन यात्रा में, मुझे मिलना है अपने आप से,
जहाँ ना नाम, ना रूप, बस शून्यता में खुद को पाऊँ स्नेह से।
मुक्त होकर इस माया से, सत्य का अनुभव करूँ,
कि मैं हूँ, सिर्फ हूँ, बस शाश्वत आत्मा का हूँ कण।

ॐ शांति शांति शांति — इस पथ पर चले चलूँ,
जहाँ ना कोई नाम, ना पहचान, बस आत्मा का मूल रूप मैं अपनाऊँ।
बस वही है मेरा सत्य, वही है मेरा परम धाम,
कि जन्म में जो मैं था, वही हूँ, वही मेरा नाम।


कौन हूँ मैं? 3



जब आई पहली साँस मेरी, तब तो था मैं शुद्ध, निर्दोष,
ना था कोई बंधन, ना था मोह, बस था मैं प्रकृति का संतोष।
कोई नाम नहीं, कोई पहचान नहीं, बस जीवन का एक अंश,
जन्म और मृत्यु के इस चक्र में, अद्वितीय आत्मा का प्रतिबिंब।

फिर क्यों समय के साथ-साथ, मैं बँधता गया इन बंधनों में?
जाति, धर्म, और पहचान के इस भारी आवरण में?
क्यों ये नाम, ये रिश्ते, ये पहचान मेरे साथ जुड़ गए,
और मेरे भीतर का अहं ब्रह्मास्मि का स्वर दब सा गया?

तत् त्वम् असि — ये ज्ञान तो जन्म से ही है मुझमें,
पर क्यों मैं भूला, क्यों अंधकार ने मुझे घेर लिया?
क्यों इन मानवीय सीमाओं में मैंने खुद को खो दिया,
सत्य का सूरज ढल गया, माया का आवरण बुन गया।

आज जब मैं देखता हूँ अपने भीतर, परतों को हटाता हूँ,
एक नई रोशनी में, सत्य का मार्ग दिख जाता है।
जाति का गर्व, धर्म का अभिमान, सब धुंधले से लगते हैं,
मैं तो बस अंश हूँ उस परमात्मा का, जो सृष्टि में समाहित है।

आत्मा न जायते म्रियते वा कदाचित् — ये शाश्वत सत्य है,
ना मैं जन्मा, ना मरूँगा, ये माया का पाश है।
मैं वही हूँ जो इस क्षण के पार, उस अनंत में बसा है,
जो नाम, रूप, और जाति के भ्रमों से परे, बस प्रेम का एक बसा है।

हर धर्म में, हर जाति में, वही एक चेतना का अंश,
फिर क्यों मैं बँध जाऊँ इन सीमाओं में, जो सत्य से दूर हैं?
ना कोई हिन्दू, ना मुसलमान, ना कोई अमीर, ना गरीब,
बस आत्मा का अनंत प्रवाह, जो इन जंजीरों से हो स्वतंत्र।

इस आत्मा की खोज में, जब बंधन सब टूट जाएँगे,
मैं फिर वही होऊँगा, जो जन्म के क्षण में था।
ना नाम, ना जाति, ना कोई धर्म, बस एक शून्य का भाव,
जहाँ से मैं निकला था, वहीं मैं लौट आऊँगा — एक शुद्ध, निर्विकार।

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते
जो पूर्ण से उत्पन्न है, वही मेरा सत्य है।
और ये जो पहचान का आवरण है, ये तो माया का खेल है,
मेरा असली स्वरूप तो उसी पूर्णता में समाहित है।

तो चलो, इन सीमाओं से बाहर निकल चलें,
सत्य के उस अनंत मार्ग पर जहाँ कोई बंधन न हो।
जहाँ मैं हूँ, तुम हो, और हम सब एक ही ब्रह्म के अंश हैं,
सर्वं खल्विदं ब्रह्म — यही जीवन का सच्चा स्पंदन है।


कौन हूँ मैं? 2



जन्म लिया जब इस धरा पर, क्या था मेरा कोई नाम?
ना था धर्म, ना जाति कोई, ना था कोई अभिमान।
श्वेत पटल सा निर्मल मन, शून्य में मैं खोया था,
सच की तलाश में तब से ही, उस अद्वैत में सोया था।

सत्यं शिवं सुंदरम् — यही थी मेरी पहचान,
ना कोई सीमा, ना कोई बंधन, सिर्फ प्रेम का प्रमाण।
माता-पिता का था आँचल, और धरती माँ का संग,
बिना किसी रूप-रेखा के, बस था अदृश्य सा रंग।

तब से लगा कि ये जो नाम, धर्म, और जाति का जाल,
केवल एक भ्रम है ये, ये बुनती हैं मानव की चाल।
अहं ब्रह्मास्मि की ध्वनि, जैसे गूंज रही अंतर्मन में,
परिचय छूटता चला गया, जीवन के इस यथार्थ क्षण में।

आज जब खुद को देखता हूँ, परतों में ढके हुए,
नहीं हूँ वो जो दिखता हूँ, बस अदृश्य में छुपे हुए।
जाति, धर्म, और पहचान के सब भ्रमों को तोड़ता,
अपने असली स्वरूप में, सत्य को मैं जोड़ता।

कभी सोचता हूँ, क्या ये सब भौतिकता का भ्रम है?
आत्मा तो मुक्त है, सर्वं खल्विदं ब्रह्म का ही परम है।
तो क्यों मैं कैद हूँ इन सीमाओं में, इस मायावी संसार में,
जो जन्म में न था, आज क्यों मेरे अस्तित्व का आधार बने?

यत्र विश्वं भवति एक नीड़म्, यही है मेरा ध्येय,
ना कोई भेद, ना कोई बंधन, केवल प्रेम का नित्य ये श्रेय।
जाति-धर्म के पार चलूँ, इस सीमाओं से मुक्त होऊँ,
अमृत की उस धार में, सत्य से साक्षात्कार करूँ।

सच तो यही है कि मैं बस हूँ, इस अद्वितीय ब्रह्म का अंश,
मुक्ति के उस पथ पर चलूँ, जहाँ ना कोई भेद, ना कोई बंधन।
जब जन्म लिया, तब जो था, वही मेरा परम सत्य है,
बाकी सब माया का आवरण है, जो बदलता रहता क्षण क्षण।

ॐ तत् सत्


रूह को आज़ाद कर

बदले की आग में, खुद को मत जलाओ,
दर्द की जंजीरों से, खुद को मत बंधाओ। 

जिसने दिया है घाव, उसे जाने दो,
अपने दिल की तपिश को, ठंडा करने दो।

बदले की राह में, बस समय है गँवाना,
अपनी रूह को आज़ाद कर, चलो नया फसाना।

दर्द को थाम कर रखना, बस तुझे और दुख देगा,
छोड़ दो वो बोझ, जो तुझे पीछे खींचता रहेगा।

अपनी ऊर्जा को बदल दो, बदले की नहीं, उपचार की ओर,
चाहे जितना भी कठिन हो, बढ़ो खुद की बहार की ओर।

मिटा दो नफ़रत का हर निशान, और प्यार से भर लो,
चोट को भूल कर, अब अपनी सुकून की राह पर चलो। 

यह कौन हूं मैं?



जन्म का क्षण क्या था?
ना जाति, ना नाम, ना कोई पहचान।
शून्य था वो एक क्षण मात्र,
जहां मौन ही मेरा एकमात्र था धन।

अहम् ब्रह्मास्मि का था वो भाव,
ना कोई समाज, ना कोई जात, ना राग।
सबकुछ अस्तित्व में समाहित था,
मन-मर्यादा से परे, बस आत्मा का स्वरूप था।

जन्म के संग ये दुनियावी भार,
नाम, धर्म, जात, और संस्कार।
कहां से आए ये सीमाएँ इतनी,
क्यों बाँध दिए इस आत्मा को इतने विचार?

सर्वं खल्विदं ब्रह्म - ब्रह्मांड का सत्य यही,
परंतु माया ने घेर रखा हमें, है ये भी सही।
तब खुद से एक सवाल पूछता हूं,
किसके हैं ये बंधन, क्यों ये पहचान हम पर सजी है?

धर्म जो अपनाए हमने जन्म के बाद,
कहां था वो बचपन की उस प्रथम पुकार?
वो पावन क्षण जब मैं था केवल एक श्वास,
ना जाति, ना धर्म, ना कोई विभाजन का दास।

तोड़ दो ये सीमाएं, ये नामों का भ्रम,
जब शाश्वत है आत्मा, तब कैसा गरल, कैसा धर्म?
वो जो आया है धरती पर मुक्त-स्वरूप में,
क्या वो जकड़ सकता है इस मृगतृष्णा के स्वरूप में?

ब्रह्म सत्य है, शाश्वत है, नित्य है हम सब में,
तब क्यों बांधते हैं हम इसे इस पहचान के झमेले में?
तत्त्वमसि - तू वही है, साक्षात् ब्रह्म का हिस्सा,
इस सत्य को जान, पहचान का भ्रम कर विसर्जन।

रख मन में ये गहराई का ज्ञान,
जन्म के क्षण का वही निर्मल ध्यान।
जाति, धर्म, और नाम से मुक्त होकर,
जीवन को देख, जैसे आत्मा का अनंत एक स्वप्न।


मूल का प्रश्न



क्या नाम हमारा यही, जो जग ने हमको दे डाला?
किस जाति, धर्म, वर्ण में, इस जन्म में क्यों बंध डाला?
स्मरण करो उस क्षण को, जब आँखें पहली बार खुलीं,
क्या पहचान थी अपनी तब, क्या तब कोई सीमा लगी?

मूल स्वरूप का प्रश्न

न जाति थी, न धर्म था, न कोई भिन्नता का नाम,
सिर्फ शुद्ध आत्मा थी वह, बस अस्तित्व का अविराम।
संस्कृति, समाज, जातियाँ, ये सब हैं भ्रम के तंतु,
परम सत्य की खोज में ये, कितनी रुकावटें बुनते।

संस्कारों का भार

संस्कारों का बोझ लाद कर, जीवन में हम चल पड़ते,
पर हर कदम पर स्वयं से दूर, हम खुद को ही छलते।
"अहं ब्रह्मास्मि," का उद्घोष तो करते हैं अधरों से,
पर वास्तव में नहीं समझते, सत्य छुपा जो अंतर में।

परिवर्तन का आह्वान

हे मानव! अब तुम जागो, अपनी सच्ची पहचान को जानो,
मोह-माया के बंधन तोड़, आत्मा का अमर स्वाभाव पहचानो।
"नमः शिवाय," में खो जाओ, अपने मूल में जो मिल जाए,
हर भ्रम, हर परिचय, हर जाति, सत्य में घुल जाए।

शुद्ध चेतना का मार्ग

"तत्त्वमसि," वह सत्य है, जो भीतर हर प्राणी में वास,
ना कोई भेद, ना कोई द्वेष, यह आत्मा की है आवाज।
सभी देह का भेद मिटाकर, मन में एकता भर ले तू,
एक अंश है परमात्मा का, तू इस सत्य को समझ ले तू।

समर्पण और समाधि

अंत में यह समझो, कि हर नाम, रूप, जाति के बंधन,
मात्र क्षणिक हैं, और तुम्हें ले जाते हैं मोह-माया के बंधन।
असली मुक्ति तब मिलेगी, जब आत्मा का सच पहचाने,
प्रेम और करुणा में डूबे, हर जीव में ईश्वर पहचाने।


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इस कविता का संदेश यही है कि हमारा असली स्वरूप किसी नाम, जाति, धर्म से परे है। हमें आत्मज्ञान की ओर बढ़ना चाहिए और उस शुद्ध चेतना को पहचानना चाहिए जो जन्म से ही हमारे भीतर है।


अस्तित्व का मूल प्रश्न



जन्मते त्वं शून्यतायां, बिना नाम रूपेण।
तू न हिंदू, न मुसलमान, न जाति का बंधन तुझ पर।
 बस था तेरा शुद्ध अस्तित्व, जो सीमाओं से मुक्त था।


अस्मिन जगति त्वं निराकारः, शून्यं स्वयम् अवस्थितः धर्मो न ते जाति, न ते वर्णो, न राष्ट्रस्य तीक्ष्णता।
 ब्रह्म स्वरूपमस्ति त्वं, न तत्र जाति न तत्र धर्मः

काल के प्रवाह में बंधा, मानव ने किए बंधनों के जाल। कभी नाम, कभी धर्म, कभी पेशा, पर मन रहा तेरे बिन विसाल।
पर हर बंधन के पीछे छिपा है, वही निर्मल, असीम सत्य।

"अहम् ब्रह्मास्मि" ध्वनि से स्पंदित, तू है एक शाश्वत राग। क्यों भूला तू उस मूल को, जिसे कभी पाया ही नहीं था भेद।
 तू तो बस एक ज्वाला है, जिसे न नाम की जरूरत है, न रंग की।

विवेक-ध्यान से देख अपना स्व, वहाँ न कोई सीमा का भाव है।
जाति-धर्म सब झूठे मुखौटे, जो तुझे बाँध न सकेंगे।
 अनंत का तू एक अंश है, मुक्त-निर्मल, अपरिचित सत्य।


संघर्ष से आगे: प्रणाली और संतुलन का मार्ग

संघर्ष की संस्कृति जो लगातार करती है मेहनत की पूजा,
यह केवल थकावट की ओर ले जाती है, न की सफलता की।
यह भ्रम है कि जितनी मेहनत, उतनी ही सफलता,
पर असल में तो समझदारी से बनाई जाती है जीवन की राह।

प्रणालियों का निर्माण करें,
जो बिना थके आपके प्रयासों को बढ़ाएं।
स्मार्ट काम से सफलता पाओ,
वो भी बिना खुद को जलाए और बिना टूटे हुए।

प्रणाली से बढ़ती है स्थिरता,
यह न केवल आपके प्रयासों को पुनः उत्पन्न करती है,
बल्कि यह आपकी ऊर्जा को भी बचाती है,
ताकि आप हर दिन संघर्ष नहीं, बल्कि सफलता का स्वाद चखें।

आपका कार्य नहीं होना चाहिए थकावट का परिणाम,
बल्कि यह होना चाहिए एक निरंतर प्रगति का कारण।
प्रणालियाँ ऐसी बनाएं, जो खुद काम करें,
ताकि हर कदम पर आपको न थककर, परिणाम मिलें।

संगठित और सुव्यवस्थित प्रणाली से जीवन में परिवर्तन आता है,
यहां सफलता आनी चाहिए सहज रूप से, संघर्ष से नहीं।
जब प्रणाली में हो शक्ति और गति,
तो जीवन का हर कदम बनता है प्रेरणा का स्रोत।

जब आप प्रणाली बनाते हैं,
तो आप बस कार्य नहीं करते, आप परिणाम निर्माण करते हैं।
काम के हर पहलू को सुव्यवस्थित करें,
ताकि जीवन में हो स्थिरता और सामंजस्य।

निरंतर संघर्ष से बचिए,
समय की सही समझ और प्रणालियों की सृजन में लगाएं मेहनत।
सही दिशा में उठाए गए कदम ही लाते हैं सफलता,
जो बढ़ाती है आपके जीवन की गुणवत्ता और संतुलन।

संघर्ष नहीं, बल्कि प्रणाली है असली कुंजी,
जो आपको देती है संतुलित जीवन और खुशहाल भविष्य।
वह प्रणाली जो काम करती है आपके लिए,
जब आप सो रहे होते हैं या जब आप आराम कर रहे होते हैं।


संघर्ष और निर्माण का मार्ग



जहां संघर्ष होता है, वहीं निर्मल रचनाएँ उभरती हैं,
जहां तपस्या होती है, वहां आत्मा की शक्ति भरती है।
शरीर का श्रम है केवल आरंभ का पथ,
सच्ची विजय तो समझदारी से रची जाती है विधि से।

कष्ट के प्रत्येक क्षण में छिपा है एक रत्न,
जो अनुभव और साहस का निर्माण करता है।
तभी तो कहते हैं संत, हर कठिनाई के बाद,
वही सच्चा निर्माण है जो साहस से लड़ा जाए।

श्रम से केवल शरीर नहीं, आत्मा भी बनती है,
पर जब लक्ष्य केवल तप तक सीमित होता है,
तब व्यवस्थाएँ और योजनाएँ चूक जाती हैं,
और हम उसी कष्ट में उलझ कर रह जाते हैं।

संघर्ष से उभरते हैं अनुभव और मर्म,
पर उनके बिना साधन कैसे पाओगे तुम?
समय की कीमत समझो, सोच में लाओ संतुलन,
तभी जीवन में आएगा सच्चा परिवर्तन।

कार्य की दिशा वही सच्ची होती है,
जो सही साधन और प्रणाली से जुड़ी होती है।
समय का विवेकपूर्ण उपयोग करो,
ताकि श्रम का असल फल साकार हो।

प्रारंभ में तपना आवश्यक है,
पर यह न भूलो कि सही मार्गदर्शन ही जीत है।
श्रम का उद्देश्य केवल मेहनत नहीं,
वह तो एक साधन है, जीवन की ऊँचाई पाने का।

अशांत भागदौड़ के बीच में, ठहरकर सोचो,
कैसे अपने कर्मों को संयम से व्यवस्थित करो।
संगठित कार्य ही लाता है सफलता का रंग,
जहां हर कदम, हर संघर्ष हो एक सटीक सृजन।

याद रखो, श्रम से प्राप्त होता है अनुभव,
पर अनुभव से मिलती है सही दिशा और साधन।
इसलिए श्रम से कभी न भागो,
लेकिन समझदारी से योजनाओं को अपनाओ।

सर्वोत्तम मार्ग वही है,
जो श्रम और योजना दोनों को संतुलित करता है।
कष्ट में छिपा है सच्चा निर्माण,
जो तुम्हें देगा भविष्य का असली मान।


संघर्ष और निर्माण का पथ



हर उच्चता की ओर बढ़ते हुए संघर्ष है,
हर विजय के पूर्व अभ्यास अनिवार्य है।
पर केवल श्रम में खो जाना नहीं है ध्येय,
समझदारी से रचना ही है सिद्धि का उपाय।

प्रारंभ में श्रम ही जीवन का कर्तव्य है,
प्रत्येक कदम में ज्ञान का विस्तार है।
हर विकटता में अनुभव का रत्न छिपा है,
प्रत्येक प्रयास भविष्य को साकार करता है।

पर केवल श्रम पर्याप्त नहीं है,
यह तो बस प्रथम पथ है यत्रा का।
यदि केवल परिश्रम में रुक जाओ,
तो व्यवस्थाओं का अर्थ खो दोगे।

श्रम से मिलता है अनुभव और दक्षता,
पर इन्हें रूपांतरित करो साधन और सरलता में।
स्मार्ट प्रणाली से कार्य करो,
ताकि श्रम से उत्पन्न थकावट दूर हो जाए।

जो लोग सदा संघर्ष में उलझे रहते हैं,
वे नीति और मार्गदर्शन में चूक जाते हैं।
हर दुःख का उद्देश्य है निर्माण करना,
ताकि जीवन का मार्ग सरल और समृद्ध हो।

शुरू करो कर्म उत्साह और धैर्य के साथ,
पर समझो कब उठाना है नया कदम।
व्यवस्था और संतुलन ही वास्तविक सफलता है,
जहां कार्य सुगम हो, और शांति का वास हो।

प्रारंभ में तपना आवश्यक है,
पर जीवन को न बनाओ केवल शोर का अस्तबल।
सीखो, समृद्धि की योजना बनाओ,
तभी तुम्हारी यात्रा में विजय का गान होगा।

तो श्रम करो, पर मार्ग भी चुनो सही,
सिर्फ दौड़ने से नहीं, बुद्धिमत्ता से होती है वृद्धि।
श्रम का उद्देश्य है निर्माण करना,
ताकि जीवन को शाश्वत अर्थों में परिवर्तित किया जा सके।

शुरुआत का संघर्ष और निर्माण का सफर



हर ऊँचाई की शुरुआत में होता है संघर्ष,
हर सफलता के पहले जरूरी है अभ्यास।
पर केवल मेहनत में खो जाना नहीं है लक्ष्य,
बल्कि समझदारी से रचना है विजय का पथ।

शुरुआत में मेहनत है जीवन का नियम,
हर कदम पर सीखने का बनता है क्रम।
हर संघर्ष देता है अनुभव का तोहफा,
हर प्रयास जोड़ता है भविष्य का सपना।

पर केवल मेहनत ही सब कुछ नहीं है,
यह बस पहला पायदान है सफर का।
अगर ठहर गए केवल संघर्ष के फेर में,
तो खो दोगे व्यवस्थितता और सही दिशा के अर्थ में।

संघर्ष से मिलते हैं अनुभव और कुशलता,
पर इन्हें बदलो समझदारी और सरलता में।
स्मार्ट प्रणाली बनाओ अपने काम के लिए,
ताकि मेहनत न हो थकावट का सिलसिला।

जो लोग अटके रहते हैं हमेशा दौड़ में,
वे चूक जाते हैं सोच और योजना की होड़ में।
हर संघर्ष का मतलब है निर्माण करना,
ताकि कल का सफर हो थोड़ा सरल बनना।

काम शुरू करो जुनून और धैर्य के संग,
पर समझो कब उठाना है दूसरा कदम।
व्यवस्था बनाना ही असली सफलता है,
जहां काम हो आसानी से, बिना थकावट के।

शुरुआत में जलना जरूरी है थोड़ा,
पर जीवन को मत बनाओ केवल शोर का घोड़ा।
सीखो, बढ़ो, और योजनाओं को अपनाओ,
तभी असली सफलता के गीत गाओ।

तो मेहनत करो, पर दिशा भी चुनो सही,
सिर्फ भागने से नहीं, सोच से होती है बढ़त।
संघर्ष का उद्देश्य है निर्माण करना,
ताकि जीवन को सच्चे अर्थों में संवारना।


बारिश की बूंदें

यह अद्भुत है कि बारिश की एक ही धारा कभी मीठी, कभी खतरनाक, और कभी रोमांटिक हो सकती है। आपके अनुभव को ध्यान में रखते हुए, यहाँ एक हिंदी कविता है जो बारिश के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती है:

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बारिश की बूंदें जब गिरती हैं,  
पर्वतों पर नाचतीं,  
सागर की लहरों में मिलकर,  
एक नई धुन छेड़तीं।

कभी मीठी फुहार बनकर,  
बचपन की यादें लाती,  
कभी तूफान बनकर,  
सब कुछ बहा ले जाती।

रोमांटिक पलों में,  
दो दिलों को जोड़तीं,  
फिर कहीं बाढ़ में,  
ज़िंदगी को मोड़तीं।

ये बारिश की बूंदें,  
जिनमें हर रंग समाया,  
कभी सुहानी चांदनी रात,  
कभी तूफानी घटा।

पर्वतों से लेकर सागर तक,  
मैंने हर बारिश देखी,  
उसकी अनगिनत कहानियाँ,  
अब मन में लिखी।

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इस कविता में बारिश के विभिन्न अनुभवों और भावनाओं को संजोया गया है। आशा है आपको यह पसंद आएगी!

**बरसात की बातें**



बरसात की बूंदें, अमृत-सी मीठी,  
कभी वो आशीर्वाद, कभी वो विपत्ति।

पहाड़ों पे बर्फ़, आसमान से गिरती,  
हरी-भरी वादियाँ, मानो स्वर्ग उतरती।

सागर के किनारे, लहरों के संग नृत्य,  
अल्हड़ हवा के संग, ये प्रेम का काव्य।

कभी बनती है ये, खेतों की रक्षक,  
कभी बन जाती है, बाढ़ की जलधारा।

मस्त मलंग मन, भीगता रोमांस में,  
आशाओं की बौछार, सपनों की बंसी।

बरसात के ये रंग, कितने अनोखे,  
कभी मीठी मिठास, कभी प्रकृति का कोप।

कभी प्रेम की रात, कभी डर की रात,  
फिर भी प्यारी लगे, ये बारिश की सौगात। 

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संघर्ष और निर्माण का पथ 2



यत्र यत्र संघर्षं यत्र यत्र ताप,
तत्र तत्र विजयं प्राप्ति नष्ट न हो सकता।
हर ऊँचाई में बसा है एक गहन पथ,
श्रम से सीखे ज्ञान, पर केवल श्रम न हो अंतिम विधि।

प्रारंभ में कष्ट है जीवन का नियम,
नैतिकता, धर्म और कर्म से बढ़ते क्रम।
हर चोट में छिपा है अनमोल रत्न,
हर क्रांति में समाहित है सच्चाई का संकल्प।

श्रम से होते हैं अनुभव के बीज,
पर केवल शारीरिक परिश्रम से नहीं मिलता विजय का सजीव।
स्मार्ट प्रणाली ही वह मार्ग है,
जो श्रम के उत्तरदायित्व को सुलभ और सहज बनाती है।

जो संघर्ष करते हैं, वे नहीं रुकते,
पर कभी न कभी वे यह समझते हैं।
आत्मनियंत्रण से बनाते हैं कार्य को आसान,
व्यवस्था से बढ़ाते हैं कर्मों का विस्तार।

समय के साथ शुद्ध कर्म का फल,
स्मार्ट योजना से सही मार्ग का उद्घाटन।
कष्ट में जन्मता है सहनशीलता,
व्यवस्था से आती है सरलता और स्थिरता।

प्रारंभ में जलना आवश्यक है,
पर जलते हुए जलने की आवश्यकता नहीं।
संयम और दृष्टिकोण से बनाओ जीवन का ढांचा,
स्मार्ट निर्णयों से न केवल कर्म, जीवन को भी संवारो।

श्रम करो, पर केवल थकावट नहीं,
निष्ठा से सही दिशा की पहचान करो।
जो श्रम से जुड़ा होता है मनुष्य,
वह समझता है कि जीवन में शांति और सफलता है बस एक प्रण।

अंततः, साधन और विवेक से मार्गदर्शन पाओ,
श्रम की शक्ति से अर्थ न खोजो।
व्यवस्था, संतुलन, और नीतिशास्त्र से बढ़ो,
तभी तुम्हारी सफलता का संग्राम सहज होगा।


शुरुआत का संघर्ष और निर्माण का सफर



हर ऊँचाई की शुरुआत में होता है संघर्ष,
हर सफलता के पहले जरूरी है अभ्यास।
पर केवल मेहनत में खो जाना नहीं है लक्ष्य,
बल्कि समझदारी से रचना है विजय का पथ।

शुरुआत में मेहनत है जीवन का नियम,
हर कदम पर सीखने का बनता है क्रम।
हर संघर्ष देता है अनुभव का तोहफा,
हर प्रयास जोड़ता है भविष्य का सपना।

पर Grinding ही सबकुछ नहीं है,
यह बस पहला पायदान है सफर का।
अगर ठहर गए केवल मेहनत के फेर में,
तो खो दोगे Systems के असली अर्थ में।

ग्राइंड से मिलते हैं अनुभव और कुशलता,
पर इन्हें बदलो लीवरेज और सरलता।
स्मार्ट सिस्टम रचो अपने काम के लिए,
ताकि मेहनत न हो थकावट का सिलसिला।

जो लोग अटके रहते हैं हमेशा दौड़ में,
वे चूक जाते हैं सोच और योजना की होड़ में।
हर संघर्ष का मतलब है निर्माण करना,
ताकि कल का सफर हो थोड़ा सरल बनना।

काम शुरू करो जुनून और धैर्य के संग,
पर समझो कब उठाना है दूसरा कदम।
सिस्टम बनाना ही असली सफलता है,
जहां काम हो आसानी से, बिना थकावट के।

शुरुआत में जलना जरूरी है थोड़ा,
पर जीवन को मत बनाओ केवल शोर का घोड़ा।
सीखो, बढ़ो, और Systems को अपनाओ,
तभी असली सफलता के गीत गाओ।

तो मेहनत करो, पर दिशा भी चुनो सही,
सिर्फ भागने से नहीं, सोच से होती है बढ़त।
Grinding का उद्देश्य है निर्माण करना,
ताकि जीवन को सच्चे अर्थों में संवारना।


बारिश की बूँदों में छिपी है हर रंग की कहानी,



बारिश की बूँदों में छिपी है हर रंग की कहानी,  
कभी मधुर संगीत, कभी बाढ़ की निशानी।  
पहाड़ों पर गिरती है तो बिखेरती है चाँदी,  
समुद्र की लहरों में घुलकर, बुनती है एक फांदी।  

मोहब्बत की रातों में ये बनती है साथी,  
दो दिलों की बातें, झूमती है बूँदें जैसे ताली।  
विरह की तन्हाई में ये आंसू बनकर बहती,  
यादों के गलियारों में, बस चुपचाप रह जाती।  

बाढ़ बनकर जब आई, तो धारा बहा ले जाती,  
विनाश की लहरों में सब कुछ बिखर जाता।  
फिर भी, उस बूंद में है जीवन का उपहार,  
धरती को तृप्त कर, हरियाली से सजा डाले प्यार।  

बारिश का ये जादू, हर किसी को मोह लेता,  
कभी ख्वाबों में खो जाता, कभी हकीकत से जूझता।  
ये जीवन का सुकून है, और विपदा का दर्द,  
बारिश की बूँदों में छिपी है हर रंग की कहानी, प्यारी और सख्त।

मेहनत का महिमामंडन मत करो



मत बांधो खुद को इस दौड़ की बेड़ी में,
जहां हर कदम हो जंजीर तेज़ी की।
जीवन का मूल्य है संतुलन और योजना,
न कि जलना हर पल की होड़ में।

जो समझते हैं संसाधनों का खेल,
वे ही रचते हैं सफलता का मेल।
थोड़ा प्रयास, पर सही दिशा में,
यही बनता है हर बड़ी जीत का कारण।

क्या फायदा उस जीत का,
जो ले जाए तुम्हें थकावट के घाट तक?
जहां हर कदम भारी हो जाए,
और अंत में बस खालीपन रह जाए।

सच्चाई यह है कि दुनिया बदल रही है,
अब मेहनत से ज्यादा चतुराई जरूरी है।
टेक्नोलॉजी, सिस्टम और नेटवर्क का जाल,
यही है सफलता का असली कमाल।

बनाओ ऐसे तंत्र, जो खुद काम करें,
तुम्हारी ऊर्जा को स्थायी नाम करें।
कड़ी मेहनत की जगह स्मार्ट योजना,
यही है अब सफलता की सही परिभाषा।

जो थककर गिरते हैं हर बार,
वे जीत के करीब नहीं, बस हार के पास।
पर जो सोचते हैं गहराई से हर कदम,
वे रचते हैं इतिहास का नया आलम।

ग्राइंड का नहीं, सोच का जमाना है,
जहां सिस्टम से ही सफलता का खजाना है।
समय का सही उपयोग ही कुंजी है,
न कि हर पल खुद को खत्म करने की दुर्दशा।

इसलिए छोड़ो इस भागदौड़ का जाल,
सफलता के लिए उठाओ सही सवाल।
कैसे काम हो समझदारी से आसान,
तभी मिलेगा तुम्हें सच्चा सम्मान।

दुनिया उन्हीं की होगी, जो सिखेंगे,
लीवरेज और सिस्टम से आगे बढ़ेंगे।
तो मेहनत को बस एक साधन मानो,
स्मार्ट सोच से अपने सपनों को सजाओ।


बारिश की मिठास और रसिकता


बरसात का मौसम लाया, मीठी-मीठी फुहार,  
कभी ये मोहे मन को, कभी करे तकरार।  

पर्वतों पर जब गिरी, मनो सजीले गीत,  
समुद्र की लहरों संग, मिले अनगिनत मीत।  
कभी ये खतरा बनती, बह जाएँ नगर और गाँव,  
सावधान रहना चाहिए, प्रकृति का ये भाव।  

कभी चाय की चुस्की में, कभी भीगी सड़कों पर,  
ये रोमांटिक लम्हे दे, छुपे किसी छतरी के अंदर।  
बारिश की बूंदों में, जीवन की अनगिनत तस्वीर,  
मीठी भी है, खतरनाक भी, ये बारिश की तक़दीर।  


पसीने से नहीं, बुद्धि से जीत



मत बनाओ मेहनत को पूजा का मन्त्र,
जहां हर सांस बस थकावट का तंत्र।
जीवन न सिर्फ दौड़ है, न केवल जंग,
यह है समझदारी का संतुलित रंग।

जिन्हें पता है कैसे समय को साधना,
और सिस्टम से अपने काम को बांधना।
वे ही होते हैं असली विजेता,
जो मेहनत से पहले सोच को देते बढ़त।

पसीने में खो जाना कोई सफलता नहीं,
थकावट में डूब जाना कोई बल नहीं।
सफल वही, जो योजना से चले,
अपने साधनों को चतुराई से संभाले।

हर जीत न दौड़ कर पाई जाती है,
कभी-कभी स्थिरता ही विजय दिलाती है।
जो सिस्टम बनाकर अपनी राह सजाते,
वही बिना जले, ऊंचाई तक जाते।

ग्राइंड को न बनाओ अपनी पहचान,
यह जीवन की ऊर्जा को करता है क्षीण।
स्मार्ट काम करो, न केवल कठिन,
ताकि हर कदम बने एक मजबूत भवन।

समझो लीवरेज का अनोखा खेल,
जहां कम मेहनत में मिलता है बेहतर मेल।
समय, तकनीक और ज्ञान का संग,
यही बनाता है भविष्य का रंग।

तो मत जलाओ खुद को हर नई जीत में,
शांति से बढ़ो अपनी समझ की रीत में।
महानता उसी की होगी अंत में,
जो बुद्धिमत्ता से चलता है संतुलन में।


बारिश का अनूठा रूप

बारिश का अनूठा रूप,
कभी मीठी, कभी खतरनाक, कभी रोमांटिक।
पर्वतों पर गिरती धारा,
समुद्र की लहरों में उफान भरती।

भीगे बादलों की गोद में,
धरती हरी चूनर ओढ़े।
कभी अमृत की बूंदें बरसती,
कभी बाढ़ का कहर लाती।

पर्वतों की चोटियों पर,
ओस की बूंदों का नृत्य।
समुद्र की गोद में मिलकर,
लहरों का संगीत बहता।

मीठी फुहारों में भीगे रास्ते,
मन की गहराइयों में छा जाती।
प्यार का संदेशा लेकर आती,
प्रकृति का नृत्य, जीवन का रंग।

लेकिन कभी-कभी ये बारिश,
कहानी बन जाती त्रासदी की।
बाढ़ के रूप में उग्र होती,
नदियों के किनारे उजड़ जाते।

बारिश का ये अनूठा रूप,
जीवन की विविधता का प्रतीक।
कभी रोमांटिक, कभी खतरनाक,
प्रकृति का यह अद्वितीय संगीत।

समझदारी से जीने का मंत्र



हर सुबह उठकर दौड़ में शामिल होना,
हर दिन बस जीत के पीछे भागते रहना।
क्या यही है जीवन का असली सार?
या हम भटक गए हैं, यह पूछना है अधिकार।

महिमा मंडन क्यों करें इस पिसाई का,
जहां मेहनत के नाम पर हो घिसाई का।
जो जले खुद को, और राख बन जाए,
वह क्या सच में जीत का सुख पाए?

भविष्य उन्हीं का है, जो समझते हैं,
मेहनत से बड़ा हुनर और सिस्टम बुनते हैं।
जो सीखे leverage का विज्ञान,
उनके हाथों में होगा जीवन का नियंत्रण।

स्मार्ट काम है, जो मेहनत का सार है,
सिस्टम और योजनाओं से बदलता संसार है।
दौड़ते रहना, बस भागते जाना,
यह नहीं है सफलता, यह है समय गँवाना।

बुद्धिमत्ता से जो रचे अपने रास्ते,
हर कदम पर उनके साथ हों सच्चे वास्ते।
न खुद को जलाओ, न समय को गँवाओ,
सिस्टम बनाओ, और आगे बढ़ते जाओ।

तो रुको, सोचो, और नया रुख अपनाओ,
इस अंधी दौड़ को छोड़, सही रास्ता दिखाओ।
महिमा मत करो इस अंतहीन पिसाई की,
जीवन को जियो समझदारी और सादगी की।


बारिश के रंग अनेक

बारिश के रंग अनेक, जो मिठास से भर दें मन  
कभी होती खतरनाक, कभी रोमांटिक गगन  

पहाड़ों पर देखी बारिश, हरियाली की चादर बिछी  
समुद्र की लहरों संग, सजीले बादल नाचे धूम मची  

बारिश की बूंदें चांदनी, चुपचाप धरा को चूमतीं  
कभी ये बनें बाढ़ की वजह, शहरों में आफत लातीं  

कभी गुलाब संग मुस्कान, प्रेम का संदेशा लाती  
कभी शोरगुल संग बवंडर, तबाही का मंज़र दिखाती  

बारिश का ये अजब सफर, मधुर, सुहानी, या भयावह  
इसकी हर अदाओं में छिपा, कुदरत का अनमोल रहस्य!

पौधे हमारे पूर्वज हैं

पौधे हमारे पूर्वज हैं, उनके ज्ञान को दबाया गया है,  
पुरानी पद्धतियों के साथ, उनकी बुद्धि को मिटाया गया है।  
फिर से पौधों पर विश्वास जमाना, अपने अस्तित्व का हिस्सा पाना,  
प्रकृति के संग जुड़ कर, अपनी जड़ों को पहचानना।  

पत्तों की सरसराहट में, जीवन का संगीत बजता है,  
उनकी निस्वार्थ सेवा से, हमारा तन-मन सजता है।  
धरती का आंचल, उनकी जड़ों से संजीवनी है,  
उनसे हमें मिलती, सच्ची शांति की वाणी है।  

पौधों की छांव में, सजीवता का अहसास होता है,  
उनके संग हम जुड़ें, तो समग्रता का विकास होता है।  
प्रकृति के इस अनमोल खजाने को संजो कर,  
हम अपने भविष्य को, एक नई दिशा दे सकते हैं।  

आओ, पौधों से सीखें, सहनशीलता और समर्पण,  
उनकी गोद में बस कर, पाएँ हम सच्चा जीवन दर्शन।  
उनसे जुड़ कर, हम अपने अंदर की खोई रोशनी पा सकते हैं,  
पौधे हमारे पूर्वज हैं, ये सच्चाई हम साकार कर सकते हैं।

दर्द और गुणों का मेल



दर्द स्वयं में न तो शत्रु है, न मित्र,
यह तो बस एक अनुभव है, जीवन का चित्र।
पर इसका प्रभाव, इसका परिणाम,
निर्भर करता है, हम इसे कैसे लें स्वीकार।

अगर अपनाओ इसे गुणों के संग,
तो यह बनेगा शक्ति का अंग।
सहनशीलता का पाठ सिखाएगा,
और आत्मा को और गहराई देगा।

पर यदि इसे ठुकराओ या घृणा करो,
यह भीतर ही भीतर तुम्हें छला करेगा।
असंतोष और क्रोध के बीज बो देगा,
और आत्मा को अशांति में डुबो देगा।

गुण ही बनाते हैं दर्द को रचना,
वरना यह बन सकता है विनाश का सपना।
धैर्य, करुणा, और आत्मा की रोशनी,
दर्द को बदलते हैं जीवन की संगिनी।

जो इसे स्वीकार करे खुले हृदय से,
वही देख सकता है इसके छिपे वरदान से।
पर जो इसे ठुकराए अज्ञानता के कारण,
वह खो देगा अपने जीवन का सच्चा सारण।

इसलिए, दर्द को समझो, इसे गले लगाओ,
गुणों के संग इसे जीवन में अपनाओ।
तभी यह बनेगा तुम्हारा सहारा,
वरना यह बढ़ाएगा केवल दु:ख का पिटारा।

दर्द, केवल माध्यम है बदलाव का,
पर दिशा तुम्हारी सोच पर निर्भर है।
तो चुनो गुण, और बनाओ इसे एक अवसर,
वरना यह रह जाएगा केवल एक अभिशाप का सफर।


बारिश की बूंदें जब धरती को चूमती हैं

बारिश की बूंदें जब धरती को चूमती हैं,  
तो उसका मीठा रस दिलों को मोह लेता है।  
कभी ये बूंदें सुखद ठंडक लाती हैं,  
कभी ये बाढ़ बनकर विपदा में भी आ जाती हैं।

पहाड़ों पर जब बारिश की बौछारें बरसती हैं,  
तो नदियाँ अपने जल से भर जाती हैं।  
समुद्र की लहरें और ऊँची हो जाती हैं,  
और प्रकृति की ये लीला हमें सोचने पर मजबूर कर जाती हैं।

बारिश का सौंदर्य कभी रोमांस का गीत गाती है,  
कभी प्रेमियों की आँखों में सपनों की बुनाई करवाती है।  
पर जब ये विपदा का रूप धारण करती है,  
तो लोगों के जीवन में कठिनाई की बुनाई करवाती है।

फिर भी, बारिश की बूंदें हमें याद दिलाती हैं,  
कि प्रकृति की हर आशीष में दो रूप छुपे होते हैं।  
कभी मीठी, कभी खट्टी, ये बारिश की कहानी,  
हमारे जीवन की भी होती है एक सच्ची कहानी।

दर्द का संदेश



दर्द जब दिल के दरवाजे खटखटाए,
तो सन्नाटा गहरा और अश्रु बह जाए।
पर यह आहट केवल पीड़ा नहीं,
यह बदलाव का संदेशा कही जा रही।

हर घाव सिखाता है नई कहानी,
दर्द के संग चलती है ज़िंदगी की रवानी।
हर आँसू जो गिरा, उसने राह दिखाई,
हर कसक ने आत्मा को शक्ति दिलाई।

सुख में जो सीखा न जाए,
वह दुख के पल में समझ आ जाए।
हर चोट एक शिक्षक का रूप है,
जो भीतर की गहराइयों का स्वरूप है।

दर्द कभी शत्रु नहीं, यह मित्र है,
यह जीवन के अर्थ का सूत्र है।
जो दुख में झुके, वही उठना सीखे,
जो पीड़ा झेले, वही सत्य को देखे।

परिवर्तन का आरंभ है यह कष्ट,
जो जीवन को देता है नई दृष्टि, नया पथ।
हर असफलता बनती है सीढ़ी ऊँची,
हर पीड़ा से खुलती है चेतना सच्ची।

दुख में छिपा है सुधार का सार,
हर ठोकर देती है जीवन का उपहार।
हर पल का संघर्ष एक पाठ बन जाए,
हर दर्द से आत्मा निखरती जाए।

दर्द से घबराना नहीं, इसे अपनाओ,
इसमें छिपे बदलाव के बीज को पहचानो।
हर पीड़ा है एक नई सुबह की निशानी,
जो बनाती है इंसान को सच्चा, महान और ज्ञानी।

तो चलो, इस दर्द को दोस्त मान लें,
इसके पाठों को हृदय में स्थान दें।
हर क्षण जो कठिनाई से गुजरता है,
वही व्यक्ति जीवन में नई रोशनी भरता है।


बारिश की बूंदें मीठी हैं

बारिश की बूंदें मीठी हैं कभी,
कभी ये ख़तरनाक बन जाती हैं।

पर्वतों से गिरती, नदियों में मिलती,
समुद्र की लहरों में भी आती हैं।

जब प्रेमी मिलते बारिश में,
रूमानी कहानियाँ बन जाती हैं।

कभी ये बाढ़ का रूप धारण कर,
जीवन में विनाश ले आती हैं।

पर्वतों की ऊँचाई से देखी,
समुद्र की गहराई में जानी।

हर बारिश का अपना रंग है,
प्रकृति की प्यारी कहानी।

मीठी बूंदों का संगीत सुनो,
दिल को सुकून देती हैं।

पर संभल कर चलना बारिश में,
कभी ये खतरा बन जाती हैं।

बारिश की हर बूँद कहती है,
जीवन की यही सच्चाई है।

कभी ये मीठी, कभी ये खतरनाक,
कभी ये रूमानी, कभी ये विनाशकारी है।

बरसात के रंग



बरसात की बूँदें, मीठी-सी मिठास,  
कभी बन जाएं कहर, कभी हो खास।  
पहाड़ों पे गिरती, जैसे मोती की धार,  
समुंदर से मिलती, उठती है हिलोर।

बादलों का घनघोर, जब गूँजे गगन में,  
प्रकृति के इस राग में, होती है छटा।  
नृत्य करती बिजली, आँचल में छुपाती,  
कभी गीतों की झंकार, कभी सन्नाटा।

किसी के लिए ये प्यार का गीत,  
किसी के लिए बाढ़ का विनाशकारी संगीत।  
कभी ये धरती की तृष्णा मिटाए,  
कभी गाँव-शहर सब कुछ बहाए।

बारिश के इस खेल में, छुपा है जीवन,  
कभी स्नेहिल बूँदें, कभी उफनता सागर।  
प्रकृति का ये रूप, अनंत और अद्भुत,  
हर दिल को छू जाए, कभी हल्की, कभी घोर।

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सांसों की सरगम



**सांसों की सरगम**

सांसों की सरगम में,
लिपटी हैं अनकही बातें।
हर रात की आगोश में,
खो जाती हैं कुछ सौगातें।

सांसों के इस खेल में,
इच्छाओं का है मेल।
हर स्पर्श का जादू,
खुशियों का है झील।

कामनाओं की लहरें,
उठती हैं सागर सी।
हर बूँद की बारीकियाँ,
कहती हैं कुछ बेमिसाल सी।

अधरों पर सिगरेट की तलब,
और पीने का नशा।
हर मुरझाए पल को,
देती हैं नई आशा।

मिलन की इस बगिया में,
संग-साथ का खेल।
हर आहट की कहानी,
कहती है दिल का मेल।

चाहतों के इस बंधन में,
सपनों का है सिलसिला।
हर रात की चाँदनी में,
है मोहब्बत का काफिला।

मस्ती भरे इन पलों में,
जुड़ती हैं खुशियों की डोर।
हर धड़कन के साज पर,
गाती है दिल की कोर।

चार वर्णों की प्राचीन कथा: एक सजीव सभ्यता और उसकी विस्मृति


भारतीय सभ्यता में चार वर्ण – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र – का एक विशेष स्थान है। यह वर्ण व्यवस्था आज के समाज में प्रायः विवाद का विषय बन गई है, लेकिन यदि हम इसके ऐतिहासिक मूल्यों और वास्तविक उद्देश्य को समझें, तो इसके भीतर एक गहन वैज्ञानिक और सामाजिक संतुलन छुपा है। यह व्यवस्था समाज के सभी अंगों को जोड़कर एक समान और संतुलित रूप से चलाने का प्रयास करती थी।

चार वर्णों की प्राचीन यात्रा

एक कथा के अनुसार, एक ब्राह्मण, एक क्षत्रिय, एक वैश्य और एक शूद्र एक साथ जंगल में गए। वे सभी मित्र थे, और उनमें गहरी समझ और प्रेम था। जब वे जंगल पहुंचे, तो अंधेरा होने लगा और वे रास्ता भटक गए। संकट की इस घड़ी में, सभी ने अपने-अपने स्वभाव के अनुसार अपने कार्य किए।

ब्राह्मण ने अपने ज्ञान के अनुसार दिशाओं का अनुमान लगाया और जंगल की ऊर्जा को समझा। उसने यज्ञ और अनुष्ठान करने का सुझाव दिया ताकि सब सुरक्षित रहें।

क्षत्रिय ने लकड़ियों को इकठ्ठा किया और पत्थरों की मदद से हथियार तैयार किए, क्योंकि उसका कौशल रक्षा और युद्ध में था।

वैश्य ने उनकी संसाधनों की गणना की और सोचा कि लंबे समय तक कैसे जीवित रहा जा सकता है, कैसे संसाधनों का अधिकतम उपयोग किया जा सकता है।

शूद्र ने सबकी मदद करते हुए एक सुंदर ढाँचा तैयार किया ताकि सब आराम से रह सकें। उसने पानी की व्यवस्था की और सभी की ज़रूरतों का ध्यान रखा।


इस तरह सबने मिलकर एक दूसरे की सहायता की और इस प्रकार एक सुव्यवस्थित जीवन का आधार रखा।

वर्णों का महत्व और उनकी भूमिका

चारों वर्णों की अपनी-अपनी भूमिकाएँ थीं, जो पीढ़ियों से उनके गुण और परंपराओं के अनुसार विकसित हुई थीं। ब्राह्मणों का धर्म था ज्ञान का अध्ययन करना और धर्म को प्रसारित करना। जैसे कि भगवद्गीता में कहा गया है:

> "शमो दमस्तप: शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च |
ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम् ||"
(भगवद्गीता 18.42)



अर्थात्, ब्राह्मण का धर्म शांति, संयम, तपस्या, शुद्धता, सहनशीलता, सरलता, ज्ञान और विज्ञान है। क्षत्रिय का कार्य युद्ध करना और समाज की रक्षा करना था, जबकि वैश्य का कार्य व्यापार और कृषि से समाज की अर्थव्यवस्था को समृद्ध करना था। शूद्र का कार्य था अन्य वर्णों की सेवा करना और निर्माण कार्यों में सहयोग देना। यह सामाजिक संरचना समाज में संतुलन और समृद्धि लाने के लिए थी।

एक सजीव सभ्यता का निर्माण

इन चार वर्णों के संगठित प्रयासों से एक महान सभ्यता का निर्माण हुआ। ब्राह्मण अपनी विद्या से समाज को मार्गदर्शन देते थे, क्षत्रिय रक्षा करते थे, वैश्य व्यापार और संसाधनों का प्रबंधन करते थे, और शूद्र सेवा और कारीगरी का कार्य करते थे। इस प्रकार समाज में सभी वर्णों का विशेष योगदान था, और सबका कार्य एक-दूसरे से जुड़ा हुआ था। एक सुंदर श्लोक में कहा गया है:

> "विद्या विनय संपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिता: समदर्शिन:॥"
(भगवद्गीता 5.18)



अर्थात, एक ज्ञानी व्यक्ति सभी को समान दृष्टि से देखता है, चाहे वह ब्राह्मण हो, गऊ हो, हाथी हो या श्वान।

समाज का पतन और वर्ण व्यवस्था की विस्मृति

समय के साथ, वर्णों का वास्तविक उद्देश्य और उनके गुण धीरे-धीरे खोने लगे। ब्राह्मण अपने ज्ञान को भूल गए और समाज में अशांति का कारण बन गए। क्षत्रिय, जो समाज की रक्षा करते थे, सत्ता के लिए संघर्ष में उलझ गए। वैश्य धन-संचय में अधिक रुचि लेने लगे, और शूद्रों को समाज में अपमानित किया जाने लगा। इस प्रकार वर्ण व्यवस्था का संतुलन बिगड़ गया।

पुनः जागरण की आवश्यकता

आज के समय में, हमें प्राचीन ज्ञान को समझने और पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। समाज में हर व्यक्ति का स्थान और कर्तव्य है, और हमें एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए। महर्षि मनु कहते हैं:

> "सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दु:खभाग्भवेत्॥"
(मनुस्मृति 8.23)



अर्थात, सभी सुखी हों, सभी स्वस्थ रहें, सभी मंगल देखें और किसी को भी दुःख का सामना न करना पड़े।

यह प्राचीन कथा यह सिखाती है कि समाज में विविधता में एकता ही सबसे बड़ी शक्ति है। हमारे पूर्वजों ने वर्ण व्यवस्था को समाज के उत्थान के लिए एक मार्ग के रूप में स्थापित किया था, न कि एक विभाजन के लिए। यह केवल एक सामाजिक संरचना नहीं थी, बल्कि एक वैज्ञानिक और सांस्कृतिक प्रणाली थी, जो प्रकृति और मानवीय संवेदनाओं के अनुरूप थी।

आइए, हम अपने प्राचीन मूल्यों को समझें और एक सुंदर, संतुलित समाज की पुनः स्थापना में योगदान दें, जहां सभी वर्ण, सभी वर्ग और सभी धर्म मिलकर एक मानवता का निर्माण कर सकें।


एक रिश्ता

एक अजीब सा रिश्ता है
संग उसके
 रिश्ता वो जो न उसने बनाया
 न मैंने बनाया
बस बातों ही बातों में बन गया
कुछ उसकी नादानियाँ
कुछ मेरी मासूमियत
दोनों ने मिलकर ऐसा
समा बांघा कि सबकी जुबां पर
हमारा नाम आ गया
पर लड़ते झगड़ते हैं हम
उसी में कुछ खुशी है
और वही तो एक रिश्ता है 

कल्पना करो, अनंत की ओर



कल्पना करो, जहां क्षितिज भी झुक जाए,
जहां सपने तुम्हारे सत्य बन जाएं।
जहां समय का हर कण तुम्हारा साथी हो,
और हर कदम तुम्हें मंज़िल तक ले जाए।

सपने देखो, बड़े-बड़े, विशाल,
छोटे ख्वाबों से नहीं होता कमाल।
पंखों को दो आकाश की पहचान,
रुकना नहीं है, बस बढ़ते रहना अभियान।

पसंद करो जो, उसे गले लगाओ,
हर मुश्किल राह पर भी मुस्कुराओ।
दिल की आवाज़ को चुप मत कराओ,
अपने जीवन को जुनून से सजाओ।

समय अमूल्य है, इसे व्यर्थ न गंवाओ,
अभी से शुरू करो, कल पर न टिकाओ।
बीते पल लौट कर नहीं आते,
जो कर सकते हो, उसे अभी निभाओ।

कठिनाई में भी मेहनत की लौ जलाओ,
हर असंभव को संभव बनाओ।
तुम्हारा हौसला तुम्हें नई दिशा देगा,
और हर सपना सच करने का तरीका देगा।

कल्पना करो, अनंत की ओर,
जीवन को बनाओ, सपनों का नज़ारा।
मत रुकना, मत थकना,
हर हार को जीत में बदलना तुम्हारा सहारा।


An Ode to Serenity: Exploring the Tranquil Charms of India


In the heart of the Indian subcontinent lies a land of ancient traditions, vibrant cultures, and breathtaking landscapes. From the snow-capped peaks of the Himalayas to the sun-kissed shores of the Indian Ocean, India beckons travelers with its diverse tapestry of sights, sounds, and flavors. Join me on a journey as we explore the tranquil charms of this enchanting land.

As the sun rises over the misty valleys of Himachal Pradesh, the air is filled with the sweet fragrance of pine and cedar. Here, nestled amidst the majestic mountains, lie quaint hill stations like Manali and Shimla, where one can escape the hustle and bustle of city life and immerse oneself in the serenity of nature. Trek through lush forests, breathe in the crisp mountain air, and let the tranquil beauty of the Himalayas soothe your soul.

Venture south to the tranquil backwaters of Kerala, where emerald-green palm trees sway gently in the breeze and the waters of the Arabian Sea lap against the shore. Cruise along the serene waterways aboard a traditional houseboat, marveling at the lush rice paddies, sleepy villages, and exotic birdlife that line the banks. As the sun sets in a blaze of orange and gold, surrender yourself to the tranquility of the backwaters and let your worries drift away on the gentle currents.

In the heart of Rajasthan, amidst the golden sands of the Thar Desert, lies the majestic city of Jaisalmer. Here, ancient forts and palaces rise like mirages from the desert landscape, their sandstone walls glowing in the light of the setting sun. Explore the narrow lanes of the old city, adorned with intricate carvings and vibrant colors, and lose yourself in the timeless beauty of this desert oasis.

No journey through India would be complete without a visit to the tranquil temples and sacred sites that dot the landscape. From the majestic temples of Varanasi, where the Ganges River flows like a ribbon of silver through the heart of the city, to the serene shores of Rishikesh, where yogis and seekers come to meditate and find inner peace, India is a land steeped in spiritual wisdom and ancient traditions.

As you travel through this land of contrasts and contradictions, take a moment to pause and soak in the tranquil beauty that surrounds you. Whether you find yourself amidst the towering peaks of the Himalayas or the tranquil waters of the backwaters, let the serenity of India envelop you like a warm embrace, and carry you away on a journey of discovery and renewal.

Parwah

    परवाह
परवाह  है उस ख्याल की
जो बोया था बचपन में कहीं
आज वो ख्याल ख्वाबों में अंकुरित हो कर
फूट रहा है मिट्टी  से 
परवाह है उसके कुचल जाने की
परवाह  है उस ख्याल की
जो बोया था बचपन में कहीं |

परवाह ही उसके उजड़ जाने की
जब  गर्भ में ही  दो धारी तलवार से उस  ख्वाब
पर वार की जाये
तब जन्म दे कर उस ख्वाब को पाल पोसकर
रोशन किया जाये
परवाह है उस रोशनी की
जो लाने वाली है नयी सहर यहीं
पर वाह है उस ख्याल की 
जो बोया था छुटपन में कहीं  |

Apo dēpō bhav

Apo dēpō bhav


Appo deepo bhav is a Sanskrit phrase that translates to "Be a lamp unto yourself." It is a central teaching in Buddhist philosophy, particularly in the Theravada tradition.
The given text is Sanskrit, and it means "May light be revealed." However, there seems to be an error in the transliteration. The correct transliteration should be āpo depo bhav. The correct Sanskrit diacritical marks have been added to the text.

In terms of grammar, the verb "bhav" is present tense, and it is conjugated with the root "bhā" (भा) which means "to shine," "to become," or "to be." The prefix "a" (अ) is added to negate the meaning, and the prefix "apo" (अपो) is added to indicate the source of light, which is water in this case.

Overall, the text is grammatically correct, and there are no spelling or punctuation errors.
At its core, this philosophy encourages individuals to rely on their own inner wisdom and understanding rather than relying solely on external sources of guidance, such as religious texts or teachers. It emphasizes the importance of developing one's own insight and intuition through personal reflection and contemplation.

The metaphor of a lamp is used to illustrate this concept. Just as a lamp illuminates the darkness, an individual's inner wisdom can help them navigate through the uncertainties and challenges of life. By cultivating this inner light, one can learn to trust their own intuition and make decisions that are aligned with their values and beliefs.

In practical terms, this philosophy encourages individuals to engage in practices such as meditation, mindfulness, and self-reflection to develop their inner wisdom. By doing so, they can learn to trust their own insights and make decisions that are in line with their own values and beliefs, rather than relying solely on external sources of guidance.

In summary, Appo deepo bhav is a philosophy that encourages individuals to rely on their own inner wisdom and understanding rather than relying solely on external sources of guidance. It emphasizes the importance of developing one's own insight and intuition through personal reflection and contemplation, using the metaphor of a lamp to illustrate this concept.

अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...